Adult Movie Privately Watching Not An Offence Says kerala High Court: अकेले में अश्लील फिल्में देखना क्या अपराध है? इस सवाल के जवाब में केरल हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने माना कि दूसरों को दिखाए बिना अकेले में अश्लील फिल्में देखना अपराध नहीं है। अदालत ने सात साल पुराने केस में शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। आरोपी को सड़क पर अपने मोबाइल पर अश्लील वीडियो देखने के लिए गिरफ्तार किया गया था। आरोपी की याचिका पर हाईकोर्ट के जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि अकेले में अश्लील साहित्य देना अपराध नहीं है।
2016 में पुलिस ने शख्स को किया था गिरफ्तार
दरअसल, 2016 में एर्नाकुलम जिले की अलुवा पुलिस ने रात में अलुवा पैलेस के पास एक सड़क पर अपने मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देखने के लिए एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया। उस व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत मामला दर्ज किया गया था। यह धारा अश्लील सामग्री की बिक्री, वितरण, सार्वजनिक प्रदर्शन, आयात और निर्यात सहित अन्य चीजों से संबंधित है।
हस्तक्षेप करना निजता का उल्लंघन
5 सितंबर को अपने फैसले में जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि अश्लील फिल्में देखना एक नागरिक की निजी पसंद है और इसमें हस्तक्षेप करना उसकी निजता का उल्लंघन होगा। न्यायाधीश ने कहा कि यदि आरोपी व्यक्ति किसी अश्लील वीडियो या फोटो को प्रसारित करने या वितरित करने या सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहा होता तो यह अपराध होता।
अदालत ने मांगा पुलिस से इस बात के सबूत
न्यायाधीश ने कहा कि कानून की अदालत को सहमति से यौन संबंध बनाने या गोपनीयता में अश्लील वीडियो देखने को मान्यता देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ये समाज की इच्छा और विधायिका के निर्णय के दायरे में हैं। अदालत का कर्तव्य केवल यह पता लगाना है कि क्या यह अपराध है।
अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत अपराध की पुष्टि के लिए सबूत होने चाहिए कि आरोपी अश्लील साहित्य बेचता है, किराए पर देता है, वितरित करता है, सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता है या किसी भी तरह से प्रचलन में लाता है, या बिक्री के प्रयोजनों के लिए, किराया, वितरण, सार्वजनिक प्रदर्शनी या संचलन, किसी भी अश्लील पुस्तक, पैम्फलेट, कागज, ड्राइंग, पेंटिंग, प्रतिनिधित्व या आकृति या किसी भी अन्य अश्लील वस्तु को बनाता है, उत्पादित करता है या अपने कब्जे में रखता है।
सदियों से अश्लील साहित्य अस्तित्व में
इसके बाद अदालत ने उस व्यक्ति के खिलाफ मामला रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने यह भी कहा कि अश्लील साहित्य सदियों से अस्तित्व में है और इन दिनों इंटरनेट ने इसे और अधिक सुलभ बना दिया है।
हालांकि, उन्होंने नाबालिग बच्चों के माता-पिता को उन्हें मोबाइल फोन खरीदने के प्रति आगाह किया। उन्होंने कहा कि अश्लील साहित्य देखना अपराध नहीं हो सकता है। लेकिन अगर नाबालिग बच्चे अश्लील वीडियो देखना शुरू कर दें, जो अब सभी मोबाइल फोन पर उपलब्ध हैं, तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इसलिए अभिभावकों को अपने नाबालिग बच्चों को मोबाइल सौंपने से पहले कई बार सोचना चाहिए।
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