Electoral bond funds source Supreme Court Attorney general R Venkataramani: राजनीतिक दलों को फंडिंग के अपारदर्शी चुनावी बॉन्ड मोड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर रविवार को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपने विचार रखे। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि संविधान ने जनता को चुनावी बॉन्ड के सोर्स को जानने का मौलिक अधिकार प्रदान नहीं किया है।
वेंकटरमणी ने कहा कि ये योजना किसी भी व्यक्ति के, किसी भी मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है और इसे संविधान के भाग III के तहत किसी भी अधिकार के प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसी प्रतिकूलता के अभाव में, योजना अवैध नहीं होगी। जो कानून इतना प्रतिकूल नहीं है उसे किसी अन्य कारण से रद्द नहीं किया जा सकता है।
वेंकटरमणी बोले- पोल बॉन्ड किसी भी मौजूदा अधिकार का हनन नहीं
एजी आर वेंकटरमणी ने कहा कि 2003 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने उम्मीदवारों को अपने आपराधिक इतिहास की घोषणा करने का निर्देश दिया था ताकि मतदाताओं को एक सूचित विकल्प चुनने में सक्षम बनाया जा सके। किसी उम्मीदवार के आपराधिक इतिहास को जानने का अधिकार, जो उम्मीदवार की पसंद के लिए उपयोगिता और प्रासंगिक हो सकता है, लेकिन ये मौजूदा मामले से तुलना करने योग्य नहीं है।
उन्होंने कहा कि संवैधानिक अधिकारों के किसी भी पहलू (पेनुमब्रल फॉर्मूलेशन द्वारा) को पढ़ते समय, सुप्रीम कोर्ट ऐसे पेनुमब्रल पहलुओं के अभ्यास पर प्रासंगिक प्रतिबंधों को बताने की आवश्यकता के बारे में भी जागरूक होगा। उनके महत्व को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट इस पर भी विचार करेगा। ऐसे पहलुओं और राजनीतिक दलों के संगठन तथा अनुच्छेद 19(1)(सी) के तहत अधिकारों पर उनके प्रभाव को देखते हुए पूरा विषय संसदीय बहस का हकदार है।
2017 में योजना को चुनौती देते हुए दाखिल हुईं थीं याचिकाएं
बता दें कि 2017 में सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की गईं थीं। केंद्र सरकार इससे पहले अपने जवाबी हलफनामे में कह चुकी है कि चुनावी बॉन्ड योजना पारदर्शी है। चुनावी बॉन्ड वचन पत्र जैसा होता है, जिसे SBI यानी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा ब्रांच से कोई भी भारतीय व्यक्ति या फिर कंपनी खरीद सकती है। बॉन्ड के जरिए कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी अपनी पसंद के पॉलिटिकल पार्टी को दान कर सकता है। इस योजना (चुनावी बॉन्ड) की शुरुआत केंद्र सरकार ने इस दावे के साथ की थी कि इसके जरिए राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी।