Tej Pratap Jan Shakti Janata Dal impact on RJD vote share Bihar 2025: पूर्व बिहार मंत्री तेज प्रताप यादव के अपनी नई पार्टी ‘जन शक्ति जनता दल’ बनाने के बाद बिहार की सियासत में नया मोड़ आ गया है. जहां ये पार्टी तेज प्रताप के राजनीतिक सफर में एक नया अध्याय जोड़ेगी वहीं, बिहार में यादव बाहुल्य क्षेत्रों की राजनीति भी बदलेगी.
दरअसल, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से निष्कासित होने के बाद तेज प्रताप ने पांच छोटे क्षेत्रीय दलों का गठबंधन घोषित किया है, जिससे अभी तक लालू यादव के पीछे खड़े खासकर यादव समुदाय के लोग दो गुटों में बंट गए हैं, कुछ अभी भी लालू के साथ हैं कुछ जो उनसे खफा हैं या तेजस्वी के सामने अपना राजनीतिक सफर खत्म देख रहे हैं तो वह तेज प्रताप के पीछे आकर खड़े हो गए हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं. यहां की 243 विधानसभा चुनावों के लिए कभी भी तारीखों का ऐलान हो सकता है. ऐसे में नई पार्टी के ऐलान के साथ तेज प्रताप का दावा है कि उनकी पार्टी स्थापित राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती देगी.
2015 में तेज प्रताप वैशाली जिले के महुआ विधानसभा क्षेत्र से जीते थे
राजनीतिक जानकारों की मानें तो तेज प्रताप की नई पार्टी मुख्य रूप से यादव-प्रधान क्षेत्रों तक ही सीमित रह सकती है. दरअसल, तेज प्रताप का राजनीतिक प्रभाव मुख्य रूप से वैशाली जिले के महुआ विधानसभा क्षेत्र में केंद्रित है जहां उन्होंने 2015 के चुनाव में जीत हासिल की थी. यह सीट यादव समुदाय के लिए एक मजबूत गढ़ रही है और तेज प्रताप ने यहां विकास कार्यों के जरिए अपनी पकड़ मजबूत रखते हैं.
रघोपुर, गोपालगंज और सीतामढ़ी के आसपास के इलाकों में तेज प्रताप का असर
रघोपुर, गोपालगंज, सारण और सीतामढ़ी के आसपास के इलाकों में भी तेज प्रताप की व्यक्तिगत लोकप्रियता का असर देखा जा सकता है. गठबंधन की रणनीति के तहत वह करीब 15 सीटों पर फोकस कर रहे हैं जहां पारंपरिक रूप से आरजेडी का वोट बैंक मजबूत रहा है. हालांकि गठबंधन के पास फिलहाल कोई जीता हुआ विधायक या सांसद नहीं है, जिससे उनकी चुनौतियां बढ़ सकती हैं।
तेज प्रताप की इस नई सियासी यात्रा का भविष्य अनिश्चित
फिलहाल अभी की बात करें तो तेज प्रताप की इस नई सियासी यात्रा का भविष्य अनिश्चित नजर आता है। खासकर बिहार के इतिहास को देखते हुए राज्य में नई पार्टियां अक्सर वोट काटने वाली भूमिका ही निभाती रही हैं। नई पार्टी का लंबे समय तक टिक पाना मुश्किल रहा है. उदाहरण के तौर पर लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने 2000 के दशक में दलित वोटों को एकजुट किया लेकिन आंतरिक कलह के कारण वह बंट गई।
मिल सकता है लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे होने का फायदा
इतिहास में देखें तो जनता दल (यूनाइटेड) ने शुरू में क्षेत्रीय मुद्दों पर जोर दिया लेकिन गठबंधन की राजनीति में फंसकर अपनी पहचान खो दी. हाल के वर्षों में इंकलाब पार्टी और हिंद सेना जैसी नई पार्टियां चुनावी मैदान में उतरीं लेकिन वे स्पॉइलर बनकर रह गईं और कोई स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ सकीं. तेज प्रताप का गठबंधन भी अगर बड़े दलों से टकराव में उलझता है तो वह भी श्रेणी में आ सकता है . फिर भी उन्हें लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे होने का फायदा मिल सकता है, खासकर अगर वे युवा और असंतुष्ट यादव मतदाताओं को आकर्षित कर लें तो उन्हें चुनावों में कुछ फायदा होने की उम्मीद है।
सबसे ज्यादा नुकसान आरजेडी को हो सकता है
सवाल यह है कि क्या यह नया गठबंधन एनडीए, इंडिया गठबंधन या प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पर कोई ठोस असर डाल पाएगा? विश्लेषकों के अनुसार इसका सबसे ज्यादा नुकसान आरजेडी को हो सकता है क्योंकि तेज प्रताप परिवार के ही सदस्य हैं और भाई तेजस्वी यादव के साथ खुला टकराव चल रहा है. यादव वोटों का एक हिस्सा बंटने से इंडिया ब्लॉक कमजोर पड़ सकता है जबकि एनडीए को अप्रत्यक्ष फायदा मिलेगा.
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