Bisrakh Village Never Celebrated Dussehra: देश की राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) जिले बिसरख गांव एक अनोखी परंपरा का पालन करता है। जहां पूरा देश दशहरे पर रावण का पुतला जलाकर आधर्म पर धर्म की जीत का जश्न मनाते हैं। वहीं, इस गांव में दानव राज रावण का पुतला नहीं जलाया जाता और न ही दशहरा नहीं मनाया जाता है।
रावण के पिता के नाम पर गांव का नाम
नई दिल्ली से लगभग 33 किमी पूर्व में मौजूद बिसरख गांव में लोग राम की नहीं बल्कि रावण पूजा करते है। बिसरख के रहने वालों का कहना है कि रावण उनके पूर्वज है, तो दशहरा पर वो अपने पूर्वज का पुतला कैसे जला सकते हैं? यह पूरी तरह से अशोभनीय है। यहां के लोगों का कहना है कि इस गांव का नाम रावण के पिता और एक प्रसिद्ध ऋषि विश्रवास के नाम पर है।
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रावण के प्रकोप का डर
इसके अलावा गांव के लोगों का ये भी मानना है कि अगर उन्होनें दशहरे पर रावण का पुतला जलाया तो उन पर रावण और शिव का क्रोध भड़क जाएगा। क्योंकि रावण भगवान शिव का परम भक्त था। इतना ही नहीं गांव के बीचों- बीच भगवान शिव का एक मंदिर भी है, मंदिर का नाम बिसरख रावण मंदिर है।
गांव के बीचों- बीच बिसरख रावण मंदिर
बिसरख रावण मंदिर को लेकर ग्रामीणों का मानना है कि रावण और उसके पूर्वजों ने इस मंदिर में परंपरा के अनुसार पूजा की थी। मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर में जिस शिवलिंग की पूजा की जाती है, उसकी स्थापना रावण के दादा पुलस्त्य ने की थी। स्थापना के बाद से उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी ने इस शिवलिंग की पूजा की थी। पुलस्त्य के बाद उनके बेटे विश्वासवा ने की और विश्वासवा के बाद रावण और कुंभकरण ने इस मंदिर में शिव की पूजा की। कई लोगों का तो ये भी मानना है कि रावण ने इसी मंदिर में वर्षों की पूजा करने के बाद चमत्कारी शक्तियां प्राप्त कीं।