अमेरिका की ट्रंप सरकार ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अब विदेशी छात्रों के एडमिशन पर रोक लगा दी है। सरकार ने यूनिवर्सिटी की Student and Exchange Visitor Program (SEVP) की मान्यता रद्द कर दी है। इसके साथ ही पहले से पढ़ रहे विदेशी छात्रों को या तो दूसरी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर होना होगा या फिर उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ेगा।
सरकार और हार्वर्ड के बीच टकराव की वजह
यह फैसला तब आया जब हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने सरकार की कई मांगों को मानने से इनकार कर दिया। अप्रैल 2025 में अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट (DHS) ने हार्वर्ड से विदेशी छात्रों के कंडक्ट रिकॉर्ड्स (व्यवहार से जुड़ी जानकारी) मांगी थी, जिसे यूनिवर्सिटी ने गोपनीयता और संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए साझा करने से मना कर दिया।
कितने छात्रों पर असर पड़ेगा?
इस फैसले से हार्वर्ड में पढ़ रहे लगभग 6,793 विदेशी छात्र प्रभावित होंगे, जो कुल छात्रों का 27.2% हिस्सा हैं। हार्वर्ड की अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक आबादी करीब 9,970 लोगों की है। यूनिवर्सिटी का मानना है कि इससे संस्थान की वैश्विक प्रतिष्ठा और शैक्षणिक गुणवत्ता को गंभीर नुकसान पहुंचेगा।
वहीं, भारत से हर साल सैकड़ों छात्र हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए जाते हैं, लेकिन ट्रंप प्रशासन के इस फैसले ने इन छात्रों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। जो छात्र ग्रेजुएशन या मास्टर्स के लिए वहां जाने की तैयारी में थे, उनके लिए यह खबर किसी झटके से कम नहीं है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, हर साल लगभग 500 से 800 भारतीय छात्र वहां एडमिशन लेते हैं। वर्तमान समय में 788 भारतीय छात्र हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे हैं। अब इन छात्रों के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।
व्हाइट हाउस का सख्त रुख
व्हाइट हाउस ने बयान जारी करते हुए कहा कि “विदेशी छात्रों को दाखिला देना कोई अधिकार नहीं बल्कि एक विशेषाधिकार है।” उन्होंने हार्वर्ड पर यह आरोप भी लगाया कि यूनिवर्सिटी अब “अमेरिका विरोधी, यहूदी विरोधी और आतंकवादी समर्थक” विचारधाराओं को बढ़ावा दे रही है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एबीगेल जैक्सन ने कहा कि हार्वर्ड अमेरिकी छात्रों के हितों की रक्षा करने में विफल रहा है।
ट्रंप प्रशासन की मांगें और आरोप
सरकार ने हार्वर्ड से कई बदलावों की मांग की थी, जैसे कैंपस में हो रहे इजराइल-हमास युद्ध से जुड़े प्रदर्शनों में शामिल छात्रों और कर्मचारियों की जांच, और यूनिवर्सिटी की “डाइवर्सिटी, इक्विटी और इंक्लूजन” नीतियों को बंद करना। इसके अलावा सरकार चाहती थी कि यूनिवर्सिटी छात्रों और फैकल्टी के विचारों का ऑडिट कराए, जिसे हार्वर्ड ने असंवैधानिक बताया।
हार्वर्ड का जवाब और विरोध
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने इन सभी मांगों को अपने शैक्षणिक स्वायत्तता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। यूनिवर्सिटी ने SEVP की मान्यता खत्म करने के फैसले को “गैरकानूनी” कहा है। हार्वर्ड के प्रवक्ता जेसन न्यूटन ने कहा कि यह कदम बदले की भावना से उठाया गया है और इससे हार्वर्ड तथा अमेरिका दोनों को नुकसान पहुंचेगा।
मिला 72 घंटों का समय
नोएम ने यह स्पष्ट किया है कि अगर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अपनी स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम (SEVP) की मान्यता दोबारा पाना चाहती है, तो उसे 72 घंटों के भीतर कुछ अहम डॉक्यूमेंट्स जमा करने होंगे। इनमें छात्रों के अनुशासनात्मक रिकॉर्ड, विरोध-प्रदर्शनों से जुड़ी वीडियो फुटेज, और पिछले पांच वर्षों में छात्रों की किसी भी अवैध गतिविधियों का पूरा ब्यौरा शामिल है। यह शर्त यूनिवर्सिटी के सामने एक सख्त अल्टीमेटम की तरह रखी गई है।
पॉलिसी में किया गया बदलाव
सरकार के दबाव के बाद हार्वर्ड ने कुछ आंतरिक बदलाव किए हैं। उदाहरण के लिए, यूनिवर्सिटी ने अपने “Office of Equity, Diversity, Inclusion and Belonging” का नाम बदलकर “Community and Campus Life” कर दिया है। फिर भी, सरकार हार्वर्ड से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है।
आर्थिक दबाव और कानूनी लड़ाई
ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड पर आर्थिक दबाव भी बनाया है। सरकार ने हार्वर्ड की $2.2 अरब डॉलर की फंडिंग रोक दी है, जिसे लेकर यूनिवर्सिटी कोर्ट में केस लड़ रही है। इसके अलावा, अमेरिकी इनकम टैक्स विभाग हार्वर्ड की टैक्स-फ्री स्थिति खत्म करने की योजना भी बना रहा है।
क्या केवल हार्वर्ड ही निशाने पर है?
हार्वर्ड अकेला ऐसा संस्थान नहीं है। ट्रंप प्रशासन अमेरिका की कई अन्य प्रमुख यूनिवर्सिटियों से भी ऐसे ही बदलावों की मांग कर रहा है। क्रिस्टी नोएम ने Fox News पर कहा, “यह बाकी सभी यूनिवर्सिटियों के लिए चेतावनी है – अब समय है कि आप सुधर जाएं।”
इस पूरे घटनाक्रम ने अमेरिका की उच्च शिक्षा प्रणाली, विदेशी छात्रों की स्थिति और शैक्षणिक संस्थानों की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला केवल हार्वर्ड तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि इसका असर अमेरिका की वैश्विक शिक्षा छवि पर भी पड़ सकता है। आने वाले समय में इस कानूनी और नैतिक लड़ाई का अंजाम क्या होगा, यह देखना बाकी है।