देश को आजादी दिलाने के लिए कोई अहिंसा के रास्ते पर चला, तो कोई हथियार उठाकर क्रांतिकारी बन गया। सुभाष चंद्र बोस ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने युवाओं में जोश भर दिया था। आज भी उनके नाम और नारों को सुनकर नौजवान उत्साह से भर जाते हैं। उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी। 19 मार्च 1944 का ही वह ऐतिहासिक दिन था जब पहली बार यह फौज भारत में दाखिल हुई और तिरंगा फहराया गया।
आजाद हिंद फौज का गठन
सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने पूर्वोत्तर भारत में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया। यह स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसके बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई और तेज हो गई। बोस ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया था।
कहा फहराया गया था तिरंगा
19 मार्च 1944 को आजाद हिंद फौज ने मणिपुर के मोइरंग में पहली बार तिरंगा फहराया था। कर्नल शौकत मलिक ने कुछ मणिपुरी और आजाद हिंद फौज के साथियों की मदद से पूर्वोत्तर में देश की सीमा में प्रवेश किया और वहां फौज द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय ध्वज फहराया। हालांकि, औपचारिक रूप से यह झंडा भारत की मुख्य भूमि पर 14 अप्रैल को मोइरंग में फहराया गया था।
Azad Hind Fauj Soldiers Displaying The Slogan
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ON TO DELHI ! ON TO DELHI ! #AzaadiKiNishaniyan pic.twitter.com/8jyStIG5sV— indianhistorypics (@IndiaHistorypic) August 14, 2022
यह स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, जब आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने संघर्ष को और तेज किया। सुभाष चंद्र बोस भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में से एक थे, जिन्होंने “जय हिंद” का नारा दिया था। इसके साथ ही उनका एक और प्रसिद्ध नारा था, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।”
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14 अप्रैल को मोइरंग को आजाद हिंद फौज का मुख्यालय घोषित किया गया था। इसके बाद कर्नल मलिक ने औपचारिक रूप से झंडा फहराया, लेकिन आजाद हिंद फौज अधिक समय तक टिक नहीं सकी। अंग्रेजों के सामने कमजोर पड़ने के कारण जापानी सेना ने पीछे हटने का फैसला किया, जिससे आजाद हिंद फौज कमजोर हो गई और सारी रणनीति अधूरी रह गई।