Ahoi Ashtami 2025 Vrat Katha In Hindi: अहोई अष्टमी उत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है. खासकर, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश और दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में अहोई अष्टमी के व्रत को रखने की परंपरा है. अहोई अष्टमी के दिन माताएं अपने संतान की कुशलता की कामना के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. साथ ही अहोई माता की पूजा-अर्चना करती हैं. द्रिक पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है. इस बार 13 अक्टूबर 2025, वार सोमवार को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा.
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा के दौरान अहोई अष्टमी की कथा सुननी या पढ़नी भी जरूरी होती है. इसके बिना पूजा को अधूरा माना जाता है. आइए अब जानते हैं अहोई अष्टमी के व्रत की सही और पूर्ण कथा के बारे में.
अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक घने वन के पास छोटा-सा गांव स्थित था, जहां एक दयालु साहूकार महिला अपने पति और सात पुत्रों के साथ रहती थी. कुछ ही दिनों में दिवाली आने वाली थी, इसलिए महिला ने अपने घर में साज-सज्जा करने का फैसला किया. घर को लीपने के लिए मिट्टी की जरूरत पड़ी, जिसके लिए महिला खुद वन में गई. वन में महिला की दृष्टि मिट्टी के एक टीले पर पड़ी, जिसे उसने कुदाल की सहायता से खोदना शुरू किया. जैसे ही महिला ने मिट्टी को खोदा तो उससे खून आने लगा.
महिला ने मिट्टी को हटा के देखा तो उसे साही अर्थात कांटेदार मूषक के कुछ बच्चे रक्तरंजित पड़े दिखाई दिए, जिनकी कुछ ही क्षणों में मृत्यु हो गई. इससे महिला घबरा गई और मिट्टी लिए बिना ही घर लौट आई. महिला उन बच्चों की मृत्यु के लिए खुद को दोषी मान रही थी.
कुछ समय बाद साही जब अपने बच्चों के पास आई तो उसे अपने बच्चों को मृत देख बहुत गुस्सा आया. क्रोध में साही ने श्राप दिया कि, ‘जिसने भी मेरे बच्चों की हत्या की है, उसे भी मेरे समान घोर कष्ट एवं संतान के वियोग का सामना करना पड़ेगा.’
साही के श्राप के प्रभाव से कुछ ही दिनों में महिला के सभी सात पुत्र कहीं चले गए, जिनकी जानकारी किसी को भी नहीं थी. महिला अपने पुत्रों की याद में हर समय परेशान रहने लगी. उसके मन में बार-बार विचार आता था कि उसके द्वारा साही के बच्चों की हत्या के कारण ही उसके जीवन में ये घोर संकट आया है.
एक दिन महिला नदी की ओर जा ही रही थी कि, जहां उसे एक वृद्ध महिला मिली. वृद्ध महिला ने साहूकारनी से उसके उदास होने का कारण पूछा तो महिला ने उसको अपनी व्यथा सुनाई.
वृद्ध महिला ने साहूकारनी से कहा कि ‘साहूकारनी यदि तू पूर्ण विधि-विधान से देवी अहोई की पूजा, व्रत और गौ सेवा करेगी तथा स्वप्न में भी किसी को नुकसान पहुंचाने का नहीं सोचेगी तो तुझे अवश्य ही अपने पुत्र मिल जाएंगे.’ दरअसल, देवी अहोई, देवी पार्वती का ही एक अवतार स्वरूप हैं, जिन्हें समस्त जीवित प्राणियों की संतानों की रक्षक माना जाता है. इसलिए वृद्ध महिला ने साहूकारनी को देवी अहोई के निमित्त व्रत रखने और पूजा करने का सुझाव दिया.
साहूकारनी ने अष्टमी के दिन देवी अहोई की पूजा करने का निर्णय किया. जब अष्टमी का दिन आया तो साहूकारनी ने अहोई माता की पूजा की और निर्जला व्रत रखा. देवी अहोई साहूकारनी की भक्ति से काफी प्रसन्न थीं, इसलिए वो उनके समक्ष प्रकट हुईं और उनके पुत्रों की दीर्घायु का वरदान दिया. इसके कुछ ही दिनों में साहूकारनी के सभी 7 पुत्र वापस आ गए.
इसके बाद से ही अहोई अष्टमी का व्रत रखने की परंपरा का आरंभ हो गया. इस दिन माताएं अपनी संतान की खुशी, उज्जवल भविष्य और लंबी उम्र के लिए उपवास और पूजा-पाठ करती हैं.
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