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Hariyali Teej 2025: कब है हरियाली तीज 2025, जानें क्यों खास है यह पर्व?

Hariyali Teej 2025: हरियाली तीज हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व प्रकृति की हरियाली और भगवान शिव व माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए पूजा करती हैं। आइए जानते हैं कि साल 2025 में यह पर्व कब है?

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Mohit Tiwari Updated: Jun 15, 2025 06:57
lord shiva and parvati
भगवान शिव और माता पार्वती credir- pexels

Hariyali Teej 2025: हरियाली तीज हिंदू धर्म में एक प्रमुख त्योहार है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, यह भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है। इसके साथ ही इस दौरान प्रकृति में हरियाली भी आती है। यह त्योहार सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए विशेष महत्व रखता है।

कब है हरियाली तीज 2025?

वैदिक पंचांग के अनुसार, हरियाली तीज 2025 में 27 जुलाई, रविवार को मनाई जाएगी। इस दिन सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 26 जुलाई 2025 को रात 10:41 बजे शुरू होगी और 27 जुलाई 2025 को रात 10:41 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर यह पर्व 27 जुलाई को मनाया जाएगा। इस दिन रवि योग और शिव योग का संयोग बन रहा है, जो पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

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शुभ मुहूर्त के अंतर्गत पूजा के लिए सबसे अच्छा समय सुबह 04:31 से 05:15 तक ब्रह्म मुहूर्त में, सुबह 08:00 बजे सूर्योदय के बाद से 09:30 तक और शाम 06:45 से 07:30 तक रहेगा। इन शुभ मुहूर्तों में पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव ने माता पार्वती को किया था पत्नी रूप में स्वीकार

हरियाली तीज का धार्मिक महत्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए 107 जन्मों तक कठोर तपस्या की थी। उनके 108वें जन्म में, सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस कारण यह दिन सुहागिन महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य और कुंवारी कन्याओं के लिए मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए विशेष माना जाता है।

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यह पर्व प्रकृति के साथ भी गहराई से जुड़ा हुआ होता है। सावन के महीने में चारों ओर हरियाली छाई रहती है, जिसके कारण इस त्योहार को ‘हरियाली तीज’ कहा जाता है। वहीं, हरा रंग समृद्धि, प्रेम और पवित्रता का भी प्रतीक है। इस दिन सुहागिन महिलाएं हरे रंग की साड़ी, चूड़ियां और श्रृंगार की वस्तुएं पहनती हैं, जो उनके वैवाहिक जीवन में प्रेम और विश्वास को बढ़ाता है।

हरियाली तीज की पूजा विधि

हरियाली तीज का व्रत और पूजा विधि अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं विशेष विधि-विधान के साथ पूजा करती हैं। इस दिन पूजन के लिए सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें, जिसमें हरे रंग के वस्त्र और श्रृंगार का सामान यूज करें। इसके बाद पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्तियां बनाएं या उनकी तस्वीर स्थापित करें। पूजा सामग्री में शमी के पत्ते, जनेऊ, जटा नारियल, चावल, दूर्वा घास, घी, कपूर, श्रीफल, चंदन, गाय का दूध, गंगाजल, दही, मिश्री, बेलपत्र, भांग, धतूरा, शहद, पंचामृत, और सोलह श्रृंगार की वस्तुएं जैसे सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, मेहंदी आदि शामिल करें।

पूजा शुरू करने से पहले हाथ में फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प करें। इसके बाद भगवान गणेश, शिव और पार्वती की पूजा षोडशोपचार विधि से करें और मंत्र ‘ॐ सृष्टिकर्ता मम विवाह कुरु कुरु स्वाहा’ का जाप करें। यह व्रत निर्जला होता है, जिसमें सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता है। व्रत का पारण अगले दिन शुभ मुहूर्त में करें।

व्रत से मिलते हैं यह फल

हरियाली तीज का त्योहार सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए मनाया जाता है। वहीं, कुंवारी कन्याएं मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से कई गुना फल प्राप्त होता है। अगर वैवाहिक जीवन में दिक्कतें या धन संबंधी समस्या है तो इस दिन व्रत करने से वह दूर हो जाती है। इसके साथ ही कुंवारियों के विवाह में आने वाली हर अड़चन दूर हो जाती है।

हरियाली तीज की परंपराएं

हरियाली तीज के एक दिन पहले ‘सिंजारा’ मनाया जाता है, जिसमें ससुराल से नवविवाहिताओं के लिए वस्त्र, आभूषण, मेहंदी और मिठाइयां भेजी जाती हैं। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और मायके से प्राप्त सामग्री का उपयोग करती हैं।

इसके अलावा, इस दिन झूले झूलने की परंपरा भी है। महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे झूलों पर झूलती हैं और लोकगीत गाकर उत्सव मनाती हैं। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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First published on: Jun 15, 2025 06:57 AM

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