Pregnancy Test Methods: आज के समय में पीरियड्स मिस होने पर महिलाएं तुरंत प्रेग्नेंसी किट मंगाकर जांच कर लेती हैं, लेकिन पुराने जमाने में जब यह प्रेग्नेंसी किट नहीं हुआ करती थी तब भी प्रेग्नेंसी की जांच की जाती थी। इस जांच के लिए महिलाएं कई प्रकार के तरीके अपनाती थीं, जिससे पता चल जाता था कि गर्भ ठहरा है या फिर नहीं ठहरा है।
आज के करीब 3500 साल पूर्व भी प्रेग्नेंसी के टेस्ट किए जाते थे। न्यू किंगडम एरा के पैपीरस यानि लिखित दस्तावेजों में इस बात का जिक्र है कि मिस्र में कई सौ साल पहले भी प्रेग्नेंसी के टेस्ट किए जाते थे। इस लिखित दस्तावेज में कई और रोगों के इलाज के बारे में भी बताया गया है।
अनाजों से होती थी पहचान
पैपीरस के मुताबिक, 1500 से 1300 ईसा पू. के बीच महिलाओं की गर्भावस्था की जांच के लिए अनाजों का उपयोग किया जाता था। इसके लिए एक बैग में जौ और एक बैग में गेहूं डाला जाता है। इसके बाद दोनों बैग्स में उस महिला का यूरिन डाला जाता था, जिसका टेस्ट होना है। अगर दोनों में से कोई भी अनाज अंकुरित होने लगता था तो बात साफ हो जाती थी कि वह महिला प्रेग्नेंट है। अगर अंकुरण नहीं होता था तो इसका अर्थ है कि महिला गर्भवती नहीं है।
रिसर्च में काफी हद तक हुआ है सिद्ध
1960 के दशक में किए गए वैज्ञानिक शोधों से यह पता चला कि गर्भवती महिला के मूत्र में ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रॉपिन (hCG) नामक हार्मोन होता है, जो बीजों के अंकुरण को तेज कर सकता है। यह वही हार्मोन है, जिसका उपयोग आज के प्रेग्नेंसी टेस्ट किट में किया जाता है। इस प्रकार, यह तरीका काफी हद तक वैज्ञानिक आधार रखता था।
12 चिकित्सा ग्रंथ का मिलता है उल्लेख
एक रिपोर्ट के मुताबिक प्राचीन मिस्र से जुड़े कम से कम 12 संरक्षित चिकित्सा ग्रंथ हैं। हालांकि ये क्षतिग्रस्त हैं और प्राचीन लिपि में हैं। इनको पढ़ना और इनका अनुवाद करना काफी टफ है। फिलहाल इनके अनुवाद की कोशिश जारी है।
नाड़ी परीक्षण
प्राचीन भारतीय और चीनी चिकित्सा में गर्भावस्था का पता लगाने के लिए नाड़ी परीक्षण किया जाता था। आयुर्वेद के जानकार और चीनी चिकित्सक महिला की कलाई की नाड़ी (पल्स) को जांचकर यह अंदाजा लगाते थे कि वह गर्भवती है या नहीं। यह माना जाता था कि गर्भवती महिला की नाड़ी की गति सामान्य महिलाओं की तुलना में थोड़ी अधिक होती है। आधुनिक चिकित्सा के अनुसार, यह बात आंशिक रूप से सही है। गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है और मेटाबॉलिज्म तेज हो जाता है, जिससे कुछ मामलों में नाड़ी दर बढ़ सकती है। हालांकि, यह तरीका पूरी तरह से सटीक नहीं था।
यूरिन से होती थी जांच
कई प्राचीन संस्कृतियों में सुबह के पहले यूरिन (पेशाब) को इकट्ठा करके कुछ घंटों तक छोड़ दिया जाता था। यदि यूरिन में बदलाव (झाग, गाढ़ापन या रंग परिवर्तन) देखा जाता था, तो इसे गर्भावस्था का संकेत माना जाता था। कुछ जगहों पर यूरिन में कुछ अन्य चीजों को मिलाकर भी रीक्षण किया जाता था। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो गर्भवती महिलाओं के यूरिन में hCG हार्मोन की उपस्थिति कुछ केमिकल चेंज ला सकती है, लेकिन यह तरीका आधुनिक टेस्टिंग की तुलना में बहुत अप्रासंगिक था।
शारीरिक लक्षण
पुराने समय में महिलाएं अपने शरीर में होने वाले बदलावों के आधार पर भी गर्भावस्था का अनुमान लगाती थीं। यदि महिला को लगातार मतली, सिर दर्द, भूख में बदलाव, चक्कर आना और स्वाद में परिवर्तन महसूस होता था, तो इसे गर्भावस्था का संकेत माना जाता था। वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो गर्भधारण के शुरुआती दिनों में शरीर में प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे ये लक्षण दिखाई देते हैं। आज भी डॉक्टर इन्हीं प्रारंभिक लक्षणों के आधार पर महिलाओं को गर्भावस्था की जांच कराने की सलाह देते हैं।
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