Army should prepare policy for promotion of women officers by March 31 – CJI: महिला अफसरों के प्रमोशन के लिए सेना को 31 मार्च तक अपनी पॉलिसी तैयार करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने साफ लहजे में अटार्नी जनरल ऑफ इंडिया आर वेंकटरमानी से कहा कि बताई गई तारीख तक सेना अपनी पॉलिसी तैयार कर ले। इसके तैयार होने के बाद अटार्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत एक हलफनामा दाखिल करें।
सीजेआई की बेंच चार दिसंबर को दिए फैसले में कहा कि महिला अफसरों को प्रमोशन देने के लिए सेना संजीदगी से तय समय सीमा के भीतर अपना काम पूरा कर ले। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। बेंच उन महिला अफसरों की रिट पर सुनवाई कर रही थी जो लेफ्टिनेंट कर्नल से ब्रिगेडियर के पद पर पदोन्नति चाहती हैं। रिट दायर करने वाली अफसरों का कहना था कि सेना के नियम कायदे महिला अफसरों के लिहाज से ठीक नहीं हैं। सेना महिला अफसरों को प्रमोशन से वंचित करने के लिए भेदभाव की नीति अपना रही है।
अटार्नी जनरल ने सुनवाई के दौरान कहा कि आर्मी हेडक्वार्टर संजीदगी से अपना काम कर रहा है। वो महिला अफसरों की पदोन्नति के मसले में एक पॉलिसी तैयार करने में शिद्दत से जुटा है। तब सीजाआई ने उनको समयसीमा की याद दिलाई।
तीन ऐतिहासिक फैसलों से महिलाओं को मिली थी सेना में एंट्री
याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने तीन ऐतिहासिक फैसलों से महिलाओं के सेना में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया था। फरवरी 2020 में टॉप कोर्ट ने सेक्रेट्री मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस बनाम बबिता पूनिया के केस में कहा था कि सेना में परमानेंट कमीशन से महिलाओं को बाहर रखना भेदभाव पूर्ण फैसला है। अगले साल ले. कर्नल नितिशा बनाम केंद्र के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं को परमानेंट कमीशन देने के मामले में सेना का जो रवैया है वो लिंगभेद से भरा है। इससे भेदभाव हो रहा है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बावजूद महिला अफसरों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। प्रमोशन हासिल करने के लिए उन्हें हर बार सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर आना ही पड़ता है। शीर्ष अदालत अपने पहले के फैसलों में कई बार कह चुकी है कि सेना का रवैया भेदभाव से भरा है।
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सुनवाई के दौरान एक महिला सैन्य अफसर का पक्ष एडवोकेट अर्चना पाठक दवे ने रखा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के बताया कि 1999-2006 बैच की महिला अफसरों के साथ खासा भेदभाव हो रहा है। उनकी दलील थी कि महिला अफसरों के साथ दो तरह से सौतेला बर्ताव किया जा रहा है। पहले तो उनको पदोन्नति से वंचित रखा जा रहा है दूसरा उन्हें वित्तीय लाभ भी पुरुष अफसरों की तरह से नहीं मिल पा रहे हैं।
दिसंबर 2017 की पालिसी में निकाले मीनमेख
एडवोकेट अर्चना पाठक दवे ने सीजेआई की बेंच को बताया कि 23 दिसंबर 2017 की पालिसी का पत्र क्रमांक 04502 M\S साफ दिखाता है कि महिला अफसरों के प्रति किस तरह का भेदभाव हो रहा है। इसमें एसबी नंबर 2 के तहत 100 में से 95 नंबर क्वांटिफाइड पैरामीटर के तहत रखे जाते हैं। इसमें कान्फीडेंशियल रिपोर्ट के लिए 91, कोर्सेज के लिए 2 और गैलेंट्री अवार्ड के लिए 2 नंबर रखे जाते हैं। बाकी के पांच नंबर बोर्ड मेंबर्स के पास होते हैं। वो अपने हिसाब से इन नंबर्स पर फैसला ले सकते हैं।
एडवोकेट दवे ने बताया कि 91 में से 16.5 नंबर गहरी चिंता में डालने वाले हैं। ये नंबर स्पेशल पोस्टिंग के लिए दिए जाते हैं। लेकिन इस तरह की पोस्टिंग महिला अफसरों को दी ही नहीं जाती है। लिहाजा ये नंबर उनको मिल ही नहीं पाते हैं। ये सारे नंबर पुरुष अफसरों को मिलते हैं, क्योंकि इस तरह की स्पेशल पोस्टिंग उनको ही मिल पाती है। उन्होंने 11 नंबरों को लेकर भी सवाल उठाया। उनका कहना था कि ये नंबर महिला अफसरों को मिलते हैं लेकिन तभी जब वो मेजर या ले. कर्नल की पोस्ट पर हों।
एडवोकेट ने महिला अफसरों की पे का मामला भी उठाया
एडवोकेट अर्चना पाठक दवे ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि तनख्वाह व अन्य. वित्तीय लाभों के मामले में भी महिला अफसरों के साथ भेदभाव बरता जा रहा है। एक ही पद पर तैनात महिला व पुरुष अफसर की पे में काफी अंतर है। उनका कहना था कि इसमें हमारा क्या दोष है कि सेना ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल करने में देरी की। महिला अफसरों को सीनियोरिटी तो मिल रही है पर वित्तीय लाभ के बगैर। पेंशन में भी खासा अंतर है।