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Junk Food और Soft Drinks कैसे बने बच्चों की सेहत के लिए ‘धीमा जहर?’

Bharat Ek Soch: मिलावट और प्रदूषण की वजह से लोगों को 45 साल की उम्र में ही सुबह-शाम दवाइयां खानी पड़ रही हैं। 

Edited By : Anurradha Prasad | Updated: Nov 4, 2023 21:12
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news 24 editor in chief anuradha prasad special show oh health
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Bharat Ek Soch: किसी भी समाज की सफलता, किसी भी व्यवस्था की कामयाबी बहुत हद तक सेहतमंद लोगों पर निर्भर करती है और इन दिनों सबसे ज्यादा खतरा लोगों की सेहत पर मंडरा रहा है। अक्सर कहा जाता है कि अगर धन गया तो कुछ नहीं, अच्छा साथी गया तो बड़ा नुकसान हुआ और अगर सेहत गई तो सब गया। मेडिकल साइंस में तरक्की और हेल्थ सर्विसेज तक पहुंच बढ़ने से लोगों की औसत उम्र तो बढ़ी है, लेकिन मिलावट और प्रदूषण की वजह से लोगों को 45 साल की उम्र में ही सुबह-शाम दवाइयां खानी पड़ रही हैं।

न साफ हवा, न साफ पानी

घर के दूसरे खर्चों की तरह दवाइयों के खर्च को भी जोड़ना पड़ रहा है । न साफ हवा है…न साफ पानी है…न शुद्ध अनाज बचा है…फल में भी केमिकल घुला है। दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में रहनेवाले लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो चुका है। सड़कों पर सब कुछ धुंधला-धुंधला दिखाई दे रहा है… किसी का दम घुट रहा है…किसी को आंखों में जलन महसूस हो रही है..रात होते ही बच्चों की खांसी शुरू हो जाती है। इसी तरह सुबह-शाम जो कुछ खा रहे हैं- उसमें भी धीमा जहर है, जिसे खुली आंखों से देखना मुश्किल है। सुबह से शाम तक जितनी बार दूध वाली चाय या कॉफी पीते हैं…जितनी बार मिठाइयां या नमकीन खाते हैं। उसके जरिए भी सेहत को बट्टा लगाने वाली चीजें आपके शरीर में धीरे-धीरे दाखिल हो रही हैं…जो लगातार आपकी मुश्किलें बढ़ा रही हैं और उम्र भी घटा रही हैं? आज ‘भारत एक सोच’ में इंसान की सेहत के इसी पक्ष को समझने की कोशिश करेंगे अपने खास एपिसोड ‘इतना क्यों बीमार पड़ रहा है इंसान में?’

कुछ इलाकों में AQI 500 के निशान के पार

सबसे पहले बात करते हैं – हवा में मिलावट की। इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोग बुरी तरह प्रभावित हैं। सड़कों पर मास्क पहनकर निकल रहे हैं… दोपहर में भी आसमान साफ नहीं दिखाई दे रहा है। सड़कों पर गाड़ियों की रफ्तार सुस्त हो चुकी है… सांस लेने में घुटन, गले में खराब और आंखों में जलन सामान्य सी बात है। हर साल ठंड में दिल्ली में कुछ इसी तरह की तस्वीर दिखाई देती है। हवा में कितनी मिलावट यानी प्रदूषण है- इसे AIR QUALITY INDEX में मापा जाता है। 301 से 400 के बीच के AQI को बहुत ही खराब माना जाता है… उससे ऊपर के AQI को किसी भी इंसान की सेहत के लिए बहुत ही खतरनाक माना जाता है। इन दिनों दिल्ली के कुछ इलाकों में AQI 500 के निशान को भी पार कर जा रहा है। शुक्रवार शाम 7 बजे दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के पास AQI 890 तक पहुंचा तो दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क-V में 829…ऐसे में समझा जा सकता है कि दिल्ली की हवा किसी भी इंसान की सेहत के लिए कितनी हानिकारक बन चुकी है…किस तरह की बीमारियों को जहरीली हवा न्योता दे रही है।

