लंदन से अनुरंजन झा
Bihar Politics Nitish Kumar Lalu Prasad Yadav: बिहार में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हो रहा है और राजनीतिक गलियारों से लेकर आम लोगों तक एक बार फिर चर्चा ‘पलटूराम चाचा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार’ की है। नीतीश अगर फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं तो 9वीं बार शपथ लेंगे और एक बार चुनाव जीतने के बाद अपनी ही सरकार गिरा-गिराकर तीसरी बार लगातार मुख्यमंत्री बनेंगे। इस मामले में नीतीश कुमार भारत ही नहीं दुनिया के इकलौते और अनोखे नेता होंगे जो अपनी ही सरकार गिराकर फिर से नई सरकार बनाते हैं और उसके मुखिया बनते हैं।
ये आलम तब है जब उनकी पार्टी का न तो जनाधार वैसा है जैसा उनकी विरोधी पार्टियों का है और न ही सीटें उतनी हैं जितनी उनके विरोधियों के पास हैं, तो है न कमाल, जी इसी कमाल का नाम है नीतीश कुमार। लेकिन एक बात मुझे अब खटकती है जब बिहार की चर्चा होती है और लोगबाग नीतीश कुमार को पलटूराम कहते हैँ। वाकई सिर्फ नीतीश कुमार ही पलटूराम हैं? बीजेपी क्या है? क्या वो पलटूराम नहीं है, जब 1 महीने पहले पार्टी के कर्णधार और देश के गृहमंत्री उनके और उनकी पार्टी के लिए बीजेपी में रास्ते बंद करते हैं और अब वोट के लिए उनकी पीठ पर हाथ धर देते हैं।
क्या बिहार में आरजेडी पलटूराम नहीं है, जिसके सुप्रीमो नीतीश कुमार को हर दो साल में केंचुल छोड़ने वाला सांप कहते हैं और फिर सत्ता पाने के लिए उनकी गोद में जा बैठते हैं। और क्या बिहार की जनता पलटूराम नहीं है जिसमें एक तबका जो अभी नीतीश को भला कह रहा होता है वो अगले ही पल नीतीश कुमार के पाला बदलते ही उनको बुरा कहने लगता है और जो बुरा कह रहा होता है वो उनकी शान में कसीदे पढ़ने लगता है। तो आखिर बिहार में नीतीश कुमार ही अकेले पलटूराम क्यूं हुए? ऐसे में तो सब पलटूराम हैं।
यहां सवाल उठता है कि नीतीश कुमार क्यूं बिहार में सभी दलों के लिए भी और जनता के लिए भी मजबूरी बन गए हैं। क्या बिहार में किसी का कोई दीन-ईमान नहीं है न नेताओँ का, न किसी पार्टी का और न ही वहां के वोटर्स का कि हर बार नीतीश कुमार को थाली में सजाकर कुर्सी सामने रख दी जाती है। ये जानते हुए कि नीतीश कुमार जहां रहते हैं वहां के नहीं होते हैं तो आखिर नीतीश कुमार मजबूरी क्यूं? जब आप इसकी जड़ में जाएंगे तो पाएंगे कि बिहार के वोटर्स के जेहन में धंसी जातिवादी राजनीति के जहर का प्रभाव पिछले 35 सालों में इतना गहरा हुआ है कि है कि उनको कोई बेहतर प्रशासक नसीब ही नहीं हो रहा है।
मूल वजह है जातिवाद
गौर से देखिए तो पता चलता है कि बिहार में पिछले 50 सालों में लालू यादव के कद का कोई नेता नहीं हुआ, लेकिन ये भी सच है कि लालू यादव ने जितना भ्रष्टाचार किया, उतना किसी ने नेता नहीं किया। परिवारवाद की जो पराकाष्ठा लालू यादव की राजनीति में देखने को मिली, वैसी कहीं और नहीं दिखती। इन सालों में जितने बुद्धिजीवी और ब्यूरोक्रेट्स बिहार ने दिए उतने किसी और राज्य ने नहीं दिए, लेकिन दूसरी तरफ जितना पलायन हुआ उतना किसी और राज्य से नहीं हुआ। जितना अपराध बिहार में इन सालों में हुआ, उतना कहीं और नहीं हुआ। इसकी मूल वजह है जातिवाद।
नीतीश एक पहेली ! नीतीश कुमार बार-बार क्यों बदलते रहते हैं पाला?
