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Chaitra Navratri 2025: मां दुर्गा के चौथे रूप देवी कूष्माण्डा का पूजन आज; जानें स्तुति मंत्र, प्रिय भोग, फूल और कथा

Chaitra Navratri 2025: आज 1 अप्रैल, 2025 को मां दुर्गा के चौथे रूप देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाएगी। मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कूष्माण्डा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। आइए जानते हैं, देवी कूष्माण्डा का स्तुति मंत्र, प्रिय भोग, फूल, कथा और आरती क्या है?

Author Edited By : Shyamnandan Updated: Apr 1, 2025 07:36
Maa-Kushmanda

Chaitra Navratri 2025: आज 1 अप्रैल, 2025 को चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चौथे रूप देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कूष्माण्डा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए ये सृष्टि की आदि-स्वरूपा और आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल लोक में है, जहां निवास करने की क्षमता केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान दिव्यमान हैं। आइए जानते हैं, देवी कूष्माण्डा का स्तुति मंत्र, प्रिय भोग, फूल और कथा क्या है?

देवी कूष्माण्डा का स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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मां कूष्मांडा की प्रार्थना मंत्र: सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

मां कूष्मांडा बीज मंत्र: ऐं ह्री देव्यै नम:

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देवी कूष्माण्डा का भोग

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग अत्यधिक प्रिय है। इस कारण, भक्तों को माता रानी को मालपुआ अर्पित करना चाहिए। मान्यता है कि जो व्यक्ति मां को मालपुआ का भोग अर्पित करता है, उसकी बुद्धि और यश में वृद्धि होती है, साथ ही निर्णय लेने की क्षमता भी सुदृढ़ होती है। मालपुआ के भोग से मां के आशीर्वाद से किसी भी बिगड़े काम में सफलता मिल सकती है।

देवी कूष्माण्डा का प्रिय फूल

अष्टभुजा वाली मां कूष्मांडा की को पीला रंग बेहद ही प्रिय होता है। इसलिए पीले कमल का फूल अर्पित करने से मां कुष्मांडा प्रसन्न होती है और हर परेशानी का समाधान मिलता है। मां कूष्मांडा को गेंदे के पीले फूल चढ़ाने से भी मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।

देवी कूष्माण्डा की कथा

नवरात्रि के चौथे दिन, मां दुर्गा के चौथे रूप को देवी कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपनी मंद और हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी, जिससे सृष्टि का आरंभ हुआ। जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था और चारों ओर केवल अंधकार था, तब उन्होंने मंद हास्य से ब्रह्मांड की रचना की। इस कारण उन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा जाता है। देवी कूष्माण्डा के आठ भुजाएं हैं। इसलिए ये अष्टभुजा देवी कहलाती हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं। आठवें हाथ में जप माला है, जो सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली मानी जाती है।

देवी कूष्माण्डा की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदम्बे।

सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।

दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।

मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Apr 01, 2025 07:36 AM

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