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Opinion

शहीद-ए-आजम भगत सिंह का सपना और आज का भारत

सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है। आज इन तीनों सेनानियों के बलिदान के 93 साल पूरे हो चुके हैं। कोर्ट के आदेश के मुताबिक इन तीनों को 24 मार्च 1931 को सुबह आठ बजे फांसी लगाई जानी थी, लेकिन 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को देर शाम करीब सात बजे फांसी दे दी गई।

Author Edited By : News24 हिंदी Updated: Mar 23, 2025 08:38
Bhagat
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जयन्त सिंह तोमर।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों ने जिस भारत का सपना देखा था आज के नौजवानों की आखों से वह मरुस्थल की नदी की तरह कहीं गायब हो चला है। पंजाबी कवि सुरजीत पातर एक कविता में कहते हैं – ‘ तुम्हारी आंखें सुन्दर हैं, नयनों का काजल भी.. पर तुम्हारी इन आंखों का सपना कहां खो गया।’ आज भारत तरक्की के जिस मुकाम पर है उसे देखकर यही पंक्तियां मौजूं नजर आती है।

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भगत सिंह और उनके साथी गाते थे-
‘ इलाही वो दिन भी आयेगा
जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी जमीं होगी
अपना आसमां होगा। ‘

गोरी चमड़ी की जगह रंगीन चमड़ी के शासक बैठ जायेंगे

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आज के हिन्दुस्तान में जितने लोग बेघर हैं उससे ज्यादा घर खाली पड़े हैं। अमीरी गरीबी की बढ़ती खाई का आलम यह है कि सबसे गरीब और सबसे अमीर आदमी की आमदनी के बीच लाखों गुना का अंतर है।‌ डॉ राममनोहर लोहिया 23 मार्च को अपना जन्मदिन इसलिए नहीं मनाते थे क्योंकि इस दिन देश के तीन स्वप्नदर्शी क्रांतिकारी शहीद हुए थे। लोहिया कहते थे किसी भी सभ्य देश में लोगों की आमदनी में दस गुना से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए। शहीदे आजम भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी दल के साथी बार बार कहते थे कि समाज में ‘ चैरिटी ‘ का कोई स्थान नहीं होना चाहिए, कोई किसी की कृपा पर क्यों पले। देश के शासकों के व्यवहार में समता और लोकतंत्र का भाव होना चाहिए। यदि ये न हुआ तो गोरी चमड़ी की जगह रंगीन चमड़ी के शासक बैठ जायेंगे, पर बदलेगा कुछ नहीं।‌

संघर्ष करने के तरीके में था अंतर

भगत सिंह और उनके साथियों पर प्रोफेसर चमनलाल, सुधीर विद्यार्थी, एजी नूरानी, श्री राजशेखर आदि विद्वानों ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं। भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने क्रांतिकारी साथी व लेखक यशपाल ने भी लिखा है। इन किताबों से यह स्पष्ट होता है कि सरदार भगत सिंह और उनके साथियों का जो सपना था, कमोबेश वही सपना महात्मा गांधी और उनके अनुयायियों का था। संघर्ष करने के तरीके में अंतर था लेकिन महात्मा गांधी के समय की कांग्रेस भी आवेदन-निवेदन के दौर से आगे निकल चुकी थी। फिर भी आज रह रह कर यह सवाल उठाया जाता है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी से बचाने के लिए वायसराय को पत्र नहीं लिखा।

महात्मा गांधी के विरुद्ध फैलाई गईं बातें तथ्य से परे

सरदार भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह और संसद – सदस्य रहे महावीर त्यागी के विधिवेत्ता नाती अनिल नौरिया के लेख और वक्तव्यों को यदि पढ़ें – सुनें तो महात्मा गांधी के विरुद्ध फैलाई गईं यह बातें भी तथ्य से परे नजर आती हैं। भगतसिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के जीवन में सबकी रुचि रहती है। करतार सिंह सराभा और फ्रांस के क्रांतिकारी बेलां उनके आदर्श थे। बेलां से ही यह वाक्य लिया कि बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। भगतसिंह ने जब असेम्बली में बम फेंका तब धमाका ही किया, उससे किसी की मौत नहीं हुई।

भगत सिंह ने की थी पत्रकारिता

भगत सिंह ने पत्रकारिता भी की। गणेशशंकर विद्यार्थी के कानपुर से निकलने वाले अखबार साप्ताहिक में ‘ बलवंत ‘ के छद्म नाम से लिखते थे। कांग्रेस के सिपाही विद्यार्थी जी को उनके आदर्शों पर संदेह होता तो क्यों तो छापते और क्यों कार्यालय में शरण देते।’ चांद ‘ के फांसी अंक में भगत सिंह के ‘ प्रताप ‘ में छपे लेख सुरक्षित हैं। भगत सिंह और उनके साथियों के सपनों और आदर्शों को ठीक से समझकर हम एक बेहतर भारत बना सकते हैं जिसमें किसी भी किस्म की गैर-बराबरी और और हिंसा का कोई स्थान नहीं होगा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)



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News24 हिंदी

First published on: Mar 23, 2025 07:37 AM

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