Lok Sabha Elections 2024: एक जून को अंतिम फेज की वोटिंग के बाद 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आएंगे। लेकिन वोटों की गिनती से पहले ही न्यूज चैनल और समाचार एजेंसियां अपना एग्जिट पोल जारी करेंगी। जो वोटिंग के बाद लोगों के सामने आएगा। इस बार एग्जिट पोल क्या कहते हैं? यह तो कल ही पता लगेगा, लेकिन अब एग्जिट पोल्स से जुड़ी कुछ खास बातों पर जिक्र करते हैं। क्या अब तक हुए एग्जिट पोल सही रहे हैं? 2019 लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल के बारे में जानना जरूरी है। सही और एग्जिट पोल के परिणामों में कितनी समानता, असमानता रही? इस बारे में बताते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार जब मतदाता वोट देकर बाहर आता है, तो उससे पूछा जाता है कि किसको वोट दिया है? पोल एजेंसियों के लोग बूथ के बाहर होते हैं। कुछ वोटरों की राय ली जाती है। पीएम कैंडिडेट को लेकर पसंद, सत्ता के पक्ष में वोट क्यों दिया, क्यों नहीं दिया? जैसे दूसरे सवाल भी किए जाते हैं। आम तौर पर हर बूथ पर 10वें, 20वें मतदाता से बात की जाती है। जिसके बाद अनुमान लगाया जाता है कि नतीजे क्या होंगे? फिलहाल भारत में सी वोटर, सीएनएक्स और एक्सिस माई इंडिया जैसीं एजेंसियां ऐसे सर्वे करती हैं। चुनाव में कुछ बाहरी एजेंसियां भी आती हैं, जो बाद में नहीं दिखतीं।
एग्जिट पोल को रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल्स एक्ट 1951 की धारा 126ए के तहत कंट्रोल किया जाता है। एग्जिट पोल को लेकर सरकार नियम बनाती है, ताकि चुनाव प्रभावित न हो। चुनाव आयोग इसको लेकर गाइडलाइन तय करता है कि मतदान के बाद ही एग्जिट पोल दिखाया जाता है। वोटिंग खत्म होने के आधे घंटे बाद एग्जिट पोल प्रसारित किया जाता है। प्रसारण के लिए आयोग से अनुमति लेनी होती है। विशेषज्ञों के अनुसार एग्जिट पोल मौसम के अनुमान की तरह होते हैं। कई बार सटीक साबित होते हैं। कई बार गलत, कई बार उम्मीदों से अधिक। एग्जिट पोल वोट पर्सेंटेज या पार्टियों को मिलने वाले वोट का अनुमान लगाता है। 2004 में जो एग्जिट पोल हुए, उसमें वाजपेयी की सरकार बताई गई। लेकिन भाजपा की बुरी तरह हार हुई। जैसे बीमार होने के बाद अलग-अलग डॉक्टरों की राय भी जुदा होती है। एग्जिट पोल को विशेषज्ञ उसी तर्ज पर मानते हैं। अलग-अलग एजेंसियों के लोग वोटरों से बात करते हैं। सबकी राय और विवेचना अलग हो सकती है।
भारत में दूसरे आम चुनाव के दौरान पहली बार एग्जिट पोल हुए। 1957 में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन एग्जिट पोल किया था। उसके बाद 1980 और 1984 में भी डॉ. प्रणय रॉय ने एग्जिट पोल कर अनुमान लगाया था। 1996 में दूरदर्शन की पत्रकार नलिनी सिंह ने एग्जिट पोल किया था। पहले एक या 2 एग्जिट पोल होते थे। अब इनकी संख्या बढ़ चुकी है। यूएस और यूरोपीय देशों में भी एग्जिट पोल होते हैं। बताया जाता है कि सबसे पहले 1936 में इसकी शुरुआत यूएस से हुई। 1938 में फ्रांस में पहला एग्ज़िट पोल हुआ था।
2019 में सही साबित हुए सर्वे
2019 में भारत में लोकसभा चुनाव के अधिकतर एग्जिट पोल में एनडीए की सरकार दिखाई गई। यूपीए को 100 और एनडीए को 300 सीटें मिलने की बात कही गई थी। कांग्रेस को 52 और बीजेपी को 303 सीटें मिलीं। यानी एग्जिट पोल सटीक रहे। इसके बाद 2021 में तमिलनाडु, पुदुच्चेरी, केरल, असम और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए एग्जिट पोल सामने आए। जिसमें बीजेपी को 100 सीटें आने का अनुमान बताया गया। एक एजेंसी ने दावा किया कि 292 में से बीजेपी 174 सीटों के साथ सरकार बनाएगी। कुछ एजेंसियों ने ममता बनर्जी की सरकार दिखाई। हालांकि नतीजों के बाद ममता की ही सरकार बनी। बीजेपी 3 सीटों से 75 पर पहुंच गई।
इसके बाद नवंबर-दिसंबर 2022 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का एग्जिट पोल सामने आया। जिसमें गुजरात में बीजेपी की सरकार दिखाई गई। 182 में बीजेपी को 117-148 सीटें दिखाई गई। कांग्रेस की 30-50 सीटें दिखाई गई। लेकिन असली नतीजों में बीजेपी ने 156 और कांग्रेस ने 17 सीटें ही लीं।
एग्जिट पोल कई बार साबित हो चुके गलत
हिमाचल में कुछ एजेंसियों ने बीजेपी और कुछ ने कांग्रेस की सरकार दिखाई। लेकिन बीजेपी को 68 में से 25 और कांग्रेस को 40 सीटें मिलीं। पिछले साल कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल के विपरित कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया। 224 में से 136 सीटें जीत यहां 43 फीसदी वोट हासिल किए। बीजेपी 65 और जेडीएस 19 सीटें जीत सकीं। कुछ समय पहले एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में चुनाव हुए थे। छत्तीसगढ़ में कांटे की टक्कर बताई गई। 90 में से किसी भी एजेंसी ने कांग्रेस के 40 सीटों से नीचे नहीं जाने का अनुमान लगाया था। बीजेपी की 25-48 सीटें बताई गई थीं। लेकिन बीजेपी ने सर्वे को गलत साबित कर 54 सीटें जीतीं। कांग्रेस 35 पर सिमट गई। बाकी राज्यों में बीजेपी की बढ़त बताई गई थी, जो सही साबित हुई।