Sabse Bada Sawal : ना तेवर हुआ कम, ना बदला तरीका। आपके सबसे पसंदीदा शो ‘सबसे बड़ा सवाल’ में गरिमा सिंह ने पैनल में मौजूद लोगों से बगैर लाग लपेट, बगैर द्वेष-अनुराग और बगैर किसी पूर्वाग्रह के सीधे सवाल पूछे। इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री, राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे, वरिष्ठ पत्रकार गण प्रदीप सिंह, नीरजा चौधरी, सुकेश रंजन, राजीव रंजन ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया।
विपक्षी एकता के सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे का कहा कि महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ एक नैरेटिव बन सकता है। अगर ये नैरेटिव बनता है तो विपक्षी गठजोड़ फायदे में रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं होता है तो बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए की सत्ता में वापसी हो सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का कहना है कि 2024 के आम चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को सबसे पहले सरकार बनाने का मौका मिलेगा। ऐसे में बीजेपी के लिए छोटी-छोटी पार्टियों के सहयोग से सरकार बनाना आसान हो सकता है। साथ ही नीरजा चौधरी का कहना है कि कांग्रेस अगर बहुत अच्छा प्रदर्शन करती है तो भी पार्टी 60 से 70 सीटों तक सिमट सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री का कहना है कि विपक्षी की एकजुटता बनेगी, लेकिन दिसंबर में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के परिणाम पर भी यह बहुत कुछ निर्भर करेगा। इनका कहना है कि अगर कांग्रेस राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापस होती और राजस्थान में सरकार बनाती है तो तस्वीर कुछ और बन सकती है। साथ तेलंगाना में होने वाले चुनाव का परिणाम भी काफी मायने रखेगा।
नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी पार्टी का चेहरा कौन के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह का कहना है कि यह ज्यादा मायने नहीं रखता है। उनका कहना है कि यह क्षेत्रिए पार्टियों के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। उनका कहना है कि मल्लिकार्जुन खड़गे इतने बड़े नेता नहीं हैं कि वे बहुत ज्यादा वोट बंटोर पाएं।
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह का कहना है कि विपक्षी पार्टियों के लिए आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ पीएम उम्मीदवार का चेहरा घोषित करना मुश्किल होगा। विपक्षी महागंठन चुनाव परिणाम आने के बाद ही अपना चेहरा घोषित कर सकती है। पहले चेहरा घोषित करने से गठबंधन में टूट का खतरा रहेगा।
सुकेश रंजन का कहना है कि ‘INDIA’ नाम रखने से एक नैरेटिव जरूर बना है। साथ ही मौजूदा सरकार के साथ एंटी इंकम्बेंसी भी रह सकता है।
राजीव रंजन का कहना है कि आज से ठीक एक महीना पहले 23 जून को पटना में विपक्षी दलों की हुई बैठक का साइड इफेक्ट दिखने लगा है। इसका ही साइड इफेक्ट है कि अजीत पवार बगावत कर शिंदे सरकार में शामिल हो गए, जीतन राम मांझी नीतीश कुमार को छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए, ओम प्रकाश राजभर एनडीए में शामिल हो गए और प्रधानमंत्री मोदी चिराग पासवान के गले मिले।
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