---विज्ञापन---

क्या अब तुरंत मिलेगा न्याय? जानें IPC, CrPC और साक्ष्य अधिनियम की ABCD

नई दिल्ली (कुमार गौरव): केंद्रीय गृह मंत्री ने शुक्रवार को संसद में भारतीय कानून से जुड़े तीन नए बिल को पेश किया। इसके तहत 1860 के इंडियन पेनल कोड को बदला जाएगा और उसका नाम “भारतीय न्याय संहिता” होगा। वहीं दूसरा बिल क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1898 का कानून है। इसको बदलकर “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता” […]

Edited By : Kumar Gaurav | Updated: Aug 12, 2023 06:37
Share :
Union Minister Amit Shah
Union Minister Amit Shah

नई दिल्ली (कुमार गौरव): केंद्रीय गृह मंत्री ने शुक्रवार को संसद में भारतीय कानून से जुड़े तीन नए बिल को पेश किया। इसके तहत 1860 के इंडियन पेनल कोड को बदला जाएगा और उसका नाम “भारतीय न्याय संहिता” होगा। वहीं दूसरा बिल क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1898 का कानून है। इसको बदलकर “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता” के नाम से नया बिल लाया गया है। तीसरा कानून इंडियन एविडेंस एक्ट जो कि 1872 का कानून है,उसमें भी बदलाव किया गया है और “भारतीय साक्ष्य अधिनियम” के नाम से तीसरा बिल संसद में लाया गया है।

बिल को लाने की मंशा

सरकार का मानना है कि गुलामी के तमाम प्रतीकों को आम लोगों के जीवन से दूर करना है। इस वजह से 160 वर्ष पहले अंग्रेजों ने जो कानून देश को दिया था। उसको पूरी तरह से बदलने की तैयारी,पिछले 4 साल से की जा रही थी।

मोदी सरकार यह मानती है कि जो पुराना कानून है वह ब्रिटिश और लंदन में उनकी सरकार के हितों के अनुकूल बनाया गया था। हत्या या महिलाओं पर अत्याचार से महत्वपूर्ण उनके लिए उनके खजाने की रक्षा थी। भारत के आम जन के मानवाधिकार से महत्वपूर्ण ब्रिटेन शासन को बचाए रखने का उनका उद्देश्य था। इसीलिए इस कानून में बदलाव की जरूरत थी।

---विज्ञापन---

पुराने कानूनों की वजह से क्या समस्या थी?

आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट की जटिल प्रक्रियाओं की वजह से देश में न्याय की प्रक्रिया का भारी बोझ था। ओवर बर्डन कोर्ट से लेकर पुलिस थानों तक थे। इसकी वजह से न्याय मिलने में देरी होती है। गरीब लोगो और सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय तो न्याय पाने से वंचित ही रह जाते हैं। कनविक्शन रेट भी काफी कम है,इसका परिणाम जेलों में ओवरक्राउडिंग की समस्या है और अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या बहुत ज्यादा है।

कानून में सुधार की मांग कब-कब हुई?

भारत की विधि आयोग ने अपने कई रिपोर्टों में संशोधन की सिफारिश की थी। वेज बरुआ समिति,विश्वनाथन समिति, मलिमथ समिति, महान मेनन समिति ने भी पुराने कानून में बदलाव की मांग की थी।

इतना ही नहीं गृह मामलों पर संसद की स्थाई समिति ने भी अपनी 146 वी,111वी और 128 वी में रिपोर्ट में कानून में सुधार की बात कही थी।

---विज्ञापन---

नए कानून के लिए विचार-विमर्श की प्रक्रिया

2019 में गृह मंत्रालय ने इस सुधार प्रक्रिया की शुरुआत की। इसके लिए सभी राज्यपालों सभी मुख्यमंत्री ,उपराज्यपालों और प्रशासको को गृह मंत्री के तरफ से पत्र लिखा गया। जनवरी 2020 में भारत के मुख्य न्यायाधीश, सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश, बार काउंसिलों ,विधि विश्वविद्यालयों से भी इस मुद्दे पर सुझाव मांगे गए। दिसंबर 2021 में सभी संसद सदस्यों से भी सुझाव मांगे गए, देश के सभी आईपीएस अधिकारियों से भी नए कानून को लेकर सुझाव मांगे गए। एनएलयू, दिल्ली के कुलपति के अध्यक्षता में सुझावों के लिए एक समिति भी बनाई गई।

