Game Changer Review: वक्त बदल दिया, जज्बात बदल दिए…ये डायलॉग तो आपने सुना ही होगा। एक समय पर सोशल मीडिया पर ये लाइन काफी वायरल हुई थी। साउथ सुपरस्टार राम चरण और कियारा आडवाणी की फिल्म ‘गेम चेंजर’ को देखने के बाद बस यही ख्याल मन में आता है। एक आम आदमी से आईपीएस ऑफिसर, एक आईपीएस ऑफिसर से आईएएस ऑफिसर और आईएएस ऑफिसर से सीएम…बस इसी सफर को फिल्म में बड़ी ही सरलता के साथ दिखाया गया है।
फिल्म में राजनीतिक पार्टी की कहानी दिखाई गई है जो उठते-जागते समय बस भ्रष्टाचार करना ही जानती है। कैसे उस पार्टी का सामना जब राम चरण यानी राम नंदन से होता है, कैसे पूरा का पूरा गेम ही एक आईएएस अधिकारी बदल कर रख देता है, फिल्म की कहानी इसी पर बेस्ड है।
कैसी है फिल्म की कहानी?
फिल्म की शुरुआत होती है राम चरण उर्फ राम नंदन की धांसू एट्री से। राम नंदन एक आईएएस अधिकारी है जो अपने जिले से भ्रष्टाचार और गरीबी को पूरी तरह से दूर कर देना चाहता है। वो जगह-जगह पर छापेमारी करता है और गैर-कानूनी धंधों को बंद करवाता है। इसी बीच उसकी पर्सनल लाइफ का फ्लैशबैक दिखाया जाता है जहां वो एक लड़की को देखते ही दिल दे बैठता है लेकिन कुछ कारणों की वजह से दोनों एक दूसरे के नहीं हो पाते, इसलिए राम नंदन 10 सालों तक किसी और से शादी नहीं करता।
फिल्म में कियारा आडवाणी उर्फ दीपिका एक डॉक्टर हैं लेकिन 10 सालों बाद वो एक एनजीओ चलाती हैं, जहां बुजुर्ग लोगों की सेवा करती हैं। आईएएस अधिकारी बनने के बाद राम नंदन उससे मिलने जाता है और फिर पता चलती है दोनों के अलग होने की वजह। राम नंदन की एक चीज दीपिका को बिल्कुल पसंद नहीं आती और वो है उसका गुस्सा। वो कोई भी गलत काम होने पर मारपीट करने लगता है, इसलिए दीपिका उससे कहती हैं कि वो आईएएस अधिकारी बने और अपने गुस्से का सही से इस्तेमाल करे।
राम नंदन कम नंबरों की वजह से आईपीएस अधिकारी बन जाता है, बस इसलिए दीपिका उसे छोड़कर चली जाती है। दीपिका नहीं चाहती थी कि वो आईपीएस अधिकारी बने क्योंकि खाकी वर्दी में मारपीट करना राम नंदन और देश, दोनों के लिए ही ठीक नहीं होता। 10 सालों बाद दोनों की मुलाकात होने के बाद फिर से साथ आ जाते हैं।
इसी बीच आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी के सीएम सत्य मूर्ति प्रकाश की तबीयत ठीक नहीं रहती। उन्हें बार-बार अस्पताल भर्ती कराया जाता है क्योंकि उनके सपने में ऐसे-ऐसे भयानक दृश्य आते हैं कि उन्हें हार्ट अटैक आ जाता है। उनके दो गोद लिए बेटे उनके मरने की कामना करते हैं ताकि उन्हें सीएम की कुर्सी मिल जाए। हालांकि सत्य मूर्ति अपने नालायक बेटों के इरादों को जानते हैं। उधर आईएएस अधिकारी राम नंदन का सामना वृद्ध आश्रम में एक बुजुर्ग महिला पारवती से होता है जो पिछले कई सालों से सीएम को खत लिख रही होती है। देश से भ्रष्टाचार मिटाने की आस में वो आजतक अपनी शुद्ध-बुद्ध खोकर बैठी हुई है।
राम नंदन बताता है कि सीएम एक चुनावी रैली के लिए आने वाले हैं तो वो वहां पर आकर उनसे अपनी बात कर सकती हैं। इसके बाद चुनावी भाषण के दौरान पारवती अचानक भीड़ में से उठकर सीएम को भला-बुरा कहने लगती हैं। सीएम अपने पास्ट के बुरे कामों का प्रायश्चित करना चाहते हैं इसलिए वो पारवती को स्टेज पर बुला लेते हैं लेकिन वहीं से शुरू होती है फिल्म की असली कहानी। कैसे सीएम के बेटे द्वारा पारवती और दीपिका का अपमान राम नंदन को उस पर हाथ उठाने के लिए मजबूर कर देगा और कैसे आईएएस अधिकारी को सीएम पद मिल जाएगा। इसी में छुपे हैं कई राज जो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चल पाएगा।
फिल्म का डायरेक्शन
फिल्म को एस शंकर ने डायरेक्ट किया है। स्टोरी लाइन से लेकर फिल्म के डायलॉग्स तक, हर कुछ कमाल का लगता है। फिल्म की कहानी को बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया गया है। फिल्म में कियारा आडवाणी और राम चरण ने काफी अच्छा काम किया है। एक्शन से लेकर डांस सिक्वेंस तक, फिल्म में सबकुछ बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है।
फिल्म की कमजोर कड़ी
फिल्म के गाने इसकी कमजोर कड़ी लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे गानों को फालतू में ही लेंथ बढ़ाने के लिए डाला गया है। फिल्म के गाने बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं। कियारा आडवाणी को गानों में खूब डांस कराया हुआ है। राम चरण और कियारा साथ में अच्छे बेशक लग रहे हैं लेकिन गाने अगर बेहतर होते और हिट रहते तो फिल्म की परफॉर्मेंस में चार चांद लग सकते थे। हालांकि फिल्म की कहानी बहुत से मौकों पर प्रिडिक्टिड भी लगती है। कई ऐसे मौके होते हैं जहां वाकई में गेम चेंज हो जाता है। लेकिन क्या फिल्म बॉक्स ऑफिस पर गेम चेंज कर पाएगी, ये देखना काफी दिलचस्प होगा।
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