प्रशांत देव, नई दिल्ली।
संसद के बजट सत्र 2025 की खास बात यह भी है कि पहली बार विपक्ष ने पूरी तरह से सदन में बैठक कर बिल का विरोध किया। विपक्ष ने हमेशा की तरह सदन का बहिष्कार नहीं किया। लोकसभा में रात 2 बजे तक और राज्य सभा में सुबह के 4 बजे तक बहस चली। ऐसा लग रहा था कि वक्फ बिल की चर्चा क्रिकेट के किसी रोचक 20-20 मैच की तरह देश की जनता देख रही थी। इसलिए इस सत्र को लोग वक्फ संशोधन बिल के नाम पर जानेंगे।
संसद से अब सड़क पर आया मामला
खास इस बात के लिए कि बीजेपी मुसलमानों के हित की बात कर रही है। तर्क देकर समझा रही है कि गरीब मुसलमान का इस बिल से क्या फायदा है। खास बात ये भी है कि वक्फ बिल पास होने के बाद मामला संसद से अब सड़क पर आ गया है। गली, मोहल्ले, चौराहे, गांव की पान की दुकान, चाय की दुकान पर बिल के पक्ष और विपक्ष को लेकर चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। भारत के कई राज्यों में सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन ने भी जोर पकड़ लिया है। वक्फ संशोधन बिल 2025 संसद के दोनों सदनों से भले ही पास हो गया हो, लेकिन मामला अभी यहीं रुकने वाला नहीं लगता। जो बहस और टकराव संसद के दोनों सदनों में दिखाई दिया वो अब संसद से सड़क पर आ चुका है। जिसकी झलक शुक्रवार को दिखाई भी दी। ये बिल अब कानूनी मसला कम, राजनीतिक मुद्दा ज्यादा बन गया है और इसके अपने राजनीतिक मायने भी हैं।
बिल के विरोध में कई राज्यों में प्रदर्शन
वक्फ संशोधन बिल के विरोध में आज कई राज्यों में प्रदर्शन होते देखा गया, ये होना ही था और माना जा रहा है कि आगे और भी होगा। सरकार कहती है कि वो गरीब मुसलमानों का भला चाहती है इसलिए ये उनके हक का बिल है तो दूसरी ओर सारा विपक्ष इसे मुस्लिम विरोधी और बीजेपी पर हिन्दू-मुस्लिम करने का आरोप लगा रहा है। ये जान लीजिए कि समर्थन और विरोध मे जो आवाजें उठ रही हैं इसके पीछे राजनीतिक महत्व भी छिपा हुआ है। बीजेपी वक्फ बिल के जरिए उन गरीब मुसलमानों को दिल जीतना चाहती है जो बीजेपी को वोट नहीं करते और जो विपक्षी दलों का मजबूत वोट बैंक है।
पसमांदा मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की राजनीति?
बहस के दौरान बार-बार मुसलमानों के धर्म में दखल करने का आरोप और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बार-बार सफाई देना की ऐसा कुछ नहीं है। बीजेपी का ये दावा की गरीब मुसलमान का इस इस बिल के जरिए भला करना चाहती है, उतनी ही जोर से विपक्ष का भारी विरोध। ये सब ऐसे ही नहीं हो रहा, क्योंकि इसमें सबको बड़ा राजनीतिक मुद्दा दिखाई दे रहा है। जिस गरीब पसमांदा मुसलमानों की बात बार-बार हो रही है, वो राजनीतिक तौर पर कितना महत्व रखते है आंकड़ों से जानते है। माना जाता है कि पसमांदा समाज के लोग देश के लगभग 18 राज्यों में हैं। यूपी, बिहार, राजस्थान, तेलगांना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश में इनकी संख्या अधिक है। सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है। हर विधानसभा सीट पर इनकी उपस्थिति अच्छी खासी संख्या में है, जिनमें करीब 44 जातियां जैसे राइनी, इदरीसी, नाई, मिरासी, मुकेरी, बारी, घोसी शामिल हैं।
100 से अधिक सीटों पर प्रभाव
आंकड़ों के हिसाब से यह वोट बैंक लोकसभा की 100 से अधिक सीटों पर अपना प्रभाव रखता है। जनसंख्या के आधार पर देखें तो असम और बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 25-30 प्रतिशत, बिहार में करीब 17 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में करीब 20 प्रतिशत, दिल्ली में भी 10-12 प्रतिशत, महाराष्ट्र में करीब 12 प्रतिशत और केरल में 30 प्रतिशत संख्या मुस्लिम समुदाय की है। भारत में रहने वाले मुसलमानों में 15 फीसदी उच्च वर्ग के माने जाते हैं। जिन्हें अशरफ कहते हैं। इनके अलावा बाकी 85 फीसदी अरजाल, अजलाफ मुस्लिम पिछड़े हैं। इन्हें पसमांदा कहा जाता है।
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में जाति समीकरण ने भारी नुकसान पहुंचाया था। ऐसे में माना जा रहा है कि वक्फ संशोधन बिल पर जितना ज्यादा विरोध सड़कों पर होगा बीजेपी उससे जातियों में बंटे हिंदू वोट बैंक को अपनी ओर करने की कोशिश करेगी। पसमांदा मुसलमान का भला और पहली बार ईद के मौके पर गरीब मुसलमानों को सौगात-ए- मोदी का तोहफा देना, कुछ अलग कहानी बयां करता है।