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Krishna Flute Story: भगवान कृष्ण की बांसुरी का नाम क्या था, किसने दिया था यह दिव्य वाद्य-यंत्र, जानें विस्तार से

Krishna Flute Story: भगवान कृष्ण की बांसुरी केवल संगीत नहीं, बल्कि प्रेम और दिव्यता की धड़कन मानी गई है। क्या आप जानते हैं, उनकी सबसे प्रिय वंशी के पीछे एक अद्भुत पौराणिक कथा छिपी है? आइए जानते हैं, यह दिव्य बांसुरी कैसे बनी और भगवान कृष्ण को किसने भेंट की?

Author Written By: Shyamnandan Updated: Nov 28, 2025 16:26
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Krishna Flute Story: भगवान कृष्ण की बांसुरी केवल एक वाद्य-यंत्र नहीं थी, बल्कि प्रेम, करुणा और दिव्यता का प्रतीक मानी गई है। इसे छूते ही इसकी धुन ऐसी निकलती कि गोपियाँ, गायें, पक्षी और प्रकृति तक मंत्रमुग्ध हो जाती थी। कृष्ण की बांसुरी भक्ति और आध्यात्मिकता का वह माध्यम थी, जो मनुष्य को भीतर से खाली कर ईश्वर की ओर आकर्षित करती है। परंपराओं में कई प्रकार की बांसुरियों का उल्लेख मिलता है, और हर बांसुरी अपनी विशिष्टता लिए हुए थी। आइए जानते हैं, भगवान श्रीकृष्ण के सबसे प्रिय वाद्य-यंत्र की अनोखी कहानी।

भगवान कृष्ण की बांसुरी के प्रमुख नाम

हिन्दू धर्म की धार्मिक कथाओं में भगवान कृष्ण की कई बांसुरियों के नाम मिलते हैं।

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महानंदा: अत्यंत लंबी बांसुरी, जिसकी धुन दूर-दूर तक सुनाई देती थी।
सरला: यह एक कोमल और मधुर स्वर देने वाली छोटी बांसुरी थी।
भुवनमोहिनी: यह ऐसी वंशी, जिसे सुनते ही हर प्राणी मोहित हो उठे।
मदनझंकृति: यह छह छिद्रों वाली विशेष बांसुरी थी, जो रागों को जीवंत बनाने के लिए जानी जाती थी।

इन सबके बीच मंदाकिनी बांसुरी सबसे अलग थी, जिसे भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय और सबसे प्रभावी बांसुरी माना गया। इसी बांसुरी के पीछे एक अद्भुत पौराणिक कथा जुड़ी है। आइए जानते हैं, क्या है यह कथा?

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देवताओं का मिलन और शिव का द्वंद्व

द्वापर युग में जब कृष्ण धरती पर अवतरित हुए, सभी देवी-देवता वेश बदलकर उनसे मिलने आते थे। हर देवता अपने तरीके से कृष्ण के सान्निध्य का अनुभव करना चाहता था। इसी क्रम में भगवान शिव भी बैकुंठ से नहीं, बल्कि सीधे गोकुल पहुँचना चाहते थे। लेकिन उनसे पहले एक प्रश्न खड़ा हो गया- कृष्ण को ऐसा कौन-सा उपहार दें जो उन्हें प्रिय लगे और सदा उनके साथ रहे?

उन्हें महसूस हुआ कि कृष्ण को संगीत अत्यंत प्रिय है, और शायद एक दिव्य बांसुरी ही ऐसा उपहार होगी, जिसे वे हृदय से स्वीकार करेंगे। तभी शिव को याद आए महान ऋषि दधीचि, जिनकी अस्थियां धर्म की रक्षा के लिए दान की गई थीं।

ऋषि दधीचि की हड्डी से बनी दिव्य वंशी

कथा के अनुसार, ऋषि दधीचि की हड्डियाँ अपार ऊर्जा और दिव्यता से युक्त थीं। इन्हीं हड्डियों से विश्वकर्मा ने पिनाक, गांडीव, शारंग जैसे महाधनुष और इंद्र के लिए वज्र बनाया था। भगवान शिव ने उसी दिव्य हड्डी को घिसकर अत्यंत सुंदर, कोमल और तेजस्वी बांसुरी का निर्माण किया।

यह कोई साधारण वाद्य-यंत्र नहीं था। इसमें तप, त्याग, शक्ति और पवित्रता का सार निहित था। जब शिव जी गोकुल पहुंचे और कृष्ण को यह बंसी भेंट की, तो कृष्ण ने मुस्कुराकर इसे अपने होंठों से लगाया। जैसे ही पहली धुन निकली, धरती पर एक अदृश्य शांति छा गई। ऐसा माना गया कि इस बांसुरी की ध्वनि में ही सम्मोहन का प्रभाव था, इसलिए इसे सम्मोहिनी वंशी कहा गया।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Nov 28, 2025 04:26 PM

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