Kojagari Puja 2024: सनातन धर्म के लोगों के लिए शारदीय नवरात्रि के पर्व का खास महत्व है। नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान माता दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही व्रत रखना भी शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शारदीय नवरात्रि से अगले दिन विजयादशमी के पांच दिन बाद कोजागरी पूजा का पर्व मनाया जाता है। हालांकि इस बार कोजागरी पूर्णिमा की तिथि को लेकर कन्फ्यूजन बना हुआ है। चलिए जानते हैं कोजागरी पूजा की सही तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त और माता लक्ष्मी की पूजा विधि के बारे में।
कोजागरी पूजा का महत्व
कोजागरी पूजा का पर्व मुख्य तौर पर पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा के शहरों में मनाया जाता है, जिसे शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस पावन दिन माता लक्ष्मी और चंद्र देवता की पूजा करना शुभ होता है। इस दिन खीर बनाकर उसे पूरी रात चांद की रोशनी में रखना चाहिए, जिसे अगले दिन प्रसाद के रूप में खाने से सेहत अच्छी रहती है। साथ ही देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सदा खुशहाली, सुख-शांति और धन का वास होता है।
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कोजागरी पूजा कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन माह में आने वाली पूर्णिमा तिथि के दिन कोजागरी पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस बार पूर्णिमा तिथि का आरंभ 16 अक्टूबर 2024 को रात 08:40 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन अगले दिन 17 अक्टूबर 2024 को शाम 04:55 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर कोजागरी पूजा का पर्व 16 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा का निशिता काल मुहूर्त रात 11:42 से लेकर अगले दिन सुबह 12:32 मिनट तक है, जबकि इस दिन चंद्रोदय शाम 05:05 मिनट के आसपास होगा।
कोजागरी पूजा की विधि
- कोजागरी पूजा के दिन प्रात: काल उठें।
- सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके शुद्ध कपड़े पहनें।
- तांबे के लोटे में जल, लाल फूल और अक्षत डालें। फिर सूर्य देव को जल अर्पित करें।
- घर के मंदिर में एक चौकी रखें। उसके ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। कपड़े के ऊपर मां लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- देवी को लाल फूल, फल, सुपारी, लौंग, इलायची, सिंदूर, बताशा और अक्षत अर्पित करें। इसी के साथ माता को चावल से बनी खीर का भोग लगाएं।
- इस दौरान माता लक्ष्मी को समर्पित मंत्रों का जाप करें।
- मां लक्ष्मी की आरती उतारें।
- शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्र देव को जल से अर्घ्य दें।
- चंद्र देव के मंत्रों का जाप करें।
- चांद की रोशनी में खीर रखें।
- अगले दिन पूजा करने के बाद उसी खीर को खाएं।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।