Ashwatthama Story: हर इंसान को ‘अमरत्व’ का वरदान चाहिए, लेकिन जिसे अमरत्व मिलता है, वही बता सकते हैं कि अमर होना वरदान है या श्राप। यहां महाभारत के एक ऐसे पात्र की चर्चा की गई है, जो आज भी जीवित है। अनेक लोगों ने उसे देखने का दावा भी किया है। बात हो रही महायोद्धा अश्वत्थामा की, जिसे भगवान कृष्ण ने ‘अमर होने का श्राप’ दिया है। आइए विस्तार से जानते हैं यह पूरी कथा कि अश्वत्थामा कौन है, उसने ऐसा क्या किया कि भगवान कृष्ण ने उसे मृत्यु की जगह अमरत्व का अभिशाप दिया है।
कौन है अश्वत्थामा?
अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र है। उसका जन्म भगवान शिव के वरदान से हुआ था, जिसके लिए पिता द्रोणाचार्य और माता कृपि ने हिमालय जाकर भगवान शिव की तपस्या की थी। कहते हैं कि जब अश्वत्थामा जन्मे तो रोते समय उसके मुख से घोड़े के हिनहिनाने की आवाज आ रही थी, इसीलिए उनका नाम अश्वत्थामा रखा गया। शिव कृपा से अश्वत्थामा जन्म से ही अपने पिता की तरह पराक्रमी और धनुर्विद्या में माहिर था। उसके बारे में कहा जाता है कि संसार में कोई ऐसा अस्त्र-शस्त्र नहीं था, जिसका उसे चलाने की जानकारी न हो।
अश्वत्थामा की मस्तक मणि
भगवान शिव की कृपा से अश्वत्थामा के मस्तक पर बीचों-बीच जन्म से ही एक दिव्य मणि मौजूद थी। इस मणि के बदौलत उसे दैत्य, दानव, अस्त्र-शस्त्र, रोग, देवता, नाग आदि से कोई भय नहीं था। वह मणि उसे भूख, प्यास, थकान और बुढ़ापा से बचाती थी। इस शक्तिशाली दिव्य मणि ने अश्वत्थामा को लगभग अजेय बना दिया था।
द्रोणाचार्य की मृत्यु
द्रोणाचार्य पांडव और कौरव दोनों के गुरु थे, लेकिन उन्होंने महाभारत का युद्ध कौरवों के पक्ष से लड़ा था। भीष्म पितामह की मृत्यु के बाद गुरु द्रोण युद्ध का संचालन किया था। भगवान कृष्ण जानते थे कि द्रोणाचार्य के संचालन में कौरवों का हराना आसान नहीं होगा। तब उन्होंने एक युक्ति का सहारा लिया। योजना के अनुसार अवन्तिराज के एक हाथी अश्वत्थामा को मार डाला गया और युद्ध में यह बात फैला दी गई की अश्वत्थामा मारा गया। बेटे की मृत्यु की बात सुनकर द्रोणाचार्य ने युद्धभूमि में हथियार छोड़कर बेटे की मौत पर शोक मनाना शुरू कर दिया। तभी मौका पाकर राजा द्रुपद के बेटे धृष्टद्युम्न ने गुरु द्रोणाचार्य का सिर धड़ से अलग कर दिया।
पांडवों पर टूटा अश्वत्थामा का कहर
पिता की मृत्यु से अश्वत्थामा दुखी भी थे और क्रोधित भी। युद्ध के दौरान उसने बार-बार अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की कोशिश की। लेकिन भगवान कृष्ण ने हर बार उसकी हर कोशिश नाकाम कर दी। जब महाभारत युद्ध समाप्त हो गया तब अश्वत्थामा ने पांडवों से बदला लेने की योजना बनाई। एक रात वह पांचों पांडव भाइयों का सिर काटने लिए पांडवों के शिविर में घुस गए। एक तंबू में पांच व्यक्तियों को सोता देख उसे पांडव समझ लिया और सभी के सिर काट डाले। लेकिन उससे चूक हो गई, वे पांडव नहीं बल्कि पांचों पांडव के द्रौपदी से उत्पन्न पुत्र थे।
अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा मारने की कोशिश
अश्वत्थामा यहां भी नहीं रुका उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा को भी मारने का प्रयास किया। उसके पेट में अभिमन्यु का पुत्र पल रहा था। इसके लिए उसने ब्रह्मशिर अस्त्र का प्रयोग किया था। अश्वत्थामा की मंशा थी कि अर्जुन का वंश समाप्त हो जाए। पांडवों ने अश्वत्थामा के इस कुकृत्य के लिए बंदी बना लिया और गुस्से में उसे मृत्युदंड देने लगे। लेकिन तभी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि अश्वत्थामा को मृत्यु देने से उसे मुक्ति मिल जाएगी, जबकि उसे मृत्यु से भी बड़ा दंड मिलना चाहिए। दूसरा बात यह कि गुरुपुत्र की हत्या करना उचित नहीं है। तब पांडवों ने श्रीकृष्ण की सलाह पर उसकी शक्ति के स्रोत मस्तक मणि को निकाल लिया। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अनंतकाल तक धरती पर कोढ़ी बनकर भटकने का श्राप दिया। श्रीकृष्ण के इसी श्राप की वजह से अश्वत्थामा अमर है।
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