Ramnami Community Unique Culture Tradition: हमें न मंदिर चाहिए, न मूर्ति…क्योंकि हमारा तन ही मंदिर, हमारे रोम-रोम में बसते राम, इनकी कहानी बहुत दिलचस्प है। अनोखी परंपराएं और संस्कृति है। यह भारतीय समाज की एक ऐसी संस्कृति, जिसमें राम नाम को रोम-रोम में, कण-कण में बसाने की परम्परा है। इस समाज को दुनिया रामनामी समाज के रूप में जानती है। इस समुदाय के हर सदस्य, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं और वातावरण में राम नाम बसा है।
Ramnami Samaj’s religious movement, in the state of Chhattisgarh, has something very evidently peculiar about them. For more than a centennial now, the members of this community have had ‘Ram’ (राम राम )tattooed all over their body. They are sections of Hindu believers who pic.twitter.com/ohkPnof80k
— Yashaswini (@DharmaRakshathi) November 10, 2023
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उठते-बैठते और सोते- जागते बस राम-राम
दरअसल, रामनामी समाज के लोग न मंदिर जाते हैं और न ही मूर्ति पूजा करते हैं। उन्होंने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाया हुआ है। सिर से लेकर पैर तक राम नाम स्थायी रूप से गुदवाते हैं। राम-राम लिखे कपड़े पहनते हैं। घरों की दीवारों पर राम-राम लिखवाते हैं। एक दूसरे से बात भी राम-राम कहते हुए करते हैं। कहा जाता है कि इस समाज के लोग 2 साल का होते ही बच्चे के शरीर पर राम नाम गुदवा देते हैं। यह लोग कभी झूठ नहीं बोले। मांस नहीं खाते, बस राम नाम जपते रहते हैं।
रामनामियों की पहचान और उनके 5 प्रतीक
सिर से लेकर पैर तक राम नाम, शरीर पर रामनामी चादर, मोरपंख की पगड़ी और घंघुरू रामनामियों की पहचान है। 100 साल पुराने रामनामी समाज के 5 प्रमुख प्रतीक हैं। भजन खांब या जैतखांब, शरीर पर राम नाम, ओढ़ने के लिए काले रंग से राम-राम लिखा सफेद कपड़ा, घुंघरू बजाते हुए भजन करना और मोर पंखों से बना मुकट पहनना। यह छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव चारपारा की रहने वाली आदिवासी जाति है। इस समाज को 1890 के आस-पास बसाया गया था।
कैसे बना समाज और कैसे शुरू हुई परंपरा?
कहा जाता है कि रामनामी समाज मुगलों के विरोध में बसाया गया था। यह तब की बात है, जब मुगलों ने भारतीय मंदिरों को तोड़ना शुरू किया। उन्होंने राम मंदिरों को भी तोड़ दिया और आदेश दिया कि राम को पूजने की बजाय हमारी पूजा करो। लोगों ने आदेश मानने से इनकार किया तो उन्हें सताया गया। विरोध स्वरूप लोगों ने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवा लिया और मुगलों से कहा कि एक को मारोगे तो राम नाम वाले 10 खड़े हो जाएंगे। मंदिर-मूर्तियां तोड़ दी, हमारे शरीर से राम नाम हटवा कर दिखाओ।
भक्ति आंदोलन के कारण रामनामी समाज बना
दूसरी ओर, प्रचलित है कि देश में भक्ति आंदोलन जब अपने चरम पर था, तब लोग अपने-अपने देवी-देवताओं की रजिस्ट्रियां करवाने लगे थे। इसके चलते स्वर्ण जाति के लोगों को न कोई मंदिर मिला और न ही कोई मूर्ति हाथ आई। उन्हें मंदिर के बाहर खड़े होने का अधिकार तक नहीं दिया गया। उन्हें छोटी जाति का बताकर मंदिर में घुसने नहीं दिया गया। कुंओं से पानी लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गयाा। इसलिए दलितों ने राम को अपना मान लिया। मंदिरों-मूर्तियों को त्याग दिया। राम नाम को अपने रोम-रोम में बसा लिया।
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