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Religion

जानिए किस देवी-देवता की कितनी करनी चाहिए परिक्रमा, क्या होता है लाभ?

हिंदू धर्म में परिक्रमा को बहुत ही महत्वपूर्ण मान जाता है। हर भगवान की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग होती है। परिक्रमा करने से जन्मजन्मांतरों के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही व्यक्ति को ईश्वर की कृपा भी प्राप्त होती है।

Author Edited By : Mohit Updated: Apr 12, 2025 17:15
Parikrama ke Niyam

साइंस के अनुसार सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं और उपग्रह ग्रहों की परिक्रमा करते हैं। इसी प्रकार हिंदू धर्म में परिक्रमा को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। ईश्वर या किसी धार्मिक स्थल, पर्वत और वृक्ष की भी परिक्रमा का विधान शास्त्रों में बताया गया है। ईश्वर के चारों ओर परिक्रमा करने से हमारे शरीर में उनकी पॉजिटिव एनर्जी आती है।

परिक्रमा को संस्कृत में प्रदक्षिणा कहते हैं। यह षोडशोपचार पूजा एक महत्वपूर्ण अंग है। दुनिया के कई और धर्मों में भी परिक्रमा का चलन है। परिक्रमा हमेशा दक्षिण भाग की ओर गति करके की जानी चाहिए। मतलब अपने बाएं भाग से ईश्वर की मूर्ति के चारों ओर परिक्रमा करनी चाहिए।

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इन जगहों व देवताओं की होती है परिक्रमा

कई पावन जगहों और देव स्थल जैसे जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, तिरुवन्नमल, तिरुवन्नतपुरम परिक्रमा की जाती है। वहीं, भगवानों में देवी दुर्गा व उनके स्वरूपों, शिव, गणेश, हनुमान, कार्तिकेय, सूर्य आदि देवमूर्तियों की परिक्रमा करने का विधान बताया गया है।

नदियों, पर्वत और तीर्थों की भी होती है परिक्रमा

नदियों में नर्मदा, गंगा, सरयू, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी की परिक्रमा की जाती है। पर्वतों में गोवर्धन, गिरनार, कामदगिरि, तिरुमलै परिक्रमा प्रचलित हैं। तीर्थों में चौरासी कोस, अयोध्या, उज्जैन, प्रयाग पंचकोशी यात्रा, राजिम परिक्रमा आदि की जाती हैं।

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वृक्षों की भी होती है परिक्रमा

पीपल, बरगद जैसे वृक्ष और तुलसी जैसे पौधों की परिक्रमा की जाती है।

अग्नि की भी होती है परिक्रमा

विवाह के समय भी वर और वधू अग्नि के चारों ओर 7 परिक्रमा करते हैं। इसी के बाद ही विवाह संपन्न माना जाता है।

किस देव और देवी की कितनी करनी चाहिए परिक्रमा?

“एका चण्ड्या रवेः सप्त तिस्रः कार्या विनायके।
हरेश्चतस्रः कर्तव्या: शिवस्यार्ध प्रदक्षिणा॥”

शास्त्रों के अनुसार हर भगवान की अलग-अलग परिक्रमा की जाती है। शिव जी की परिक्रमा आधी की जाती है। ऐसा इस कारण है क्योंकि भगवान शिव की जलधारी को पार नहीं करना चाहिए।

  • तुलसी के पौधे की 3, 7 या 108 और पीपल की भी 108 परिक्रमा करनी चाहिए। जिस देव की परिक्रमा न मालूम हो, उनकी तीन परिक्रमा कर लेनी चाहिए।
  • दुर्गा जी की एक परिक्रमा
  • सूर्य देव की सात परिक्रमा
  • गणेश जी की तीन परिक्रमा
  • विष्णु जी की चार परिक्रमा
  • शिव जी की आधी परिक्रमा

परिक्रमा करते समय करें इस मंत्र का जाप

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे पदे॥

परिक्रमा करते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का अर्थ है कि मेरे द्वारा इस जन्म या पूर्वजन्म में जाने-अनजाने में किए गए सभी पाप इस परिक्रमा के प्रत्येक चरण में नष्ट हो जाएं।

परिक्रमा से मिलते हैं ये लाभ

परिक्रमा से पापों का नाश होता है। इसके साथ ही ध्यान और एकाग्रता बढ़ती है। मंदिर या किसी पवित्र स्थान की परिक्रमा से जीवन में पॉजिटिव एनर्जी आती है। यह भक्ति और समर्पण की अभिव्यक्ति है, जिससे आत्मिक विकास होता है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Mohit

First published on: Apr 12, 2025 05:15 PM

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