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जस्टिस यशवंत वर्मा मामले पर संसदीय समिति की बैठक, सदस्यों ने पूछे ये तीखे सवाल

Parliamentary Committee Meeting : जस्टिस यशवंत वर्मा मामले पर संसदीय समिति की बैठक हुई, जिसमें सदस्यों ने कई तीखे सवाल पूछे। साथ ही आचार संहिता समेत कई मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Deepak Pandey Updated: Jun 24, 2025 15:57
Justice Yashwant Verma
जस्टिस यशवंत वर्मा। (File Photo)

Parliamentary Committee Meeting : राज्यसभा की कार्मिक, विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की बुधवार को बैठक हुई। इस मीटिंग में विधि मंत्रालय के सचिव पेश हुए। इस दौरान समिति के सदस्यों ने जस्टिस यशवंत वर्मा समेत कई मुद्दों पर सवाल पूछे। आचार संहिता पर विस्तार से चर्चा हुई। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, इस बैठक में वीरस्वामी मामले की समीक्षा का सुझाव भी सामने आया। साथ ही न्यायाधीशों की आचार संहिता और सेवानिवृत्ति के बाद कूलिंग ऑफ पीरियड लागू करने को लेकर भी प्रस्ताव दिया गया।

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न्यायमूर्ति वर्मा के मामले पर उठे सवाल

  • सदस्यों ने पूछा- न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई?
  • यह भी सवाल उठाया गया कि जब जज को सस्पेंड करने का कोई प्रावधान नहीं है तो सीजेआई ने वर्मा से केस कैसे वापस ले लिए? अगर गंभीर मामला था तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
  • कुछ सदस्यों ने यह भी पूछा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को अब भी कार और स्टाफ जैसी सुविधाएं मिल रही हैं, जो अनुचित है।

आचार संहिता पर चर्चा

  • समिति में यह बात भई उठी कि जजों के लिए आचार संहिता सिर्फ कागजों तक सीमित है, इसका पालन जमीनी स्तर पर नहीं होता है।
  • यह भी कहा गया कि जहां सभी अधिकारी अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करते हैं तो वहीं जज ऐसा नहीं करते हैं, जिससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।

राजनीतिक संगठनों से जुड़ी गतिविधियों में भागीदारी पर आपत्ति : कुछ सदस्यों ने राजनीतिक रूप से संबद्ध कार्यक्रमों में जजों की भागीदारी पर आपत्ति जताई है, जिसमें इसमें अप्रत्यक्ष रूप से कुछ हालिया कार्यक्रमों का उल्लेख था।

राजनीतिक लाभ के लिए नियुक्तियां : यह भी आरोप लगाया गया कि कुछ जज राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाकर ‘प्लम पोस्टिंग’ (लाभकारी पद) लेते हैं।

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परिवारजनों की वकालत को लेकर चिंता : कई सदस्यों ने न्यायिक संस्थानों में ही रिश्तेदारों की वकालत को लेकर चिंता जताई। कहा गया कि सिर्फ यह कहना कि कोई वकील अपने रिश्तेदार जज की अदालत में पेश नहीं होता, काफी नहीं है; पूरे न्यायिक परिसर में रिश्तेदारी की उपस्थिति पर पुनर्विचार होना चाहिए।

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First published on: Jun 24, 2025 03:50 PM

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