दिनेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार
Sarojini Naidu Birthday Special Memoir: आजाद भारत में संयुक्त प्रांत की पहली राज्यपाल सरोजिनी नायडू किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। बांग्ला माता-पिता की संतान नायडू पर दोनों का काफी असर था। महज 12 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास करके उन्होंने अपनी मेधा का परिचय दे दिया था।
मेधावी सरोजिनी से प्रभावित होकर निजाम ने छात्रवृत्ति दी तो पढ़ाई करने लंदन पहुँच गईं। समय आगे बढ़ा तो स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ीं। वे रूढ़ियों को तोड़ते हुए आगे बढ़ीं और कई चीजें ऐसी करने में कामयाब रहीं, जो देश में पहली बार किसी महिला ने किया। सरोजिनी नायडू की जयंती पर आइए जान लेते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ रोचक, प्रेरक किस्से।
Sarojini Naidu greeting Americans: pic.twitter.com/kXZgwejHXT
— Nehruvian (@_nehruvian) February 13, 2024
बांग्ला परिवार में हुआ था जन्म
हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 को सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। उनके माता-पिता मूलतः ढाका के रहने वाले थे। उनके पिता का नाम घोरनाथ चट्टोपाध्याय और मां का नाम वरदा सुंदरी था। पिता जाने-माने वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे तो मां कवयित्री। मां वरदा सुंदरी बांग्ला में कविताएं लिखती थीं।
साथ ही साथ पिता घोरनाथ चट्टोपाध्याय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख सदस्यों में से एक थे और हैदराबाद में निजाम कॉलेज की स्थापना भी की थी। सरोजिनी नायडू के बाद घोरनाथ चट्टोपाध्याय और वरदा सुंदरी के सात संतानें और हुईं। सबसे बड़ी सरोजिनी बचपन से ही पढ़ने में होनहार थीं। यहां तक कि उन्होंने 10वीं की परीक्षा सिर्फ 12 साल की उम्र में ही पास कर ली थी।
WR celebrates increasing contribution of women in the running of our world on #NationalWomensDay
Paying our respect to the Nightingale of India, first governer of UP& freedom fighter #SarojiniNaidu on her birth anniversary. She is proof that women can flourish in every role she… pic.twitter.com/lTEOjAhGu6
— Western Railway (@WesternRly) February 13, 2024
13 साल की उम्र में रची पहली कविता
उम्र थी 13 साल और मां का ऐसा प्रभाव कि सरोजिनी नायडू ने अपनी पहली कविता रच ली। कविता का शीर्षक था लेडी ऑफ द लेक। मां वरदा सुंदरी जहां बांग्ला में कविताएं लिखती थीं वहीं सरोजिनी ने अंग्रेजी में भी कविताएं रचीं। खुद हैदराबाद के निजाम भी सरोजिनी नायडू की कविताओं से काफी प्रभावित होते थे।
हैदराबाद से सरोजिनी नायडू ने शुरुआती पढ़ाई की और फिर निजाम ने उन्हें स्कॉलरशिप दी, जिससे आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज में दाखिला ले लिया। फिर कैम्ब्रिज के गिरटन कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की। वहां भी पढ़ाई के साथ-साथ कविताएं रचने का सिलसिला जारी रहा।
‘गोल्डन थ्रैशोल्ड’ नाम से उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। फिर दूसरे कविता संग्रह ‘बर्ड ऑफ टाइम’ और तीसरे संग्रह ‘ब्रोकन विंग’ ने तो उन्हें जानी-मानी कवयित्री बना दिया।
अंतरजातीय विवाह कर तोड़ी रूढ़ियां
इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान सरोजिनी नायडू की मुलाकात देश की आजादी के लिए लड़ने वाले कई स्वाधीनता सेनानियों से हो चुकी थी। वहीं, उनकी मुलाकात डॉ. गोविंदराजू नायडू से हुई थी। साल 1898 में सरोजिनी पढ़ाई पूरी कर हैदराबाद वापस आ गईं और डॉ. नायडू से शादी की इच्छा जताई, जो एक फिजीशियन थे। डॉ. नायडू भी इसके लिए तैयार थे। दोनों के परिवार वालों ने भी प्रस्ताव पर मुहर लगा दी।
