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Guru Gobind Singh Jayanti 2025: गुरु गोबिन्द सिंह की जयंती पर जानें उनके जीवन से जुड़ी ये 5 खास बातें

Guru Gobind Singh Jayanti 2025: सिख धर्म के दसवें और आखिरी गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी भारत के इतिहास ही नहीं बल्कि विश्व के एक महानतम व्यक्तित्व हैं। 6 जनवरी 2025 को गुरु गोबिन्द सिंह की जयंती है। आइए इस अवसर पर उनके जीवन से जुड़ी ये 5 खास बातें जानते हैं।

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Jan 6, 2025 13:36
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Guru Gobind Singh Jayanti 2025
गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2025

Guru Gobind Singh Jayanti 2025: गुरु गोबिंद सिंह जी भारत के इतिहास ही नहीं बल्कि विश्व के एक महानतम व्यक्तित्व हैं। वे एक महान दार्शनिक, लेखक, कवि होने के साथ-साथ बेजोड़ रणनीतिकार और अप्रतिम योद्धा थे। उनका जन्म 1666 में पटना में हुआ। वे सिख धर्म के दसवें और आखिरी गुरु हैं, जिन्होंने सिख धर्म के नियमों को पूरी तरह से स्थापित कर इस पंथ को स्थिरता प्रदान की। आइए गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती के अवसर पर उनके जीवन से जुड़ी 5 बेहद खास बातें जानते हैं।

पटना में हुआ था 10वें गुरु का जन्म

गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म सन 1666 में पटना में हुआ। वे नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के इकलौते बेटे थे, जिनका बचपन का नाम गोबिंद राय था। वे श्री गुरू तेग बहादुर जी के बलिदान के बाद 11 नवंबर, 1675 को 10वें गुरू बने थे। कहते हैं कि इस समय दशम गुरु की उम्र मात्र 9 साल की थी।

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गोबिंद राय ऐसे बने गोबिंद सिंह

गुरु गोबिंद सिंह जी एक सफल नेतृत्वकर्ता थे। वे सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया लेकर आए। सन् 1699 ई0 में बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना कर पांच व्यक्तियों को अमृत चखा कर ’पंज प्यारे’ बना दिए। इन पांच प्यारों में सभी वर्गो के व्यक्ति थे। इस प्रकार से उन्होंने जात-पात मिटाने के उद्देश्य से अमृत चखाया था। बाद में उन्होंने स्वयं भी अमृत चखा और गोबिंद राय से गोबिंद सिंह बन गए।

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एक खालसा वाणी का नारा

सिख धर्म में जब भी गुरु की महिमा को याद करते हैं या अच्छे काम पर निकलते हैं, तो ‘वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह’ कहने की परंपरा है। यह प्रसिद्ध आदर्श वाक्य भी गुरु गोबिन्द सिंह जी का दिया हुआ है, आज यह एक खालसा वाणी है। यह आदर्श वाक्य केवल सिख धर्म ही नहीं अन्य धर्मों के लोगों को भी गुरु की महिमा के प्रति श्रद्धा रखने के लिए प्रेरित करता है।

पंच का ककार की स्थापना

गुरु गोबिन्द सिंह जी स्वनियंत्रण यानी खुद पर संयम रखने को बहुत महत्व देते थे। उनका मानना था कि व्यक्ति चरित्रवान होकर ही कठिन परिस्थितियों, अत्याचारों और मुश्किलों के खिलाफ लड़ सकता है। उन्होंने स्वयं पर नियंत्रण के लिए खालसा के पांच मूल सिद्धांतों की भी स्थापना की। इनमें केस, कंघा, कड़ा, कच्छा, किरपाण धारण करना शामिल हैं। आज भी हर सिख के लिए इन ‘पंच ककार’ को मानना आवश्यक है और ये अब भी चरित्र निर्माण का मार्ग है।

ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी

गुरुग्रंथ साहिब को पूरा करने का काम भी गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किया और गुरुग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी। ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी का अर्थ है कि अब से गुरुग्रंथ साहिब ही सभी गुरु हैं। यह महान घटना महाराष्ट्र के तख्त श्री हजूर साहिब नांदेड़ में हुई थी। इस तख्‍त सचखंड साहिब भी कहते हैं। संयोगवश से 1708 में गुरु गोबिन्द सिंह जी यहीं पर ज्योति ज्योत में समाए थे।

संगीत के महान पारखी थे 10वें गुरु

दशम गुरु गुरु गोबिन्द सिंह जी न केवल एक महान दार्शनिक, प्रख्यात कवि, महान लेखक, निडर और निर्भीक योद्धा और युद्ध कौशल प्रशिक्षक थे। उन्होंने बेहद छोटी उम्र में धनुष-बाण, तलवार, भाला आदि चलाने की कला के साथ बाज को साधने की कला भी सीख ली थी। अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में गुजार दिया। लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि दशम गुरु संगीत के बेजोड़ जानकार और महान पारखी भी थे। कहते हैं, उन्होंने दिलरुबा वाद्य यंत्र में सुधार लाकर उसे आधुनिक रूप दिया था। गुरु जी को पंजाबी, फारसी, अरबी, संस्कृत और उर्दू समेत कई भाषाओं की अच्छी जानकारी थी।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Shyam Nandan

Edited By

Simran Singh

First published on: Dec 19, 2024 05:45 PM

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