नई दिल्ली: राहुल गांधी को मानहानि केस में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। मोदी सरनेम मामले में मिली दो साल की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि इस बात में इनकार नहीं किया जा सकता कि जो भी कहा गया, वह ठीक नहीं था। जनता के बीच बोलते वक्त नेताओं को सावधानी बरतनी चाहिए। यह राहुल गांधी का कर्तव्य बनता है कि आगे इसका ध्यान रखें।
अधिकतम सजा की जरूरत क्यों थी?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने अपने आदेश में यह साफ नहीं किया कि अधिकतम सजा की जरूरत क्यों थी? फैसला देते समय जज को अधिकतम सजा की वजह साफ करनी चाहिए थी। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी के वकील महेश जेठमलानी से भी सवाल किया था कि अधिकतम सजा क्यों दी गई। कम सजा भी दी जा सकती थी। 1 साल या 11 महीने की सजा हो सकती थी। ऐसे में राहुल डिस्क्वालिफाई नहीं होते।
राहुल गांधी मामले में सुप्रीम कोर्ट में 3 घंटे बहस चली। इस केस की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई, पीएस नरसिम्हा और संजय कुमार की बेंच ने की। राहुल की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें दीं, वहीं पूर्णेश मोदी की तरफ से महेश जेठमलानी ने दलीलें दीं।
मर्डर या रेप का मामला नहीं है
राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में कहा कि जज का कहना था कि यह मामला गंभीर है, जबकि ऐसा नहीं है। यह कोई समाज के खिलाफ अपराध का केस नहीं है। न ही मर्डर या रेप का मामला है। ऐसे में ये कैसे कहा जा सकता है कि यह एक गंभीर मामला है। मानहानि केस के चलते राहुल गांधी को 8 साल के लिए चुप करा दिया गया?
राहुल गांधी की नीयत किसी मोदी सरनेम वाले को नीचा दिखाने की नहीं थी
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि लोकतंत्र में हमारी असहमतियां होती हैं। हिंदी में बोलें तो हम इसे शालीन भाषा कहते हैं। मैं यह समझता हूं और मुझे नहीं लगता कि राहुल गांधी की नीयत किसी को मोदी सरनेम वाले सभी लोगों को नीचा दिखाने की थी। यह कोई गंभीर अपराध नहीं है। राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा के कार्यकर्ताओं ने कई केस दर्ज कराए हैं। लेकिन वे किसी में दोषी नहीं पाए गए।
राहुल गांधी के वकील ने कहा कि राहुल गांधी संसद के दो सत्र में हिस्सा नहीं ले पाए। वायनाड लोकसभा क्षेत्र की जनता अपने प्रतिनिधि से वंचित है। मोदी कम्युनिटी में जो लोग भी राहुल के बयान से खफा हैं, सिर्फ भाजपा नेता और कार्यकर्ता हैं।
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