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‘हिंदू अधिनियम के तहत मुस्लिम महिला ने मांगा संपत्ति में हिस्सा’…CJI बोले-विचार किया जाएगा

CJI DY Chandrachud: केरल की रहने वाली एक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर जो डिमांड की है, उसने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मांग पर भरोसा देते हुए एमिक्स क्यूरी की नियुक्ति की है। वहीं, मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से अगली सुनवाई भी निर्धारित की गई है। अगली सुनवाई गर्मियों की छुट्टी के बाद होगी।

Author Edited By : News24 हिंदी Updated: Apr 30, 2024 14:05
Supreme Court
Supreme Court (File Photo)

Supreme Court Hearing: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए जो मामला सामने आया है, वह आपका ध्यान खींच लेगा। ये केस भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के समक्ष आया है। केरल की एक ऐसी महिला ने याचिका दाखिल की है, जो मुस्लिम फैमिली में पैदा हुई हैं, लेकिन उनकी आस्था इस्लाम में नहीं है। उन्होंने प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी मांगी है। शरिया के मुताबिक नहीं, बल्कि हिस्सेदारी भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत मांगी गई है। महिला की ओर से 29 अप्रैल को शीर्ष न्यायालय के सामने गुहार लगाई गई थी। जिस पर विचार के लिए अब न्यायालय सहमत हो गया है।

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महिला ने बताया कि उनके पुरखों ने इस्लाम कबूल किया था। उस हिसाब से देखें, तो वे मुस्लिम फैमिली में पैदा हुई हैं। लेकिन उनके पिता की पीढ़ी से ही परिवार इस्लाम धर्म में आस्था नहीं रखता है। महिला की याचिका पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सुनवाई की है। खंडपीठ ने महिला के वकीलों की दलीलें भी सुनीं और विचार किया। इसके बाद कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमण को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया। न्यायमित्र को कोर्ट ने कानूनी और तकनीकी प्रक्रियाओं से अवगत करवाने को कहा है।

एक संघ से जुड़ी हुई हैं याचिकाकर्ता महिला

महिला का नाम सफिया है। वे एक ऐसे संघ की महासचिव हैं, जो केरल में पूर्व मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करता है। ये संघ उन लोगों के लिए है, जिनका जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ है, लेकिन वे इस्लाम में आस्था नहीं रखते। सफिया की ओर से दाखिल पीआईएल में बताया गया है कि वे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मिले अधिकार का प्रयोग करना चाहती हैं। यह अनुच्छेद धर्म के मौलिक अधिकार के उपयोग की छूट देता है।

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महिला ने कहा कि इस अनुच्छेद के तहत धर्म में आस्था रखो या न रखो, ये आजादी है। पिता की भी इस्लाम में आस्था नहीं है। वे भी शरीयत के हिसाब से संपत्ति का बंटवारा नहीं चाहते। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मुस्लिम परिवार में जन्मे शख्स को ही पैतृक संपत्ति में हिस्सा लेने का हक है। धर्मनिरपेक्ष कानून का लाभ नहीं मिल सकता। जबकि सफिया चाह रही हैं कि उनको भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत प्रॉपर्टी में हक मिले।

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महिला ने बताया कि उनका भाई मानसिक बीमारी डाउन सिंड्रोम का शिकार है। उनकी एक बेटी है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से उनको एक तिहाई और भाई को दो तिहाई हिस्सा मिलेगा। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वे इसकी घोषणा कैसे कर सकते हैं? हक आस्तिक और नास्तिक होने से नहीं मिलते। वे तो जहां जन्म हुआ है, उसी हिसाब से मिलते हैं। इसलिए आप पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होगा। मामले की अगली सुनवाई गर्मियों की छुट्टी के बाद यानी जुलाई के दूसरे हफ्ते में होगी।

First published on: Apr 30, 2024 02:05 PM

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