पहलगाम आतंकी हमले के बाद से ही भारतीय सेना लगातार एक्शन में है। सेना ने 6 और 7 मई को पाकिस्तान स्थित आतंक के 9 ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की। इसमें पुलवामा और कंधार विमान हाइजैक के खुंखार आतंकियों के साथ 100 से अधिक आतंकी मारे गए। इसके बाद पाकिस्तान ने भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रोन और मिसाइल से हमले किए। इसके जवाब में भारत ने कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के 9 एयरबेस तबाह कर दिए। भारत की कार्रवाई से घबराए पाकिस्तान ने सीजफायर को लेकर बातचीत की। इसके बाद भारत भी सीजफायर पर सहमत हो गया।
सीजफायर के बाद ऑपरेशन सिंदूर जारी
भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की सहमति के बाद भी भारतीय सेना का ऑपरेशन सिंदूर जारी है। पिछले 48 घंटों में सेना ने बड़ी कार्रवाई करते हुए शोपियां और त्राल के जंगल में 6 आतंकियों को ढेर कर दिया है। भारतीय सेना चप्पे-चप्पे पर आतंकियों का खात्मा कर रही है। सूत्रों की मानें तो पहलगाम आतंकी हमले के दोषी अभी भी कश्मीर के त्राल के जंगलों में छिपे हैं। ऐसे में आइये जानते हैं त्राल के जंगल आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह कैसे बन गए?
आतंकियों को मिलता है नेचुरल कवर
कश्मीर के चार जिले आतंकियों के लिए सबसे मुफीद माने जाते हैं इसमें शोपियां, कुलगाम, पुलवामा और अनंतनाग शामिल हैं। कश्मीर में आतंकियों के लिए सबसे मुफीद माना जाता है दक्षिण हिस्से में स्थित त्राल का जंगल। जोकि सबसे अधिक घना और खतरनाक माना जाता है। यह जंगल पथरीली जमीन और अपनी दुर्गमता के चलते हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के छिपने में मददगार रहा है। इस जंगल में पाइन और देवदार के पेड़ पाए जाते हैं जोकि इलाके को और घना बना देते हैं। इस जंगल में सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच पाती है ऐसे में जंगल में दिन में भी अंधेरा छाया रहता है। ये आतंकियों को नेचुरल कवर देता है।
आतंकियों के लिए मददगार है त्राल के जंगल
साल 2000 से ही हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों के लिए शोपियां, कुलगाम और अनंतनाग के जंगलों में लंबे समय तक बेस बना रहा। भारतीय सेना के ऑपरेशन में मारा गया बुरहान वानी भी अनंतनाग और त्राल के जंगलों में कई बार छिप चुका है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि कई महीनों तक जंगलों में छिपे रहने के बावजूद आतंकी कैसे गुजर-बसर करते हैं। इसके लिए वहां रहने वाले कश्मीरी ही जिम्मेदार है। ये लोग आतंकियों तक राशन, दवाइयां और जरूरत का सामान जंगल तक पहुंचाते हैं। इसकी वजह यह है कि यह लोग स्थानीय होते हैं और लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाते हैं ऐसे में सेना और सुरक्षा एजेंसियां इन पर शक नहीं करती है।
जंगल इतने घने कि दिखना बंद हो जाता है
इसके अलावा ये लोग आतंकियों के साथ मिलकर कुछ ड्रॉप पॉइट्ंस तय कर लेते हैं इसके बाद आतंकी मौका देखकर फरार हो जाते हैं। कुलगाम और शोपियां जैसे इलाकों में सेब के बागानों का इस्तेमाल आतंकी छिपने के लिए करते हैं। इन जंगलों में सुरक्षाबलों की परेशानी का एक बड़ा कारण इनका घना होना है। कई बार गहराई में पहुंचने के बाद तो यहां 50 मीटर के बाद दिखना भी बंद हो जाता है। ऐसे में सेना की गाड़ियां यहां नहीं पहुंच पाती है। समान विचारधारा वाले स्थानीय लोग इन आतंकियों से मिले होते हैं ऐसे में सेना के मूवमेंट भी लगातार लीक होते हैं। जिससे सेना पर ही हमला हो जाता है।
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नहीं पहुंच पाता सेना का ड्रोन
जंगल घना होने के कारण सेना के ड्रोन भी यहां निगरानी नहीं कर पाते हैं। मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से भी यहां दिक्कत होती है। बारिश और बर्फबारी के कारण ये इलाके और ज्यादा फिसलन भरे हो जाते हैं। ऐसे में सेना यहां पर केवल गर्मियों में ही ऑपरेशन कर पाती है। इसके अलावा जब भी सेना एक्शन के लिए पहुंचती है तो किसी इलाके में नागरिकों को नुकसान नहीं पहुंचे इसके लिए अलर्ट जारी करती है। ऐसे में मौका पाकर आतंकी वहां से भाग जाते हैं।
भारतीय सेना के लिए त्राल के जंगल आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के लिहाज से हमेशा से ही दुर्गम क्षेत्र रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब तक आम कश्मीरी नहीं चाहेंगे यहां से आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई मुश्किल है।
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