Same Sex Marriage Verdict Review Petition Filed: समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की गई है। यह याचिका एक नवंबर को दाखिल की गई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17 अक्टूबर को दिए गए उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें समलैंगिक जोड़ों के विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था। याचिका उदित सूद नामक शख्स ने दायर की है। सूद पेटेंट वकील हैं। वे अमेरिका में एक कानूनी फर्म में काम करते हैं। पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्व-विरोधाभासी और स्पष्ट रूप से अन्यायपूर्ण है।
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समलैंगिकों के हक के लिए लड़ाई जारी रखने का दावा
याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में समलैंगिक समुदायों के साथ होने वाले भेदभाव को स्वीकार किया गया है, लेकिन उस भेदभाव का खात्मा करने के लिए कुछ नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में इस बात को भी नजरअंदाज किया गया कि विवाह एक सामाजिक नियम है। इसमें किसी भी धर्म को मानने वाले या न मानने वाले लोग शामिल हो सकते हैं। विवाह का क्या मतलब है, इसे समाज में रहने वाले सभी वर्ग जानते हैं। किसी एक समुदाय, धर्म या वर्ग में इसे बांधा नहीं जा सकता। फैसले के खिलाफ और समलैंगिकों के हक के लिए लड़ाई जारी रहेगी। समुदाय विचार करेगा और चर्चा करेगा कि आगे क्या करना है।
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सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी मान्यता देना संसद का काम बताया था
गौरतलब है कि 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर फैसला सुनाया था। यह फैसला 2018 के ऐतिहासिक फैसले के 5 साल बाद आया। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक यौन संबंधों पर प्रतिबंध को हटा दिया था। वहीं 17 अक्टूबर के फैसले में सुप्रीम कोर्टने समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था और कहा कि वे स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म नहीं कर सकते। सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने का काम संसद का है।
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बच्चा गोद लेने का अधिकार भी समलैंगिकों को नहीं दे सकते
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अदालत कानून नहीं बना सकती। केंद्र और राज्य सरकारें तय करें कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देनी है या नहीं। समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का अधिकार भी नहीं दिया जा सकता है। शादी करने का अधिकार भी संविधान में कोई मौलिक अधिकार नहीं है, इसलिए समलैंगिक जोड़े शादी को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने का भी दावा नहीं कर सकते हैं। CJI चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल ने समलैंगिक जोड़ों के पक्ष में फैसला दिया था। जस्टिस एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने विरोध में फैसला दिया था। बहुमत समलैंगिकों की दलीलों के खिलाफ था।
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