कहां कहां से मिले सुझाव

केंद्र सरकार को नए कानून के लिए बड़े स्तर पर सुझाव मिले। 18 राज्यों,6 संघ राज्य क्षेत्रों भारत के सुप्रीम कोर्ट,16 उच्च न्यायालय ,5 न्यायिक अकादमी 22 विश्वविद्यालय और 42 संसद सदस्यों से गृह मंत्रालय से सुझाव प्राप्त हुए। इसके अलावा देशभर के आईपीएस अधिकारियों राज्य एवं केंद्रीय बलों से भी इस मामले पर सुझाव मिले। तीनों नए कानून को लाने से पहले गृह मंत्री की अध्यक्षता में 58 औपचारिक और 100 अनौपचारिक समीक्षा बैठक की गई।

नए कानून का प्रारूप कैसा है

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 533 धाराएं होगी, सीआरपीसी की 478 धाराओं के स्थान पर ये होगी।160 धाराओं में बदलाव हुआ, 9 नई धाराएं जोड़ी गई और 9 पुरानी धाराएं निरस्त कर दी गई।

भारतीय न्याय संहिता

आईपीसी की 511 धाराओं के स्थान पर अब कुल 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में बदलाव हुआ है ,8 नई धाराएं जोड़ी गई है और 22 धाराएं निरस्त कर दी गई है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 

पुराने कानून के 167 धाराओं के स्थान पर 170 धाराएं होगी, 23 धारा में बदलाव किया गया है, एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं हटा दी गई है।

नए कानून से ब्रिटिश सोच को बाहर निकाला

नए कानून से कॉलोनियल शब्दों को हटाया गया है। सरकार का दावा है कि नए कानून को भारतीय आत्मा और भारतीय सोच के हिसाब से बनाया गया है। इसमें से पार्लियामेंट ऑफ द यूनाइटेड किंगडम, प्रोविंशियल एक्ट, लंदन गजट, जूरी ,बैरिस्टर, लाहौर, कॉमनवेल्थ, यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड, हर मजेस्टिक गवर्नमेंट, पजेशन ऑफ द ब्रिटिश क्रॉउन, कोर्ट ऑफ जस्टिस इन इंग्लैंड जैसे अंग्रेजो से जुड़े शब्दो को हटाया गया है।

नए कानून और टेक्नोलॉजी

नए कानून में टेक्नोलॉजी से न्याय की प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रयास किया गया है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें, इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, सर्वर लॉग्स ,कंप्यूटर पर उपलब्ध दस्तावेज ,स्मार्टफोन या लैपटॉप के मैसेज, वेबसाइट लोकेशन सर्च, डिजिटल डिवाइस पर उपलब्ध मेल ,मैसेजेस को सम्मिलित किया गया है। अब न्याय की प्रक्रिया के दौरान इन सब चीजों का इस्तेमाल सबूत के तौर पर किया जा सकता है।

डिजिटाइजेशन पर जोर

एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्ज सीट तथा जजमेंट सभी को डिजिटाइज किया जाएगा। सम्मन और वारंट जारी करना उनकी सर्विस, शिकायतकर्ता तथा गवाहों का परीक्षण ,जांच पड़ताल तथा मुकदमे में साक्ष्य की रिकॉर्डिंग ,उच्च न्यायालय में मुकदमे एवं सभी अपीलीय कार्यवाहियां सभी पुलिस थानों और न्यायालय द्वारा एक रजिस्टर के द्वारा ईमेल एड्रेस ,फोन नंबर और अन्य विवरण रखा जाएगा। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे गए समन को विधिवत भेजा गया समन माना जाएगा।

सर्च और जब्ती के दौरान वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य

पुलिस के द्वारा सर्च और जब्ती की कार्यवाही करने के लिए भी टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाएगा। पुलिस द्वारा सर्च करने की पूरी प्रक्रिया अथवा किसी संपत्ति का अधिग्रहण करने की भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के माध्यम से वीडियोग्राफी की जाएगी। ऐसी रिकॉर्डिंग को बिना किसी विलंब के संबंधित मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा,ताकि इस में छेड़छाड़ का कोई आरोप ना लगे।

कनविक्शन रेट बढ़ने के लिए फॉरेंसिक का इस्तेमाल

सरकार का लक्ष्य नए बिल के जरिए 90 फ़ीसदी से अधिक कनविक्शन रेट करने का है। इसके लिए पुलिस द्वारा जांच अभियोजन और फॉरेंसिक में सुधार की आवश्यकता है। नए कानून के लागू होने के बाद सभी राज्यों में फॉरेंसिक के इस्तेमाल को जरूरी कर दिया जाएगा। 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास वाले दंडनीय अपराध में सभी मामलों में फॉरेंसिक विशेषज्ञों का उपयोग अनिवार्य कर दिया जाएगा। इसके लिए सभी राज्यों में जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर 5 वर्ष के अंदर तैयार किया जाएगा। सरकार का लक्ष्य हर जिले में तीन फॉरेंसिक लैब और मोबाइल वैन का है।

