जातिवाद की बात जब आती है तो भीमराव अंबेडकर का नाम दिमाग में आना लाजमी है। आज पूरा देश डॉ. बीआर अंबेडकर की जयंती मना रहा है। फिल्मी नजरिए से देखा जाए तो इंडस्ट्री में कई फिल्में बनी हैं जिसमें जातिवाद के रंग को गहराई से उकेरा गया है। जातिगत असमानता के विषय पर बॉलीवुड बहुत मुखर रहा है। 1959 में रिलीज हुई ‘सुजाता’ जाति व्यवस्था के उन्मूलन पर ग्रंथ से प्रेरित फिल्म थी जिसमें जातिवाद के मुद्दों को दिखाया गया है। आज हम आपको ऐसी ही कुछ फिल्मों के बारे में बताएंगे जिन्हें आप अंबेडकर जयंती पर देख सकते हैं।
सुजाता
सबसे पहले बात करते हैं फिल्म ‘सुजाता’ की जिसमें तरुण बोस और सुलोचना नजर आए थे। फिल्म में एक बेटी की कहानी दिखाई गई है जिसकी मां ने कभी उसे बायोलॉजिकल बेटी रमा जितना प्यार नहीं दिया। जब सुजाता को सुनील दत्त द्वारा अभिनीत एक उच्च जाति के ब्राह्मण लड़के से प्यार हो जाता है, तो सब कुछ बिखर जाता है।
बैंडिट क्वीन
शेखर कपूर की फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ 1994 में रिलीज हुई थी, जिसमें उत्पीड़न, दमन और जाति की राजनीति को दिखाया गया है। फिल्म में क्रूर, ब्राह्मणवादी श्रेष्ठता के प्रति अपनी अवमानना में बेबाक और रेप को उत्पीड़न और शक्तिहीनता के साधन के रूप में इस्तेमाल करने में स्पष्ट रूप से स्पष्ट ये फिल्म गुस्से से भरी हुई है।
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अंकुर
श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ 1974 में रिलीज हुई थी। ये फिल्म भी उत्पीड़न पर एक सशक्त ग्रंथ है। जब एक लड़की को सड़क पर भीड़ द्वारा छेड़ा जाता है और सभ्य समाज मूक-बधिर होकर देखता है। वहीं दूसरी ओर मूक-बधिर किसान को जमींदार के बेटे द्वारा कोड़े मारे जाने पर एक छोटा लड़का पत्थर उठा खिड़की के शीशे पर फेंकता है। ये एक निर्णायक क्षण था जब हिंदी सिनेमा ने क्रांतिकारी बनने का संकल्प लिया।
मसान
नीरज घेवान की फिल्म ‘मसान’ जाति के कारण बर्बाद हुए और गलत फैसलों के कारण बर्बाद हुए किरदारों की दुनिया में ले जाती है। फिल्म में ऋचा चड्ढा और विक्की कौशल के अलावा संजय मिश्रा भी हैं। फिल्म की कहानी मध्यम वर्ग के साथ गहरे जुड़ाव के कारण अपने पात्रों को उस आघात और पीड़ा से बाहर निकालने में मदद दिलाती है, जिससे वंचित वर्ग लगातार पीड़ित हैं।
सद्गति
सत्यजीत रे की फिल्म ‘सद्गति’ 1981 में रिलीज हुई थी जो जाति व्यवस्था की तीखी आलोचना करती है। फिल्म में दिवंगत एक्टर ओम पुरी एक पिछड़े, वंचित मजदूर हरिजन की भूमिका में हैं, जो आर्थिक मदद के लिए मदद मांगता है लेकिन जाति शोषण के चलते हरिजन अपनी जिंदगी को खत्म कर लेता है।