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Ratan Tata Death Anniversary: रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि आज, एक साल में कंपनी क्या-क्या हुए बदलाव?

रतन टाटा की आज पहली डेथ एनिवर्सरी है. पिछले साल 9 अक्टूबर 2024 को 86 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था. इसके बाद टाटा ग्रुप में लीडरशिप से लेकर कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. रतन टाटा के जाने के बाद से ही ग्रुप में कई विवाद भी लोगों के सामने आए हैं.

Author Written By: News24 हिंदी Author Published By : Versha Singh Updated: Oct 9, 2025 10:44

रतन टाटा की आज पहली डेथ एनिवर्सरी है. पिछले साल 9 अक्टूबर 2024 को 86 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था. इसके बाद टाटा ग्रुप में लीडरशिप से लेकर कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. रतन टाटा के जाने के बाद से ही ग्रुप में कई विवाद भी लोगों के सामने आए हैं.

28 दिसंबर 1937 को नवल और सूनू टाटा के घर जन्मे रतन टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा के परपोते थे. पारसी धर्म वाले रतन टाटा के माता-पिता बचपन में ही अलग हो गए थे. उनकी परवरिश दादी ने की थी. रतन टाटा पढ़ने में हमेशा से अव्वल थे. विदेशों में पढ़ाई की और फिर दादी के बुलावे पर वो भारत लौट आए. टाटा स्टील में मजदूरों के साथ करीब पांच साल तक काम किया.

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रतन टाटा ने ना सिर्फ टाटा समूह के बिजनेस को बुलंदियों पर पहुंचाया बल्कि भारतीय उद्योग जगत को भी बड़ी ताकत दी. उन्होंने टाटा समूह के बिजनेस को आगे बढ़ाने के अलावा कई छोटी कंपनीज और स्टार्टअप्स का साथ दिया और उन्हें फंडिंग भी दी। इन कंपनियों में पेटीएम से लेकर ओला तक कई कंपनीज शामिल हैं. मिली जानकारी के अनुसार, रतन टाटा ने 40 से ज्यादा छोटी कंपनीज व स्टार्टअप में निवेश किया था. इनमें 18 कंपनीज ऐसी हैं जो आज भारतीय उद्योग जगत में बड़ा नाम बन गई हैं.

यह भी पढ़ें- कौन हैं मोहिनी मोहन दत्ता? जिन्हें टाटा की वसीयत से मिलेंगे 588 करोड़ रुपये, मानी शर्तें

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टाटा ग्रुप में है किसकी कितनी फीसदी हिस्सेदारी

रतन टाटा के निधन के बाद क्या हैं विवाद?

रतन टाटा के निधन के बाद उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट्स का चेयरमैन बनाया गया, लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया यह फैसला ट्रस्ट के अंदर एकमत नहीं था. इसके बाद ट्रस्ट में मेहली मिस्त्री जैसे पुराने ताकतवर सदस्यों का एक गुट बन गया, जो नोएल टाटा और टाटा सन्स के चैयरमैन एन. चंद्रशेखरन के फैसलों में सीधा दखल चाहता है.

ट्रस्ट की आंतरिक लड़ाई का सबसे बड़ा असर टाटा सन्स के बोर्ड पर पड़ा, जहां कुछ नॉमिनी डॉयरेक्टर्स के रिटायर होने से सीटें खाली हो गईं. टाटा ट्रस्ट्स को इन सीटों पर नए सदस्यों की नियुक्ति करनी थी, लेकिन नोएल टाटा के नेतृत्व वाला गुट और मिस्त्री गुट किसी भी नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे थे. उदय कोटक जैसे बड़े नामों को भी अस्वीकृति कर दिया गया.

टाटा ट्रस्ट और संस के बोर्ड में शामिल हुए नोएल

रतन टाटा के निधन के बाद अक्टूबर 2024 में उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन बनाया गया. टाटा ट्रस्ट, टाटा ग्रुप के 65% शेयरों को कंट्रोल करता है. वहीं, नवंबर 2024 में नोएल को टाटा संस के बोर्ड में भी शामिल किया गया था.

2011 के बाद यह पहली बार है, जब टाटा परिवार का कोई सदस्य दोनों बोर्ड्स में शामिल है. टाटा संस होल्डिंग कंपनी है, जो टाटा मोटर्स, टाटा स्टील और TCS जैसी कंपनियों को चलाती है.

वसीयत भी कर देगी हैरान

देश के सबसे सम्मानित उद्योगपतियों में से एक, रतन टाटा की वसीयत से एक हैरान करने वाली बात सामने आई है. उनकी 3,900 करोड़ रुपये की संपत्ति में से एक बड़ा हिस्सा उन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को नहीं, बल्कि एक पुराने सहयोगी को दिया है. ताज होटल्स ग्रुप के पूर्व डायरेक्टर मोहिनी मोहन दत्ता को रतन टाटा ने अपनी वसीयत में शामिल किया है. उन्हें करीब 588 करोड़ रुपये की संपत्ति मिलेगी. आइए जानते हैं कैसे एक 13 साल के लड़के और टाटा के बीच शुरू हुई दोस्ती इतनी गहराई तक पहुंच गई.

परिवार से बाहर सिर्फ एक व्यक्ति को मिला हिस्सा

दिवंगत उद्योगपति रतन टाटा की वसीयत में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है. टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की वसीयत में उनके परिवार के अलावा सिर्फ एक व्यक्ति को संपत्ति में हिस्सा दिया गया है मोहिनी मोहन दत्ता को. ये ताज होटल ग्रुप के पूर्व डायरेक्टर रह चुके हैं. उन्हें रतन टाटा की वसीयत में ‘रेजीडुअल एस्टेट’ का एक तिहाई हिस्सा मिलेगा, जिसकी कुल अनुमानित कीमत 1,764 करोड़ रुपये बताई जा रही है. इस हिसाब से मोहिनी मोहन दत्ता को करीब 588 करोड़ रुपये मिलेंगे. शुरू में उन्होंने वसीयत की शर्तों पर आपत्ति जताई थी, लेकिन अब उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है. इससे वसीयत को लागू करने की प्रक्रिया तेज हो गई है.

First published on: Oct 09, 2025 10:44 AM

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