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जानें कौन हैं देश की पहली महिला बारबर शांताबाई, जिनसे यशोभूमि में पीएम मोदी ने की मुलाकात

India’s First Woman Hairdresser Shantabai Yadav : विश्वकर्मा जयंती के मौके और विश्वकर्मा योजना की शुरुआत से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सबसे पहली महिला नाई यानी बारबर शांताबाई यादव मुलाकात की। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने शांताबाई यादव द्वारका के यशोभूमि सम्मेलन केंद्र में मिले। प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर शांताबाई काफी खुश और उत्साहित […]

Edited By : Pankaj Mishra | Updated: Sep 18, 2023 15:56
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India’s First Woman Hairdresser Shantabai Yadav

India’s First Woman Hairdresser Shantabai Yadav : विश्वकर्मा जयंती के मौके और विश्वकर्मा योजना की शुरुआत से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सबसे पहली महिला नाई यानी बारबर शांताबाई यादव मुलाकात की। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने शांताबाई यादव द्वारका के यशोभूमि सम्मेलन केंद्र में मिले। प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर शांताबाई काफी खुश और उत्साहित नजर आ रही हैं।

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मुश्किल हालात ने बनाया बारबर

शांतिबाई श्रीपति यादव ऐसे ही देश की पहली महिला नाई नहीं बन गईं। बल्कि मुश्किल और कठिन हालत ने उन्हें नाई यानी बारबर बनने के लिए मजबूर किया। 1980 के दशक में नाई के रूप महिलाओं का काम करना मुश्किल था क्योंकि उस नाई के काम पर पुरुष का एकाधिकार था वो ही इस काम को करते थे। लेकिन पिछले चार-दशक नाई के रूप में काम करने वाली शांताबाई ने चार बेटियों की शादी करने के साथ-साथ लिंग संबंधी रूढ़ियां को भी तोड़ दिया।

पति के निधन के बाद परिवार चलाने की चुनौती

महाराष्ट्र के कोल्हापुर के एक दूरदराज गांव की रहने वाली शांताबाई के कंधे पर पति के निधन के बाद परिवार की जीविका चलाने की जिम्मेदारी आ गई। दरअसल शांताबाई के पति श्रीपति यादव की नाई की एक दुकान थी। उनकी छह बेटियां थी लेकिन दो कुपोषण और आभाव के दो बच्चियां जीवित नहीं रह सकीं। इसके कुछ समय बाद उनके पति श्रीपति यादव का भी निधन हो गया। इसके शांतिबाई अपनी चार बेटियों के साथ अकेली रह गयीं।

मजदूरी से नहीं हो पा रहा था गुजारा

पति की मौत के बाद गुजारे कि लिए शांताबाई ने मजदूरी करनी शुरू की। उन्हें दिनभर के काम के बदले में 50 पैसे मिलते थे, जिससे पांच लोगों का गुजारा नहीं हो पा रहा था। इसके बाद शांतिबाई ने हाथ में उस्तरा उठा लिया और पति के नाई की दुकान पर लोगों के बाल और दाढ़ी बनाने लगीं।

शुरुआत में शक की नजर से देखते थे लोग

शुरुआत में लोग शांतिबाई को शक अगर गलत नजर से देखने लगे। लेकिन उन्होंने हिम्मत हिम्मत नहीं छोड़ी। वो घर पर ही लोगों के दाढ़ी और बॉल बनाने लगीं। धीरे-धीरे लोग उनके पास आने लगे और उनका काम चलने लगा। उस जमाने में लोग शेविंग के बदले अनाज देते थे पैसे नहीं। शांतिबाई को इससे कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि उनके और उनके बच्चों को खाना मिलने लगा।

नहीं छोड़ी हिम्मत, बढ़ने लगी कमाई

समय के साथ शांतिबाई का काम बढ़ने लगा। लोग उन्हें नाई के काम के लिए घर पर भी बुलाने लगे। इसके साथ ही स्कूलों ने भी अपने यहां उन्हें बुलाना शुरू कर दिया। इससे शांतिबाई की धीरे-धीरे आमदनी होने लगी। अपनी उसी कमाई से शांति बाई ने इंदरा गांधी आवास योजना से अपना घर बनवाया और चारों बेटियों की शादी की।

उस्तरा को बनाया अपने जीवन का प्रतीक

उस्तरा को अपने जीवन का प्रतीक बन चुकी शांतिबाई अब 80 साल की हो चुकी हैं और उम्र ज्यादा काम की अनुमित भी नहीं देती, लेकिन उनका कहना है कि वो किसी पर आश्रित नहीं रहना चाहती, जब हाथ पैर काम कर रहा है वो काम करती रहेंगी।

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Edited By

Pankaj Mishra

First published on: Sep 18, 2023 02:02 PM

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