Amendments in CGST Act: केंद्र ने सीजीएसटी अधिनियम- 2017 की धारा 17 में उप-धारा (5) के खंड (डी) में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। बता दें कि जीएसटी परिषद ने बजट सत्र के दौरान सीजीएसटी अधिनियम में संशोधन किए जाने का मार्ग पहले ही प्रशस्त कर दिया था। इसके तहत “प्लांट या मशीनरी” शब्दों की जगह पर अब “प्लांट और मशीनरी” का उपयोग किया जाएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को संसद में अपने बजट भाषण में घोषणा करते हुए कहा, “उप-धारा (5) के खंड (डी) में संशोधन किया जा रहा है ताकि “प्लांट या मशीनरी” शब्दों के स्थान पर “प्लांट और मशीनरी” शब्दों का उपयोग किया जाय। यह संशोधन पिछली तारीख यानी एक जुलाई, 2017 से ही प्रभावी तौर पर लागू होगा।
इन संशोधनों में सफारी रिट्रीट्स मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए पिछली तारीख से संशोधन के अलावा कर चोरी की आशंका वाली वस्तुओं पर नजर रखने के लिए सरकार को ज्यादा मजबूत बनाने वाले प्रावधान आदि शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने दायर की थी समीक्षा याचिका
यह प्रस्ताव वित्त मंत्रालय द्वारा सफारी रिट्रीट्स मामले में हाल ही में दिए गए फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करने के कुछ दिनों बाद आया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत के फैसले में वाणिज्यिक रियल एस्टेट कंपनियों को किराए की संपत्तियों के निर्माण लागत पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा करने की अनुमति दी गई थी। जीएसटी कानून में इस संशोधन के प्रभावी होने से सर्वोच्च न्यायालय का वह फैसला पलट जाएगा जिसके तहत कहा गया था कि अगर मकान का इस्तेमाल किराए के लिए किया जाता है तो मालिक अपनी निर्माण लागत पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ ले सकता है।
क्या है इसका मतलब?
ग्रांट थॉर्नटन भारत (Grant Thornton Bharat) के पार्टनर सोहराब बरारिया (Sohrab Bararia) ने बताया कि केंद्रीय बजट 2025-26 में सीजीएसटी अधिनियम की धारा 17(5)(डी) में एक महत्वपूर्ण संशोधन का प्रस्ताव लाया गया है। जिसके अनुसार एक जुलाई, 2017 से ‘प्लांट या मशीनरी’ शब्द को ‘प्लांट और मशीनरी’ शब्द में बदला गया है। यह विधायी परिवर्तन प्रभावी रूप से ऐतिहासिक सफारी रिट्रीट्स मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर देता है, क्योंकि न्यायालय ने व्यवसायों को कार्यक्षमता परीक्षण के तहत ‘प्लांट’ के रूप में वर्गीकृत संपत्तियों पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा करने की अनुमति दी थी।
बरारिया ने आगे कहा, “करदाताओं के दृष्टिकोण से इस संशोधन के दूरगामी प्रभाव होंगे, क्योंकि जिन उद्योगों ने सफारी रिट्रीट्स के फैसले या मौजूदा प्रावधानों की चर्चित व्याख्या के आधार पर अपने इनपुट टैक्स क्रेडिट दावों का उल्लेख किया है, उन्हें अब अपनी कर स्थिति का फिर से मूल्यांकन की आवश्यकता होगी। इस संशोधन से संभावित रूप से विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।”
बरारिया ने आगे कहा, “इसके अलावा सफारी रिट्रीट्स मामले में केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर करना इस प्रक्रिया को और जटिल बनाती है। इस संशोधन को लेकर न्यायालय का रुख, चल रहे और भविष्य के मुकदमों पर इसके प्रभाव को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होगा। इसलिए व्यवसायों को सतर्क रहना चाहिए और अपनी कर रणनीतियों का सक्रिय रूप से मूल्यांकन करना चाहिए और संभावित कानूनी चुनौतियों का अनुमान लगाना चाहिए क्योंकि जीएसटी ढांचा लगातार विकसित हो रहा है।”
क्या है सफारी रिट्रीट्स मामला?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सफारी रिट्रीट्स मामला अचल संपत्ति, विशेष रूप से लीजिंग या किराए पर दिए जाने वाले शॉपिंग मॉल जैसी वाणिज्यिक संपत्तियों के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट की पात्रता से संबंधित है। इससे कारोबारियों के जीएसटी देनदारियों पर नजर रखने में मदद मिलेगी।