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— News24 (@news24tvchannel) January 27, 2024
जातिवाद यहां की जनता की नसों में खून बनकर दौड़ता है और उनको विकल्प ही नहीं नजर आता। जब विकल्प का अभाव होता है तो आप वोट किसी को दीजिए, विरोध किसी का कीजिए क्या ही फर्क पड़ता है शासक एक ही रहेगा। ये जातिवाद का ही असर है कि बिहार में चाहे बीजेपी हो या आरजेडी, चाहे कांग्रेस हो या जेडीयू कोई भी अकेले अपने दम पर न तो चुनाव में उतरने की सोच सकता है और न ही सरकार बना सकता है।
फिर नतीजा यही निकलता है कि आप जिस नेता के विरोध में, जिस पार्टी के विरोध में अपना विधायक चुनते हैं उसकी पार्टी विरोधियों के साथ खड़ी हो जाती है, वोटर ठगा रह जाता है। तो आखिर ये वोटर ठगा हुआ क्यूं रह रहा है। ये जानते हुए कि उसे फिर ठगा जाएगा। अपने लिए दूसरा रास्ता क्यूं नहीं तलाशता, तो उसकी वजह साफ और सिर्फ ये है कि वो जातिवाद के दायरे से बाहर नहीं निकलना चाहता। उसके बच्चे उच्च शिक्षा पाकर बेरोजगार रहें, उसे फिक्र नहीं है, लेकिन वो अपनी जाति के नवीं फेल के हाथ सत्ता दे सकता है। उसके बच्चे बिहार से बाहर जाकर भले ही मजदूरी के नाम पर शोषित होते रहें, लेकिन वो अपनी जाति के नेता की पगड़ी न उतरे, उनके गले से मखाना की माला न उतरे, इसके लिए सब कुछ दांव पर लगा देगा।
किसी के पास कोई चेहरा नहीं
भले ही लालू यादव के पुत्र तेजस्वी उभरे हैं, लेकिन बिहार में बीजेपी, कांग्रेस, आरजेडी किसी के पास कोई चेहरा नहीं है जो नीतीश कुमार के मुकाबले कह सके कि ये रहा मेरा मुख्यमंत्री और हम लड़ेंगे अकेले चुनाव और इन पलटूराम से बिहार को दिलाएंगे मुक्ति। ऐसे हालात देखकर बरबस ख्याल आता है, बिहार में इन पार्टियों को जेडीयू में अपना विलय कर देना चाहिए, नहीं तो सत्ता बदलती रहेगी, नेता बदलते रहेंगे और आप अपना वोट किसी को भी दें आप परिणाम एक नहीं निकलेगा- नीतीश कुमार मुख्यमंत्री।
बिहार की जनता से मेरा कहना है कि आप अपने वोट की ताकत समझ ही नहीं पा रहे हैं। इसलिए इन पलटूरामों के चक्कर में खुद भी पलटूराम बने फिर रहे हैँ। इसलिए अपने बीच से विकल्प तलाशिए और पलटू राजनीति करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाइए। जहां तक इस बार की कहानी में बात बीजेपी की है, तो जिस पार्टी ने 2024 के आम चुनाव के लिए 400 सीटों का आंकड़ा पार करने का टारगेट सेट कर रखा हो वो बिहार की 40 सीटों को जाया कैसे होने देगा, उसे पता है कि अभी बात दिल्ली की सत्ता की है, बिहार की जनता की बारी जब आएगी तब सोचेंगे, लेकिन वो तभी सोचेंगे जब आप उन्हें मजबूर करेंगे, न कि आप भी उनकी तरह पलटूराम बनेंगे।
(लेखक ब्रिटिश संस्था ‘गांधियन पीस सोसायटी’ के चेयरमैन और ‘भारतिका’ के संस्थापक हैं, इन दिनों लंदन में रहते हुए भारत-यूरोप संबंधों पर शोधरत हैं।)
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