Prabhakar Mishra Opinion: न्यायशास्त्र यानि जुरिसप्रूडेंस में बेल को लेकर सिद्धांत है कि बेल इज द रूल, जेल इज एक्सेप्शन! कभी कभी निचली अदालतें इस सिद्धांत को भूलने लगती हैं तो सुप्रीम कोर्ट समय समय पर याद दिलाता रहता है। हाल के दिनों में निचली अदालतों से जमानत नहीं मिलने पर जब सुप्रीम कोर्ट में जमानत के मामले बढ़ने लगे तो सुप्रीम कोर्ट को याद दिलाना पड़ा कि बेल इज द रूल, जेल इज एक्सेप्शन!
दिल्ली के कथित शराब घोटाले में आरोपी दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की जमानत पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि जो निचली अदालतें और यहां तक कि हाईकोर्ट भी इस सिद्धांत को भूल गए हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में जमानत के मामलों की बाढ़ सी आ गई है। मनीष सिसोदिया को जमानत के लिए दो बार निचली अदालत जाना पड़ा, दो बार हाईकोर्ट जाना पड़ा और दो बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा तब जाकर 17 महीने तिहाड़ जेल में बिताने के बाद जमानत मिली। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन ने अपने फैसले में लिखा कि पर्सनल लिबर्टी और स्पीडी ट्रायल आरोपी का अधिकार है। अगर ट्रायल समय से पूरा नहीं होता तो उसके लिए आरोपी जिम्मेदार नहीं है और आरोप गंभीर हैं यह कहकर आरोपी को असीमित समय तक जेल में बंद नहीं रखा जा सकता!
बाद में एक दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि PMLA जैसे सख्त कानून के आरोपी को भी बेल दिया जा सकता है। मनी लांड्रिंग के मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सहयोगी रहे प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए कोर्ट ने मनीष सिसोदिया के फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग जैसे सख्त कानून में भी आरोपी को बेल दिया जा सकता है। क्योंकि व्यक्ति की स्वतंत्रता महत्त्वपूर्ण है। बेल इज द रूल, जेल इज एक्सेप्शन!
यह सब जानते हैं कि मनी लांड्रिंग एक्ट में बेल मिलना कितना मुश्किल होता है। आरोपी को ट्रॉयल से पहले ही साबित करना होता है कि वह बेकसूर है तब जमानत मिलती है। बीआरएस की नेता के कविता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इसी प्रावधान के चलते इतने दिनों तक जेल में रहना पड़ा और अंत में सुप्रीम कोर्ट से ही जमानत मिली।
आप सोच रहे होंगे कि मनीष सिसोदिया, के कविता, अरविंद केजरीवाल सबको जमानत मिल गई। और सब लोग अपनी अपनी सियासत में व्यस्त हैं तो अब इसपर चर्चा की जरूरत क्या है? मैं इस चर्चा की जरुरत बताऊं उससे पहले एक बार उमर खालिद का चेहरा याद कीजिए। वही उमर खालिद, जिसपर दिल्ली दंगा के साजिश का आरोप है। उमर खालिद UAPA के तहत चार साल से तिहाड़ जेल में बंद है।
सुप्रीम कोर्ट ने जब कहा कि ‘बेल इज द रूल, जेल इज एक्सेप्शन’ तब कुछ लोगों ने सवाल पूछना शुरू कर दिया कि यही सिद्धांत उमर खालिद के मामले में क्यों लागू नहीं होता ? उमर खालिद को अबतक जमानत क्यों नहीं मिली? कोर्ट रिपोर्टर होने के नाते इस सवाल का जवाब ढूंढना मेरी जिम्मेदारी है।
आगे बढूं उससे पहले डिस्क्लेमर देना जरूरी है कि मैं यहां उमर खालिद को बेगुनाह साबित करने नहीं आया हूं और न ही गिरफ्तारी पर सवाल उठा रहा हूं। उमर खालिद पर दिल्ली दंगा की साजिश रचने के गंभीर आरोप हैं जिसमें पचास से अधिक लोगों की जान गई थी। उमर खालिद UAPA जैसे सख्त कानून के तहत जेल में बंद है। इस कानून के तहत अगर किसी आरोपी के खिलाफ आरोप है कि वह आतंकी गतिविधि में शामिल है या उसका किसी आतंकवादी संगठन से संबंध है और केस डायरी और पुलिस रिपोर्ट देखने के बाद अदालत को प्रथम दृष्टया यह लगता है कि आरोप सही है तो उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता (सेक्शन 43D(5)।
दिल्ली देंगे के बाद दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद के अलावा शरजील इमाम और कुछ और लोगों को गिरफ्तार किया गया था। उमर खालिद सितंबर 2020 से तिहाड़ जेल में बंद है। दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने मार्च 2022 में खालिद को जमानत देने से मना कर दिया था। उसके बाद उमर खालिद ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अक्टूबर 2022 में हाईकोर्ट ने भी उमर खालिद की जमानत की याचिका खारिज कर दी थी। उसके बाद उमर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट में अलग अलग कारणों से उमर खालिद की जमानत पर सुनवाई टलती रही। कभी कोर्ट के पास समय का अभाव रहा तो कभी उमर खालिद के वकील उपलब्ध नहीं थे। एक बार दिल्ली पुलिस के लिए पेश होने वाले वकील ही उपलब्ध नहीं थे।
उमर खालिद ने कपिल सिब्बल को वकील किया था। एक मौके पर कपिल सिब्बल की तरफ से सुनवाई टालने की मांग की। उस दिन कपिल सिब्बल को किसी संविधानिक मसले पर संविधान पीठ के सामने पेश होना था। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि आप खुद सुनवाई टालने का आग्रह करते हैं और लोगों के बीच ये धारणा बनती है कि हम मामले की सुनवाई नहीं कर रहे। कोर्ट की ये बात सही थी। उमर खालिद की जमानत पर जब भी सुनवाई टलती थी सोशल मीडिया पर लोग यही लिखते थे कि कोर्ट के पास बाकी मामलों पर सुनवाई के लिए टाइम है और उमर खालिद की जमानत पर सुनवाई के लिए टाइम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में उमर खालिद की जमानत याचिका करीब एक साल तक पेंडिंग रही और कुल ग्यारह बार सुनवाई टली थी।
14 फरवरी 2024 को उमर खालिद के वकील कपिल सिब्बल ने ये कहकर सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले ली कि बदली परिस्थितियों के मद्देनजर वो अपनी जमानत याचिका वापस ले रहे हैं और निचली अदालत में नए सिरे से याचिका दाखिल करेगें। उमर खालिद ने एक बार फिर ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन ट्रायल कोर्ट के जज ने इस बार भी यह कहकर जमानत देने से मना कर दिया कि परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसलिए कोर्ट अपने पुराने फैसले पर कायम है कि उमर खालिद को जमानत नहीं दी जा सकती। अब उमर खालिद ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जहां शरजील इमाम सहित अन्य आरोपियों के साथ उनकी जमानत पर भी सुनवाई होनी है।
दिल्ली शराब घोटाले के आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए जमानत दे दी कि निकट भविष्य में ट्रायल पूरा होने की संभावना नहीं है। उमर खालिद को जेल में चार साल पूरे हो गए। अभी दिल्ली दंगा मामले में ट्रायल शुरू भी नहीं हुआ है। समय तो इसमें भी लगेगा। लेकिन यह मामला अलग है। आरोप गंभीर है … यहां नियम बदल जायेगा .. UAPA में जेल इज द रूल, बेल इज एक्सेप्शन!!
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