19 साल की उम्र में शादी कर सरोजिनी चट्टोपाध्याय से सरोजिनी नायडू बन गईं। यह शादी इसलिए भी खास थी, क्योंकि उस दौर में दूसरी जाति में शादी करना बेहद मुश्किल था। समाज इसे स्वीकार नहीं करता था, जबकि सरोजिनी ब्राह्मण थीं और डॉ. नायडू गैर ब्राह्मण परिवार के थे. फिर भी सरोजिनी के पिता ने इस अंतरजातीय विवाह में उनका पूरा साथ दिया और यह विवाह काफी सफल भी रहा। दोनों के चार बच्चे हुए, जिनके नाम थे जयसूर्या, पद्मज, रणधीर और लीलामणि।
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कैसर-ए-हिंद मेडल वापस कर दिया था
सरोजिनी नायडू साल 1904 आते-आते देश की आजादी के लिए सक्रिय राजनीति में आ गईं और बंगाल विभाजन के दौरान 1905 में वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गईं। इसी आंदोलन के दौरान उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले, रवींद्रनाथ टैगोर, मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट, सीपी रामा स्वामी अय्यर और और पंडित जवाहर लाल नेहरू से हुई। देश की आजादी और महिलाओं के हक की आवाज बुलंद करने वाली सरोजिनी नायडू के भाषण से हर कोई प्रभावित होता था।
साल 1906 में उन्होंने कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और इंडियन सोशल कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया तो हर कोई सुनता ही रह गया। महिला सशक्तीकरण और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाने के साथ ही हर जगह महिलाओं को जागरूक करती थीं। साथ ही समाजसेवा में भी आगे रहती थीं। साल 1911 में बाढ़ पीड़ितों के लिए काम करने पर उन्हें कैसर-ए-हिंद मेडल से नवाजा गया। हालांकि, अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने यह मेडल लौटा दिया था।
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कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष बनीं
साल 1909 में सरोजिनी नायडू पहली बार मुथुलक्ष्मी रेड्डी से मिलीं और 1914 में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो सरोजिनी नायडू ने इनमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। सन 1924 में उन्होंने भारतीयों के हितों की रक्षा के लिए पूर्वी अफ्रीका और दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की। इसके अगले ही साल 1925 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष बनीं। वह 1928 में कांग्रेस आंदोलन पर व्याख्यान के दौरान उत्तरी अमेरिका भी गई थीं। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ तो गांधी जी के साथ सरोजनी भी जेल गईं। 1931 में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने गांधीजी के साथ हिस्सा लिया था। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक बार फिर जेल भेज दी गईं और 21 महीने तक वहां रहीं।
महात्मा गांधी ने दी थी भारत कोकिला की उपाधि
सरोजिनी नायडू के भाषण कितने प्रभावी होते थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांधी जी ने इससे प्रभावित होकर उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी। यहां तक कि गांधीजी जब भी उन्हें चिट्ठी लिखते थे तो कभी डियर बुलबुल, कभी डियर मीराबाई तो कभी मदर लिखकर संबोधित करते थे।
भारत की पहली महिला राज्यपाल बनीं
देश की आजादी के बाद 1947 में उन्हें संयुक्त प्रांत का राज्यपाल बनाया गया। वह भारत की प्रथम महिला राज्यपाल के रूप में भी जानी जाती हैं। संयुक्त प्रांत ही आज का उत्तर प्रदेश है। राज्यपाल बनने के बाद वह लखनऊ आ गईं, जहां हार्ट अटैक के कारण 2 मार्च 1949 को उनका निधन हो गया।