बिल में नागरिकों की सुरक्षा का खास ध्यान

जीरो एफआईआर थाने की सीमा से बाहर भी किया जा सकेगा। अभी तक यह सिर्फ संगीन मामलों में होता है। अब चोरी जैसी घटनाओं में भी यह किया जा सकेगा। हर मामलों में ई- एफआईआर का प्रावधान भी अब जोड़ दिया गया है। राज्य सरकार प्रत्येक जिले में और प्रत्येक थाने में एक पुलिस अधिकारी को पद नामित करेगी,जो किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की सूचना परिवार के लोगों को देगा। पुलिस अधिकारी 90 दिन के भीतर पीड़ित को जांच की प्रगति की सूचना डिजिटल माध्यम से प्रदान करेगा। ये भी अनिवार्य किया गया है।

यौन हिंसा के मामले में सख्ती बढ़ेगी

यौन हिंसा के मामले में पीड़िता का बयान एक महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट के द्वारा रिकॉर्ड किया जाएगा। यौन उत्पीड़न के पीड़िता का बयान उसके आवास पर एक महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में दर्ज किया जाना जरूरी होगा। ऐसे बयान रिकॉर्ड करते समय पीड़िता के अभिभावक या माता-पिता उपस्थित रह सकते हैं। अब तक कई बार ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं की पीड़िता को डरा धमका कर अपने हिसाब से बयान दिलवाया जाता है। 7 वर्ष या उससे अधिक के जेल के मामले में अभियोजन को सरकार अगर वापस लेना चाहती है,तो भी वहां पीड़ित पक्ष को सुनवाई का अवसर मिलेगा। पुराने कानून में अपराधी और पुलिस कई बार मिलीभगत करके बिना पीड़िता के वकील को सुने,मामले को बंद कर देते थे। नए कानून के आने के बाद अब पीड़िता का अधिकार बढ़ जाएगा।

राजद्रोह कानून को निरस्त किया गया

राजद्रोह को पूर्णता निरस्त कर दिया गया है। ब्रिटिश राज में सरकार के विरुद्ध हैट्रेड, कंटेंप्ट डिस – अफेक्शन अपराध बनाया गया था।

कम्युनिटी सर्विस सजा का नया तरीका

नए कानून के तहत किसी व्यक्ति को अगर पहली बार सजा होती है, तो उसे सजा के रूप में कम्युनिटी सर्विस का काम दिया जा सकता है। अभी भी कई इलाकों में यह प्रैक्टिस की जाती है लेकिन यह जज के मर्जी के अनुसार होता है। लेकिन अब इसे कानूनी अमली जामा पहनाया गया है।

समरी ट्रायल को बढ़ावा

नए कानून के तहत छोटे-मोटे मामलों में समरी ट्रायल द्वारा तेजी लाई जाएगी। कम गंभीर मामलों चोरी, चोरी की गई संपत्ति प्राप्त करना ,अथवा रखना,घर में अनधिकृत प्रवेश ,शांति भंग करना आपराधिक धमकी ,जैसे मामलों के लिए समरी ट्रायल को अनिवार्य किया गया है। उन मामलों में जहां सजा 3 वर्ष तक है,मजिस्ट्रेट लिखित रूप से दर्ज कारणों के अंतर्गत ऐसे मामलों में समरी ट्रायल कर सकता है। इसके बावजूद अगर किसी मामले में जांच की आवश्यकता है तो आरोप पत्र दायर करने के बाद जांच को अगले 90 दिनों में पूरा करना होगा।आरोप पत्र दायर करने में 90 दिन से अधिक का कोई भी विस्तार केवल न्यायालय की अनुमति से ही दिया जाएगा। किसी भी मामले के वारंट के मामले में एक नया प्रावधान किया गया है इसके तहत न्यायालय द्वारा आरोप तय करने के लिए आरोप पर पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिन की समय सीमा तय की गई है। इससे 32 फीसदी मुकदमे में कमी आयेगी। इतना ही नहीं आरोपी व्यक्ति आरोप तय करने की नोटिस की तारीख से 60 दिन की अवधि के भीतर रिहाई के लिए भी अपील कर सकता है।

जजमेंट में देरी अब नही

बहस पूरा होने के बाद 30 दिन के अंदर जज को फैसला देना होगा। नए कानून के तहत किसी भी मामले के बहस पूरा होने के बाद न्यायाधीश को 30 दिन की अवधि के भीतर निर्णय देना होगा। अगर कोई विशिष्ट कारण है तो इसे 60 दिन की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इसमें भी फैसला सिर्फ दो बार टाला जा सकता है।

