Womens Reservation Bill OBC Quota Controversy: महिला आरक्षण बिल 2023, नारी शक्ति वंदन अधिनियम संसद के दोनों सदनों में पास हो गया है, जिसे अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। मंजूरी मिलने के बाद, परिसीमन और जनगणना करके इसे लागू किया जाएगा, जिसमें अभी करीब 3 से 4 साल का समय लगेगा। वहीं बिल को लेकर इससे भी ज्यादा जरूरी बात है, इसमें कोटे को लेकर छिड़ा विवाद? बिल में SCST कैटेगरी की महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है, लेकिन पिछड़ी जातियों OBC कोटे को लेकर विवाद छिड़ा है और बसपा ने 33 नहीं 50 फीसदी आरक्षण की मांग की है। वहीं फारूक अब्दुल्ला ने मुस्लिम महिलाओं के लिए भी ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर OBC कोटा विवाद क्यों है और 33 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का ही प्रावधान क्यों किया गया…
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देश में करीब 60 फीसदी आबादी OBC
लोकसभा और राज्यसभा में चर्चा के दौरान महिला आरक्षण बिल में OBC महिलाओं को भी कोटा दिए जाने की मांग की गई, ताकि इस पिछड़े वर्ग की महिलाओं का भी राजनीतिक उत्थान हो पाए। अब से पहले 8 बार संसद में बिल पास न होने का कारण भी यही कोटा था। इस मुद्दे को राज्यसभा में कांग्रेस सांसद रंजीता रंजन ने उठाया था। उन्होंने कहा था कि अगर बिल में पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं होगा तो यह उनके साथ नइंसाफी होगी। ऐसे में देश की 60 प्रतिशत OBC आबादी के लिए बिल में संशोधन अवश्य किया जाना चाहिए। देश को पहला OBC प्रधानमंत्री भाजपा से आया। सरकार में 27 मिनिटर इसी समुदाय से हैं। 303 लोकसभा सांसदों में से 85 यानी 29% सांसद OBC हैं। देश में भाजपा के 1358 विधायकों में से 27% OBC हैं तो OBC महिलाओं को आरक्षण देने में भाजपा सरकार को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
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महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण ही क्यों?
महिला आरक्षण बिल को लेकर एक और बड़ा सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर 33 फीसदी यानी एक तिहाई आरक्षण ही क्यों, 50 फीसदी क्यों नहीं, जबकि देश में समानता का अधिकार लागू हैं तो इसका जवाब 3 तर्कों के आधार पर राजनीतिज्ञ माहिरों ने दिया है। पहला सरकारी संस्थानों में महिलाओं की मौजूदगी, खासकर पुलिस विभाग में, जहां महिलाओं के होने से भ्रष्टाचार और हिंसा खत्म होता है। पुलिस विभाग में महिलाएं होने से पीड़िताओं का हौंसला बढ़ता है, लेकिन क्योंकि पुलिस विभाग में पुरुषों का होना भी अनिवार्य है, इसलिए समाज के इस महत्वपूर्ण में विभाग में महिलाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित करने के लिए 33 फीसदी आरक्षण दिया गया है। दूसरा तर्क यह है कि एक रिसर्च के अनुसार, जब किसी संस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती है तो वर्किंग पर उसका प्रभाव पड़ने लगता है, इसलिए 33 फीसदी आरक्षण दिया गया।
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राजनीति और महिलाओं को लेकर पुरुषों की मानसिकता बदलेगी
तीसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि आरक्षण मिलने से सरकारी संस्थानों में महिलाओं के काम करने से जुड़ रुढ़िवादी सोच खत्म होगी। पुरुषों का कहना है कि महिलाएं अच्छी नेता नहीं हो सकतीं। वे राज नहीं कर सकतीं। राजनीतिक दांव पेंच समझकर उनसे बाहर निकलकर नियम कानून नहीं बना सकतीं। ऐसे में जब राजनीति में महिलाओं को काम करते, नेतृत्व करते पुरुष देखेंगे तो उनकी महिलाओं को लेकर गलतफहमी खत्म हो जाएगी। 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान इसलिए किया गया है, ताकि राजनीति में महिलाओं को काम को आजमाया जा सके और उनको लेकर पुरुषों की मानसिकता बदली जा सके। अगर यह प्रयास सफल हुआ। महिलाओं ने नेशनल स्तर पर खुद को राजनीति में स्थापित कर लिया तो बिल में बदलाव करके राजनीति में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ाई जा सकती है।