करीब 8 साल पहले मेरे पास सवालिया अंदाज में एक मैसेज आया- तुम औरंगजेब को रहमतुल्लाह अलैह क्यों नहीं लिखते हो? मैं हैरान था कि कोई एक लेखक से ऐसी उम्मीद कैसे कर सकता है। करीब 6 साल पहले मुझे महाराष्ट्र से एक फोन आया। फोन करने वाले ने कहा कि वो एक समूह से जुड़ा है और मुझे ‘ठीक’ कर देगा। मैंने पूछा, आपकी नाराजगी का कारण क्या है। उसने कहा कि आप औरंगजेब पर क्यों लिखते हो। औरंगजेब पर इस तरह की नाराजगियां मुझे अक्सर देखने को मिलती हैं और अब ये बढ़ती जा रही हैं।
हम एक ऐसे दौर में हैं जहां आप तथ्यों पर बात नहीं कर सकते। या तो औरंगजेब विरोधी हैं या फिर औरंगजेब समर्थक। ये हालात सचमुच चिंता पैदा करते हैं। हम कहां आ गए। मैं इसकी राजनीति पर बात नहीं करूंगा क्योंकि उसके लिए हमारे चैनल, अखबार और सोशल मीडिया बहुत है। आप वहां से वही हासिल कर रहे हैं जो आपने बीते कुछ सालों में चाहा है।
कैसा था औरंगजेब?
अब आते हैं औरंगेजब पर मैं क्या सोचता हूं, ये एक ऐसा सवाल है जिसे मुझे मेरे दोस्तों ने, मेरे पुराने बॉस ने भी पूछने में गुरेज नहीं किया। सभी ये जानना चाहते हैं कि तुम बताओ कि औरंगजेब कैसा था? मैंने हमेशा कहा कि औरंगजेब कैसा था ये जानने के लिए पढ़िए। अगर आप मुझसे पूछ रहे हैं तो मेरी नजर में वह सिर्फ एक बादशाह था इससे ज्यादा कुछ नहीं। एक ऐसा बादशाह जो अपनी सीमाएं बढ़ाना चाहता था। एक ऐसा बादशाह जो पूरी सल्तनत पर इस्लामिक व्यवस्था लागू करना चाहता था, एक ऐसा बादशाह जिसकी डिक्शनरी में सुलह शब्द था ही नहीं, जो जिद्दी था।
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आक्रामक था औरंगजेब?
मुझे ऐसे कई लोग मिले जो औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़ने पर बेहद आक्रामक नजर आते हैं। उन्हें होना भी चाहिए लेकिन मेरा सवाल है कि आप औरंगजेब को इतिहास में अकेले निकाल कर क्यों देखना चाहते हैं। भारत का इतिहास ऐसे कई राजाओं और बादशाहों से भरा पड़ा जिन्होंने दूसरे धर्म के पूजा स्थल तोड़े, जुल्म ढाए फिर औरंगजेब को लेकर इतनी दीवानगी क्यों। उदाहरण के लिए अशोक का पुत्र जालौक जिसने हजारों बौद्ध स्तूपों को ढहा दिया। किताब ‘राजतरंगिणी’ में इसका वर्णन है।
औरंगजेब पर खड़े होते रहते हैं सवाल
ईसा से दो शताब्दी पूर्व आए पुष्यमित्र शुंग ने अपनी विशाल सेना के साथ सियालकोट तक मार्च किया और हजारों की संख्या में बौद्ध साधुओं को मरवाया, सैकड़ों बौद्ध स्तूप तोड़ जाले। उनका सर लाने पर इनाम भी दिया। मिहिरकुल (520 एडी) में आया और उसने 1600 बौद्ध स्तूप तोड़ डाले। ये सिलसिला बहुत लंबा है और इसमें कई बड़े राजाओं के नाम हैं जिन्होंने सन् 11 सौ से पहले-पहले अपनी कार्रवाइयों से तकरीबन बौद्ध धर्म खत्म कर दिया। उनके बौद्ध स्तूप गायब हैं और उनकी जगह आज क्या बना हुआ है अगर इस पर चर्चा शुरू होगी तो विवाद बहुत दूर तक जाएगा।
मुस्लिम राजाओं ने मचाई तबाही
ये बात सही है कि कई मुस्लिम राजा आए और उन्होंने भारत में तबाही मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसमें गौरी, गजनवी प्रमुख हैं। इन्होंने कई मंदिर तोड़े और बड़ा धन कहां से लूटा। 15वीं सदी का सिकंदर लोदी जो खुद हिंदू मां से पैदा हुआ था, हिंदुओं से बेहद नफरत करता था। उसने बड़ी संख्या में मथुरा में कहर ढाया। उसने मथुरा में कई मंदिर तुड़वाए। मूर्तियों को तोड़कर उनको वजन तोलने का काम लिया गया। ये हैरान करता है। लेकिन मैं पूछता हूं कि ये सारे लोग चर्चा से क्यों गायब हैं। सिर्फ औरंगजेब ही क्यों, आप समझ सकते हैं कि ये विशुद्ध राजनीति है।
अगर आप इतिहास के आधार पर हिसाब करने लगेंगे तो हिंदू और मुस्लिम दोनों समाजों को अपने कई धार्मिक स्थलों को बौद्धों को देना पड़ेगा, क्या दोनों तैयार हैं? आप डी एन झा की किताब ‘अगेंस्ट द ग्रेन’ पढ़िये और खुद तय करिए कि उस कालखंड के आधार पर अभी कोई फैसला करना शुरू किया तो कितना घातक साबित होगा। इस किताब में कई प्रामाणिक दस्तावेज मौजूद हैं।
दरअसल दोनों ही समुदायों के राजाओं और बादशाहों ने भारी संख्या में बौद्ध मठों को तोड़ा है और उनकी जगह अपने-अपने धार्मिक स्थल बनाए हैं। अब ये बहस बेमानी है कि पहले यहां क्या बना था और अब यहां क्या है। इतिहास समझने और खुद को वो गलतियां न दोहराने के लिए होता है न कि उसमें घुसकर खुद को तबाह कर लेने के लिए। दूसरों के दुख में अपना सुकून मत तलाशिये, ये घातक है आपके लिए, आपके परिवार के लिए, समाज के लिए और देश के लिए। जय हिंद…
औरंगजेब के बारे में लेखक अफसर अहमद के निजी विचार हैं जो जाने-माने पत्रकार हैं और “औरंगजेब: नायक या खलनायक” नामक छह खंडों वाली पुस्तक श्रृंखला के लेखक हैं। यह श्रृंखला मुगल सम्राट औरंगजेब के जीवन और नीतियों की जांच करती है। पुस्तक श्रृंखला का उद्देश्य ऐतिहासिक तथ्यों की सटीकता की जांच करना और औरंगजेब से जुड़े प्रमाणों का विश्लेषण करना है, जिसमें राजपूतों के साथ उनके संबंध, उनकी नीतियां, और मुगल परिवार के भीतर सत्ता संघर्ष शामिल हैं।
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