गैस चैंबर में तब्दील हुई राजधानी

अगर ये कहा जाए कि देश की राजधानी एक गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी है – तो संभवत: गलत नहीं होगा। एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में रहने वाले लोगों की उम्र प्रदूषण की वजह से 11.9 साल कम हो रही है…मतलब, अगर किसी आदमी को 80 साल जीना है तो प्रदूषण की वजह से वो 68 साल की उम्र में ही दम तोड़ देगा। एक और स्टडी में दावा किया गया है कि दुनिया में 16 फीसदी लोगों की मौत प्रदूषण की वजह से समय से पहले हो जाती है..Lancet Planetary Health Report कहती है कि साल 2019 में पूरी दुनिया में प्रदूषण की वजह से करीब 90 लाख लोगों की मौत हुई… जिसमें 22 लाख लोग भारत से थे।

खाने की चीजों में मिलावट

वायु प्रदूषण से ही मरने वालों का आंकड़ा 16.7 लाख का था..दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में हवा इन दिनों जितनी जहरीली हो चुकी है…कुछ वैसे ही हालात 71 साल पहले लंदन में भी थे । वो साल था -1952 का और महीना दिसंबर का… हर साल की तरह लंदन के आसमान में स्मॉग की मोटी चादर पसरी हुई थी। वहां के लोगों को लग रहा था कि हर साल तो स्मॉग का कहर तो झेलते ही हैं। लेकिन, उस साल पांच दिसंबर को अचानक लंदन में दिन में अंधेरा छा गया … हवा दमघोंटू बन गई। लोग देखते ही देखते दम तोड़ने लगे…सिर्फ चार दिनों में ही चार हजार लोगों की जान गई। जिसे दुनिया ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन के नाम से जानती है । हवा में घुला जहर कितना खतरनाक साबित हो सकता है… उसे समझने और सबक लेने के लिए ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन पूरी दुनिया के सामने एक डरावना ख्वाब की तरह है। सिर्फ हवा ही प्रदूषित नहीं है…जो कुछ हेल्दी समझ कर खा रहे हैं, उसमें भी कहीं-न-कहीं मिलावट है। इसे दो तरह से समझ सकते हैं – एक बाहरी मिलावट। दूसरा, खेती के तौर-तरीकों में आए बदलावों के साथ अनाज में शामिल हो चुका स्लो प्वाइजन यानी धीमा जहर। अधिक पैदावार के लिए खेती में Fertilizer और कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल की वजह से कई हानिकारक चीजें हमारे खान-पान के ईको सिस्टम में शामिल हो चुकी हैं।

मिलावट खोर अपनाते हैं सस्ते तरीके

एक स्टडी के मुताबिक, साल 1950-51 में देश के किसान सिर्फ 7 लाख टन Fertilizer इस्तेमाल करते थे…जो अब 335 लाख टन तक पहुंच चुका है। एक स्टडी ये भी कहती है कि देश के 83 फीसदी रासायनिक खाद का इस्तेमाल 292 जिलों में होता है। देश की बढ़ती आबादी के साथ लोगों की भूख मिटाने और अधिक पैदावार के लिए रासायनिक खादों के इस्तेमाल का सिलसिला शुरू हुआ… हरित क्रांति ने इसे और आगे बढ़ाया। अब हालात ये है कि रासायनिक उर्वरक मिट्टी की सेहत के साथ-साथ इंसान की सेहत के भी दुश्मन बन चुके हैं। लोगों को बीमार बनाने में भोजन चक्र में घुसपैठ कर चुका जहर बड़ी भूमिका निभा रहा है। ऐसे में Organic Food और Millets को भोजन में शामिल करने की बड़े पैमाने पर कोशिश हो रही है। दूध में भारत हजारों साल से तंदरुस्ती खोजता रहा है… उसे एक संपूर्ण आहार के तौर पर देखा जाता रहा है। उस दूध में भी मिलावट इस कदर पैर जमाती जा रही है – जिससे लोगों के लिए दूध भी मीठा जहर साबित हो रहा है। त्योहारों के मौसम में मिठाइयों की डिमांड पूरी करने के लिए मिलावट खोर कई ऐसे सस्ते तरीके अपनाते रहे हैं–जो लोगों की सेहत को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभा रहा है।