सिविल सर्वेंट के खिलाफ मुकदमा

सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अगर कोई मामला है और उसे चलाने के लिए सहमति या असहमति पर सक्षम अधिकारियों को 120 दिनों के अंदर निर्णय लेना होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह मान लिया जाएगा की अनुमति प्रदान हो गई है और सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा शुरू कर दिया जाएगा। नए कानून में जमानत एवं बांड शब्दों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।

अधिकारियों की वजह से अब कोर्ट की सुनवाई में देरी नहीं होगी

नए कानून में यह तय किया गया है, कि सिविल सर्वेंट ,एक्सपर्ट और पुलिस पदाधिकारियों के स्थान पर पद ग्रहण करने वाले अधिकारी ही ,उनके कार्यकाल से जुड़े मामले में गवाही दे पाएंगे।

उदाहरण के तौर पर अगर 2010 में कोई क्राइम हुआ है और उस वक्त उस जिले के एसपी 10 साल बाद यानी 2020 में सुनवाई के लिए उपलब्ध नहीं हो पाते हैं ।वह रिटायर हो जाते हैं या फिर उनका ट्रांसफर कहीं और हो गया होता है । ऐसे मामलों में अधिकारी अगर नहीं आते हैं तो कोर्ट में मामला लंबित रहता है। नए कानून के आने के बाद अब घटना के वक्त अधिकारी के द्वारा फाइल पर लगाए गए नोट को ही सबूत माना जाएगा । उनकी जगह पर जो अधिकारी पोस्टेड है,वह नोट उसे कोर्ट में पेश करना पड़ेगा इससे मामलों की सुनवाई में तेजी आएगी।

अंडर ट्रायल कैदियों को राहत मिलेगी

पहली बार के अपराधी को अब राहत प्रदान किया जाएगा। कोई व्यक्ति जो पहली बार का अपराधी है। वह अपनी पूर्ण सजा का एक तिहाई सजा अगर काट लेता है तो उसे अदालत द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा। यह काम जेल अधीक्षक का होगा और वह कोर्ट को इस मामले से समय पूरा होते ही अवगत कराएगा। हालाकि विचाराधीन कैदी को आजीवन कारावास एवं मौत की सजा में रिहाई उपलब्ध नहीं होगी।

विटनेस के लिए नया प्रोटक्शन स्कीम

नए कानून के मुताबिक राज्य सरकार राज्य के लिए एक एविडेंस प्रोटेक्शन स्कीम तैयार करेगी और इसे नोटिफाई किया जाएगा।

घोषित अपराधियों के संपत्ति की कुर्की

नए कानून के मुताबिक 10 वर्ष या उससे अधिक की सजा या आजीवन कारावास और मृत्यु दंड की सजा वाले मामलों में दोषी को घोषित अपराधी घोषित किया जा सकता है। घोषित अपराधियों के मामले में भारत और भारत से बाहर की संपत्ति की कुर्की और जब्ती के लिए नए कानून में एक नया प्रावधान किया गया है।

आतंकवाद की नई परिभाषा

संसद में पेश किए गए भारतीय न्याय संगीता में पहली बार आतंकवाद की व्याख्या की गई है। इसे दंडनीय अपराध बनाया गया है। साथ ही संगठित अपराध से संबंधित एक नई धारा भी जोड़ी गई है ,अभी तक आईपीसी में इस तरह की धारा नहीं थी। संगठित अपराध के नए प्रावधानों में सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववादी गतिविधियों अथवा भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य को जोड़ा गया है।

महिलाओं के प्रति अपराध के खिलाफ कड़े कदम

महिलाओं से जुड़े मामले में नए कानून को और सख्त बनाया गया है। शादी,रोजगार ,प्रमोशन के झूठे वादे और अपनी गलत पहचान बता कर यौन संबंध बनाने को एक नए अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है। अब गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान होगा। 18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के मामले में आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।

मॉब लिंचिंग अपराध की श्रेणी में

देश में मॉब लिंचिंग को लेकर कोई आईपीसी की धारा नहीं थी। अब इसे जोड़ा गया है। नस्ल,जाति समुदाय आदि के आधार पर की गई हत्या से संबंधित अपराध का एक नया प्रावधान सम्मिलित किया गया है। जिसके लिए कम से कम 7 साल की सजा या आजीवन कारावास अथवा मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है।

