माता शीतला को रोग हरने वाली शक्ति माना गया है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को बसोड़ा या शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। साल 2025 में शीतला सप्तमी और अष्टमी 21 और 22 मार्च को मनाई जाती है। माता शीतला की पूजा करने के साथ ही लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ठंडा भोजन किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन बासी खाना खाने के कारण इस पर्व को बसौड़ा नाम से जानते हैं।
माता शीतला की पूजा से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है। इस दिन भोजन नहीं बनाया जाता है बल्कि एक दिन का बासी भोजन किया जाता है। माता की उत्पत्ति का वर्णन स्कंद पुराण, दुर्गा सप्तशती में भी मिलता है।
कैसे हुई माता शीतला की उत्पत्ति?
स्कंद पुराण के अनुसार, जब धरती पर चेचक, त्वचा रोग और संक्रामक बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा ने अपने तेज से देवी की उत्पत्ति की, जो हाथ में कलश, नीम के पत्ते और झाड़ू और सूप धारण किए हुए थीं। उन्होंने पूछा कि मेरा कार्य क्या होगा? इस पर ब्रह्मा ने कहा कि देवी आपका कार्य संसार से रोगों को मुक्त करना होगा। जो आपकी पूजा करेगा, वह रोगों से मुक्त रहेगा। इसके बाद माता रोग मुक्ति की देवी के स्वरूप में पूजी जाने लगीं।
देवी भागवत पुराण में भी मिलता है उल्लेख
देवी भागवत और मार्कंडेय पुराण में भी माता शीतला को देवी दुर्गा का रूप माना गया है, जो रोगों को हरने वाली शक्ति हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार, देवी की कृपा से भक्तों को बीमारियों और दैवीय आपदाओं से मुक्ति मिल जाती है। माता शीतला को रोग नाशिनी शक्ति के रूप में पूजा जाता है। माता शीतला की पूजा संक्रामक रोगों को शांत करने और स्वास्थ्य रक्षा के लिए की जाती है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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