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2019 के मुकाबले BJP को मिले 69 लाख ज्यादा वोट, लेकिन 63 सीटें हुईं कम! समझिए कैसे

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आ चुके हैं। भाजपा खुद तो बहुमत नहीं हासिल कर पाई है लेकिन अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाने की स्थिति में है। यहां एक ध्यान देने वाली बात यह है कि 2019 की तुलना में इस बार भाजपा को मिले वोटों की संख्या लगभग 69 लाख ज्यादा है। इसका राष्ट्रीय वोट शेयर इस बार 36.6 प्रतिशत हो गया जो 2019 में 37.3 था। कुल वोट्स की संख्या में इजाफा और वोटर शेयर में केवल 0.7 प्रतिशत की गिरावट के बाद भी भाजपा के खाते में गई सीटों की संख्या में 11 प्रतिशत की कमी आई है। इस रिपोर्ट में जानिए ऐसा कैसे हुआ।

Edited By : Gaurav Pandey | Updated: Jun 5, 2024 18:56
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Narendra Modi Oath Ceremany
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Lok Sabha Election 2024 BJP Performance Analysis : इस साल हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम भारतीय जनता पार्टी को झटका देने वाले रहे हैं। पार्टी के नेशनल वोट शेयर में 0.7 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस चुनाव में पार्टी का नेशनल वोट शेयर 36.6 प्रतिशत रहा। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 37.3 प्रतिशत था। वोट्स की बात करें तो भाजपा को मिलने वाले मतों की संख्या 2019 के मुकाबले बढ़ी है। पिछले चुनाव में भगवा दल को 22.9 करोड़ वोट मिले थे। इस साल यह आंकड़ा 23.59 करोड़ रहा। इसका मतलब है कि इस आम चुनाव में भाजपा को पिछले चुनाव की तुलना में 68.79 लाख वोट ज्यादा मिले।

पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार करीब 70 लाख वोट ज्यादा पाने के बाद भी भाजपा के हाथ से 63 सीटें निकल गईं। 2019 में भाजपा ने जहां 303 सीटें जीती थीं वहीं, इस बार यह संख्या 240 ही रह गई है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि किस तरह वोट शेयर में आई महज 0.7 प्रतिशत की गिरावट ने भाजपा के लिए सीट शेयरिंग में 11 प्रतिशत की कमी कर दी। इस सवाल का जवाब आपको हम बताने जा रहा हैं और यह जवाब है फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) चुनावी व्यवस्था जिसका भारत में पालन किया जाता है। भारत में इस व्यवस्था को अंग्रेजों से एडॉप्ट किया गया था। भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी इसी व्यवस्था के तहत चुनाव होते हैं।

क्या होता है एफपीटीपी सिस्टम?

एफपीटीपी सिस्टम के तहत देश को विभिन्न संसदीय क्षेत्रों में बांटा जाता है। हर क्षेत्र से चयनित प्रतिनिधि संसद जाता है। जिस व्यक्ति को क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं उसे सीट का विजेता घोषित किया जाता है, इसमें इस बात से कोई मतलब नहीं पड़ता कि उस व्यक्ति को बहुमत मिला है या नहीं। उल्लेखनीय है कि यह व्यवस्था आसान और बिल्कुल सीधी है लेकिन इसकी वजह से किसी पार्टी को मिले वोट के प्रतिशत और इसकी जीती सीटों की संख्या में कई बड़े व्यवधान आ सकते हैं। इस सिस्टम में जीत या हार इस बात पर निर्भर करती है कि किस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। आइए इस चुनावी व्यवस्था को एक उदाहरण से समझते हैं।

मान लीजिए किसी संसदीय क्षेत्र में 100 मतदाता हैं और 3 उम्मीदवार हैं। उदाहरण के तौर पर अगर पहले कैंडिडेट को 36, दूसरे को 35 और तीसरे को 29 वोट मिलते हैं। इस स्थिति में किसी भी प्रत्याशी के पास बहुमत नहीं है। लेकिन, पहले कैंडिडेट को विजेता घोषित किया जाएगा क्योंकि उसे सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। ऐसे में यह स्थिति बनती है कि केवल 36 प्रतिशत लोगों का समर्थन पाने वाला उम्मीदवार उस क्षेत्र के 100 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधि बन जाता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे कितने वोट मिले हैं अगर उस व्यक्ति को मिलने वाले वोटों की संख्या उस संसदीय क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे बाकी उम्मीदवारों के मुकाबले ज्यादा है।

जीत के बढ़े अंतर ने कम की सीटें!

चुनाव में भाजपा के साथ क्या हुआ यह समझने के लिए जीत के अंतर का फैक्टर समझना होगा जो बहुत अहम होता है। कई संसदीय क्षेत्रों में भाजपा को बड़े अंतर से जीतक मिली। मध्य प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन इसे बेहतर तरीके से एक्स्प्लेन करता है। इंदौर से शंकर लालवानी ने 11.2 लाख के बहुत बड़े अंतर से जीत हासिल की। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विदिशा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे और 8.21 लाख वोट के अंतर से जीत दर्ज की। सिर्फ इन दोनों सीटों को जोड़ दें तो भाजपा को मिलने वाले मतों की संख्या तो करीब 20 लाख हो गई। इससे भाजपा का वोट शेयर तो बढ़ा लेकिन सीटों की संख्या तो 2 ही रही, बढ़ी नहीं।

First published on: Jun 05, 2024 06:12 PM

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