त्योहारों के मौसम में चलता है गोरखधंधा

देश में नकली दूध और दुग्ध उत्पादों का बड़ा गोरखधंधा खासतौर से त्योहारों के मौसम में चलता है। डॉक्टर मिलावटी चीजों की वजह से कई गंभीर बीमारियों के नाम गिना देंगे… जिसमें से एक बीमारी कैंसर भी है। ग्लोबलाइजेशन के बाद लोगों के खानपान में भी बड़ा बदलाव देखा गया… इन दिनों पिज्जा, बर्गर, पेस्ट्री, पैटीज, कुकीज, मोमोज और चाऊमीन समेत कई चीजें बच्चों की फेवरेट बनी हुई हैं। लोगों के फ्रिज में सोडा, कोल्ड ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक हमेशा मौजूद रहने लगा। लोअर मिडिल क्लास के लिए पिज्जा-बर्गर और सॉफ्ट ड्रिंक स्टेटस सिंबल जैसा बन गया। फास्ट फूड में ट्रांस फैट बहुत ज्यादा होता है, जो सेहत के लिए बहुत हानिकारक है। ज्यादा फैट, शुगर और नमक मेल फस्ट फूड को लजीज तो बना देता है…लेकिन, शरीर की कार्यक्षमता को बुरी तरह प्रभावित करता है। जिससे बच्चों का वजन तेजी से बढ़ता है…लोग जल्दी-जल्दी बीमार पड़ते हैं।

हवा को भी साफ नहीं छोड़ा

भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पांच तत्व शरीर, धरती, और पूरी सृष्टि के आधार हैं। इन्हीं पांच तत्वों से सृजन होता है। यही पांच तत्व इंसानी सभ्यता को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं…स्वस्थ शरीर में बेहतर दिमाग की सोच को आगे बढ़ाते रहे हैं। लेकिन, तरक्की की अंधी दौड़ में अधिक पैदावार के लिए इंसान ने मिट्टी यानी धरती को प्रदूषित किया… पानी में भी जहरीले रसायन घोले…हवा को भी साफ नहीं छोड़ा। आसमान को भी इस लायक नहीं छोड़ा की सूरज की रोशनी सीधी आ सके… इंसान के कुदरत की सेहत खराब करने के साथ-साथ अपनी सेहत से भी समझौता कर लिया।

विकास की सुपरसोनिक रफ्तार और लाइफ स्टाइल का साइड इफेक्ट ये है कि अब दिल्ली-NCR समेत शहरी क्षेत्र के लोग सांसों के लिए भी तरसने लगे हैं। भोजन की थाली में जो खा रहे हैं – वो सेहत बना रहा है या बिगाड़ रहा है…ये भी उम्र चक्र के हिसाब से लेंस से अलग-अलग दिखता है। अब सवाल उठता है कि जब हवा खराब है, भोजन में सेहत बिगाड़ने वाले रसायन घुले-मिले हैं, दूध में मिलावट है… फल-सब्जियों में जहर है तो इंसान आखिर जाए कहां और खाए क्या? विकास की रफ्तार को रिवर्स करना भी असंभव है..लेकिन, इंसान की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए विकास जरूरी है ना कि इंसान के शरीर को कमजोर और बीमार बनाने के लिए। पूरी सृष्टि का आधार पंचभूतों को अपवित्र होने से बचाना आज की सबसे बड़ी चुनौती है यानी कुदरत का सिस्टम सेनेटाइज करना समय की मांग है।

First published on: Nov 04, 2023 09:00 PM

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