क्या सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी करना भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को भारी पड़ सकता है। पूर्व आईपीएस और आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट से डॉ. निशिकांत दुबे के खिलाफ कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट में नियमानुसार कार्रवाई किए जाने की प्रार्थना की है। आइए जानते हैं कि क्या कहते हैं नियम?
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट का मामला चलाने के लिए अटॉर्नी जनरल की सहमति की जरूरत क्यों है? क्या इसलिए कि वो सांसद हैं- जवाब है नहीं। कॉन्टेंट ऑफ कोर्ट के लिए कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 में प्रक्रिया निर्धारित है। अगर कोर्ट खुद से किसी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई चलाना चाहता है तो किसी की पूर्व सहमति की जरूरत नहीं होती। लेकिन जब कोई प्राइवेट व्यक्ति किसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए कार्रवाई चाहता है तो उसे अटॉर्नी जनरल पूर्व सहमति की जरूरत होती है। हाई कोर्ट की अवमानना के मामले में एडवोकेट जनरल की सहमति की जरूरत होती है।
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जानें क्या है अवमानना की कार्रवाई में अटॉर्नी जनरल का रोल?
अगर अटॉर्नी जनरल ने सहमति नहीं दी तो अवमानना की कार्रवाई नहीं शुरू की जा सकती है। इस व्यवस्था को करने के पीछे की वजह गैर जरूरी (फालतू टाइप) की शिकायतों को रोकना है। अगर अटॉर्नी जनरल को लगता है कि किसी ने कोर्ट की अवमानना की है तो वो खुद कोर्ट से अवमानना की कार्रवाई के लिए अनुरोध कर सकते हैं। अटॉर्नी जनरल की सहमति के बाद अदालत उस व्यक्ति को नोटिस जारी कर जवाब मांगती है। कई बार आरोपी कोर्ट से माफी मांगकर बच जाता है।
जानें कोर्ट की अवमानना पर क्या है सजा का प्रावधान?
कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 के मुताबिक, कोर्ट की अवमानना के लिए अधिकतम 6 महीने जेल की सजा या 2 हजार रुपये जुर्माना या दोनों हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि कोर्ट इससे अधिक सजा नहीं सुन सकती है। अनुच्छेद 129 में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति है और इसमें कोई सीमा निर्धारित नहीं है। इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट के पास अनुच्छेद 142 की असीमित शक्तियां भी हैं।
अमिताभ ठाकुर ने क्रिमिनल कंटेंट की दायर की याचिका
पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट में भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे के खिलाफ क्रिमिनल कंटेंट की याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि डॉ. निशिकांत दुबे ने एक मीडिया इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी तमाम टिप्पणियां की थीं। इनमें कई ऐसी बातें थीं, जो कोर्ट के क्रियाकलापों के प्रति एकेडमिक टिप्पणी के रूप में देखी जा सकती है, लेकिन इसके विपरीत कई टिप्पणियां स्पष्ट रूप से अवमानना पूर्ण थीं। इनमें सुप्रीम कोर्ट और मौजूदा चीफ जस्टिस को देश के सभी गृह युद्ध एवं धार्मिक युद्धों के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने का आरोप शामिल है।
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