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IVF से बने पैरेंट्स के पास नहीं थी ये जानकारी, कानूनी पचड़े में फंस गई बेटे की डेडबॉडी

Madhya Pradesh: एक मां ने अपने बच्चे को 9 माह तक गर्भ में रखा। फिर जन्म से 14 साल तक उनके साथ रहा। एक दिन हादसे में बेटे की मौत हो गई। मां-बाप ने अंतिम संस्कार के लिए बेटे की डेडबॉडी पुलिस से मांगी तो उन्हें यह कहकर देने से इंकार कर दिया गया कि […]

Edited By : Bhola Sharma | Updated: Jul 22, 2023 07:50
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Damoh Couple, IVF technique, Test Tube Baby, MP News
प्रतीकात्मक।

Madhya Pradesh: एक मां ने अपने बच्चे को 9 माह तक गर्भ में रखा। फिर जन्म से 14 साल तक उनके साथ रहा। एक दिन हादसे में बेटे की मौत हो गई। मां-बाप ने अंतिम संस्कार के लिए बेटे की डेडबॉडी पुलिस से मांगी तो उन्हें यह कहकर देने से इंकार कर दिया गया कि बच्चा तो उनका खून ही नहीं है। जी हां, ये सच है। मामला मध्य प्रदेश के दमोह जिले का है। दंपती अपने 14 साल के बेटे की डेडबॉडी पाने के लिए कानूनी पचड़े में पड़कर परेशान हो गए हैं। उन्हें पुलिस ने डेडबॉडी देने से इंकार कर दिया है। दंपती आईवीएफ (In Vitro Fertilization) तकनीक से मां-बाप बने थे। लेकिन अब उनका DNA मैच नहीं हो रहा है। पुलिस ने IVF सेंटर से दस्तावेज मांगा है।

लापता बेटे का मिला था छत विक्षत शव

दमोह जिले पिपरिया छक्का गांव निवासी लक्ष्मण पटेल और यशोदा पटेल की शादी 2004 में हुई थी। लेकिन शादी के चार साल बाद भी उन्हें संतान पैदा नहीं हुई। दमोह के एक डॉक्टर ने आईवीएफ तकनीक से बच्चा पैदा करने का सुझाव दिया। पटेल ने बताया कि उन्हें पहले तकनीक पर भरोसा नहीं था और बच्चे के जन्म के लिए विज्ञान का इस्तेमाल करने से डरता था, लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि यह हमारी जिंदगी बदल देगा। इसके बाद वे तैयार हो गए।

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पटेल पत्नी के साथ इंदौर में स्थित एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ फर्टिलिटी मैनेजमेंट पहुंचे। जहां आईवीएफ तकनीक अपनाने के बाद पत्नी ने नौ महीने बाद एक बेटे को जन्म दिया।

लेकिन इसी साल 29 मार्च को उनका 14 साल का बेटा जयराज पटेल लापता हो गया। जयराज हाईस्कूल का छात्र था। उन्होंने उसी दिन पथरिया पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई, लेकिन पुलिस ने जांच आगे नहीं बढ़ाई। 14 मई को दमोह में एक तालाब के पास एक क्षत-विक्षत शव मिला। दंपत्ति ने कपड़ों के जरिए शव की पहचान अपने बेटे के रूप में की, लेकिन पुलिस ने डीएनए परीक्षण पर जोर दिया।

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लक्ष्मण पटेल ने बताया कि पत्नी ने नमूने दिए। हमें आईवीएफ तकनीक की कोई जानकारी नहीं थी। हमने सोचा कि डीएनए समान होगा, क्योंकि बच्चा नौ महीने तक उसके गर्भ में था और उसने जन्म दिया। लेकिन डीएनए मैच नहीं हुआ और पुलिस ने शव सौंपने से इनकार कर दिया है। हमारे डॉक्टर ने हमें बताया है कि उनके पास दाताओं का डीएनए है, जिन्हें हम बिल्कुल नहीं जानते हैं।

दो महीने से मोर्चरी में रखा शव

तब से पिछले दो महीनों से शव दमोह जिला अस्पताल की मोर्चरी में रखा हुआ है, माता-पिता अपने बेटे की पहचान करने के तरीके खोजने की कोशिश कर रहे हैं। पटेल ने कहा कि हम अंतिम संस्कार करना चाहते हैं, लेकिन हम यह भी चाहते हैं कि जांच शुरू हो। हम अस्पताल गए, लेकिन उन्होंने कहा कि वे 10 साल से अधिक पुराने रिकॉर्ड नहीं रखते हैं। यह सिर्फ पहचान के बारे में नहीं है, बल्कि न्याय के बारे में भी है। पहचान पूरी होने के बाद ही पुलिस अपहरण और हत्या की जांच करेगी।

एसपी ने चंडीगढ़ लैब भिजवाया अवशेष

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कहा कि वे अब 14 वर्षीय लड़के के चेहरे को फिर से बनाने के लिए फोरेंसिक चेहरे के पुनर्निर्माण विशेषज्ञों की मदद ले रहे हैं, ताकि पहचान में मदद मिल सके। दमोह के पुलिस अधीक्षक राकेश सिंह ने कहा कि हम समझते हैं कि दंपति किस दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन हम आश्वस्त हुए बिना शव नहीं सौंप सकते। डीएनए मैच न होने के बाद हमने पुलिस कर्मियों को इंदौर के अस्पताल भेजा, लेकिन उनके पास कोई डेटा नहीं था। हमने अब फोरेंसिक चेहरे की पहचान के लिए अवशेषों को चंडीगढ़ भेजा है।

डॉक्टर बोलीं- रखा जाता है सिर्फ सात साल का डेटा

भोपाल स्थित स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रोमिका रावल ने कहा कि यह स्पष्ट है कि इस मामले में उन्होंने निषेचित भ्रूण को महिला के गर्भ में इंजेक्ट किया। कानून कहता है कि अस्पताल दानदाताओं के साथ जानकारी साझा नहीं कर सकता, इसलिए यह एक संवेदनशील मामला है। इसलिए अस्पताल को सात साल तक डेटा रखना अनिवार्य है। यह मामला 14 साल पुराना है। इसलिए समस्या आ रही है।

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Edited By

Bhola Sharma

First published on: Jul 22, 2023 07:50 AM

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