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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की समीक्षा चाहती है केंद्र सरकार, टाटा ग्रुप और मध्य प्रदेश सरकार भी आए साथ

Supreme Court Mineral Royalty Judgment: खनिजों के खनन और खनिज संपदा पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों को दिए जाने के बाद केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। कोर्ट के फैसले के बाद राज्यों को केंद्र सरकार की ओर से भुगतान किया जाना है। इस बीच टाटा समूह, मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र ने समीक्षा याचिका दायर की है।

Edited By : Nandlal Sharma | Updated: Sep 12, 2024 12:57
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Supreme Court Mineral Royalty Judgment: सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। दरअसल 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था, जिसमें खनिज और खनन भूमि पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों को दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद केंद्र सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ने वाला है। लिहाजा केंद्र सरकार ने इस फैसले की समीक्षा के लिए याचिका दायर की है। साथ ही कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में काफी त्रुटियां हैं।

दिलचस्प है कि केंद्र सरकार ने इस समीक्षा याचिका में मध्य प्रदेश सरकार को अपने साथ ले लिया है। मध्य प्रदेश की सरकार इस मामले में केंद्र सरकार के साथ सह-याचिकाकर्ता है। याचिका में खुली कोर्ट में सुनवाई की मांग की गई है और कहा गया है कि यह मामला नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा है और व्यापक स्तर पर जनहित का मुद्दा है। अगर इस मामले में समीक्षा याचिका पर खुली सुनवाई नहीं हुई तो जनहित के प्रति बड़ा अन्याय होगा।

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‘संवैधानिक पीठ के फैसले की समीक्षा’

कोर्ट में खनिज संपन्न राज्यों का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने बकाया राशि के भुगतान को लेकर दायर याचिकाओं पर जल्द से जल्द सुनवाई की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच के फैसले के बाद नियमति बेंच के सामने दायर इस याचिका पर अभी सुनवाई होनी है।

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याचिका में जल्द से जल्द बकाया राशि के भुगतान की मांग की गई है ताकि राज्यों को वित्तीय राहत मिल सके। इस बीच मामले में केंद्र सरकार की ओर से पेश होने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच को बताया कि मामले में केंद्र सरकार और टाटा समूह की ओर से एक समीक्षा याचिका दायर की गई है।

इस पर आश्चर्य जताते हुए जीफ जस्टिस ने कहा, ‘संवैधानिक पीठ के फैसले की समीक्षा’

द्विवेदी ने कहा कि समीक्षा याचिका इस बात का संकेत है कि सार्वजनिक कंपनियां, जिन्होंने दशकों तक बिना कोई टैक्स दिए खनिजों के खनन से भारी मुनाफा कमाया है। वह कोर्ट द्वारा तय न्यूनतम राशि का भुगतान भी नहीं करना चाहते हैं।

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‘बकाया राशि पर कोई ब्याज नहीं लगेगा’

केंद्र और निजी कंपनियों ने कोर्ट से मांग कि थी कि खनिजों पर राज्य द्वारा लगाए जाने वाले शुल्क को भविष्य के लिए लागू किया जाए। इस पर नौ जजों की बेंच ने 14 अगस्त को स्पष्ट किया था कि राज्यों को टैक्स का भुगतान अगले 12 वर्षों में 2005 से किया जाएगा। साथ ही बकाया राशि पर कोई ब्याज नहीं लगेगा। संवैधानिक बेंच के इस फैसले पर जस्टिस नागरत्ना ने असहमति जताई थी।

कोर्ट के फैसले से पब्लिक सेक्टर की कंपनियों पर 70 हजार करोड़ का वित्तीय बोझ आने का अनुमान है। इसके साथ ही अगर प्राइवेट कंपनियों को शामिल कर लिया जाए तो ये आंकड़ा 1.5 लाख करोड़ का हो जाता है। इस रकम का भुगतान राज्यों को किया जाना है। इससे जिन खनिज संपन्न राज्यों को सबसे ज्यादा लाभ मिलने की संभावना है, उनमें झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं।

संवैधानिक बेंच के फैसले को भविष्य से लागू करने की मांग करते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि इस फैसले को पूरी तरह लागू करने से पब्लिक सेक्टर कंपनियों और इंडस्ट्रीज पर बहुत ज्यादा बोझ बढ़ेगा। अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचेगी और हर सामान की कीमत बहुत बढ़ जाएगी।

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Edited By

Nandlal Sharma

First published on: Sep 12, 2024 12:35 PM

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