स्नैचिंग का भी एक नया प्रावधान बनाया गया है,इस दौरान पीड़ित अगर गंभीर चोट के कारण लगभग निष्क्रिय शारीरिक स्थिति में जाता है या स्थाई रूप से विकलांग होता तो अपराधी को कठोर दंड दिया जायेगा।

बच्चों द्वारा अपराध कराने वाले व्यक्ति के लिए कम से कम 7 से 10 साल की जेल का प्रावधान किया गया है। इस मामले में अब तक जुर्माना ₹10 से ₹500 के बीच है। इस तरह के अपराधों में सजा और आर्थिक दंड को नई संहिता में और अधिक तर्क संगत बनाया गया है।

लापरवाह अपराधियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई

नए कानून में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है । जिसमें किसी की जल्दी बाजी या लापरवाही से अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है और वह अपराधी ,अपराध स्थल से भाग जाता है और पुलिस या मजिस्ट्रेट के सामने खुद को प्रस्तुत नहीं करता और घटना का खुलासा करने में असफल होता है। तो उसे जो कैद की सजा दी जाएगी उसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है साथ ही उस पर भारी जुर्माने का भी प्रावधान है।

सजा माफी को तर्कसंगत बनाया गया है

मृत्यु की सजा को आजीवन कारावास की सजा में बदला जा सकता है,लेकिन उसे पूर्णतया माफी नहीं दिया जाएगा। अब तक राज्यपाल या राष्ट्रपति किसी को भी माफी दे सकते थे। जिसे आजीवन कारावास की सजा मिली है, उसे कम से कम 7 वर्ष की अवधि जेल में काटना ही होगा।

भगोड़ा पर भी हो सकेगा कार्रवाई

नए कानून के मुताबिक प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर की अनुपस्थिति में भी अब भारत में उस पर मुकदमा चलाया जा सकेगा। मुकदमा जजमेंट तक चलाया जाएगा। उदाहरण के तौर पर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम पर भारत में मुकदमा अब तक नहीं चल पाता है लेकिन नए कानून के आने के बाद उस पर भारत में मुकदमा चलेगा और उस पर जजमेंट भी आ सकेगा।

अपराध की आय से जुड़ी संपत्ति को कुर्क किया जाएगा

नए कानून के मुताबिक किसी अपराध की आय से जुड़ी संपत्ति को कुर्क करने और जप्त करने के संबंध में कानून में नई धारा को जोड़ा गया है। जांच करने वाला पुलिस अधिकारी इसका संज्ञान लेने के लिए न्यायालय में आवेदन दे सकता है, कि संपत्ति को आपराधिक गतिविधियों के परिणाम स्वरूप प्राप्त किया गया है। इस प्रकार की संपत्ति को न्यायालय द्वारा कुर्क किया जा सकता है। यदि संपत्ति धारक व्यक्ति अपनी उपस्थिति के संबंध में ठोस स्पष्टीकरण देने में असफल रहता है।

इस धारा के जुड़ने के बाद आर्थिक अपराधी विजय माल्या,नीरव मोदी जैसे अपराधियों की संपत्ति कुर्क की जा सकेगी।

पुलिस थानों में सफाई अभियान

देश के पुलिस स्टेशन में बड़ी संख्या में केस से जुड़ी संपत्तियां पड़ी रहती है। उदाहरण के तौर पर आप किसी भी पुलिस स्टेशन में जाएं, वहां पर कार,बाइक समेत तमाम चीजें सड़ती रहती है।नए कानून के आने के बाद अदालत या मजिस्ट्रेट के द्वारा संपत्ति का विवरण तैयार करने और वीडियोग्राफी के बाद,ऐसी सभी संपत्तियों के त्वरित निपटान का प्रावधान किया गया है।

फोटो या वीडियोग्राफी किसी भी जांच परीक्षण या अन्य कार्यवाही में सबूत के रूप में उपयोग किया जा सकेगा।
इस प्रक्रिया के 30 दिनों के भीतर संपत्ति चाहे तो डिस्ट्रॉय किया जाएगा या फिर उसे बेच दिया जाएगा। अगर कोई व्यक्ति केस जीत जाता है,तो उसका जो सामान बेचा गया है ,उससे प्राप्त पैसा,उसे कैश के रूप में वापस किया जाएगा। ड्रग्स के मामलों में सरकार ने नया नियम ला दिया है इस तरह की चीजों को नष्ट करने का प्रावधान कर दिया गया है।

यह भी पढ़ें: देशद्रोह कानून खत्म, गैंगरेप पर होगी फांसी…IPC में होंगे 13 बड़े बदलाव

HISTORY

Edited By

Kumar Gaurav

Edited By

Om Pratap

First published on: Aug 11, 2023 11:46 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें