---विज्ञापन---

भारत एक सोच

Generative AI इंसानी सभ्यता के लिए वरदान या अभिशाप?

Bharat Ek Soch : पूरी दुनिया में इस वक्त एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर बहस जारी है। लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि Generative AI इंसानी सभ्यता के लिए वरदान या अभिशाप?

Author Edited By : Anurradha Prasad Updated: Mar 23, 2025 21:16
Bharat Ek Soch
Bharat Ek Soch

Bharat Ek Soch : पूरी दुनिया में एक नई बहस जारी है। क्या एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसान को पछाड़ देगा? क्या एआई के दौर में इंसान की जरूरत दिनों की कम होती जा रही है? क्या एआई लेखक, पत्रकार, रिसर्चर, शेयर मार्केट एडवाइजर की छुट्टी कर देगा? क्या एआई शेयर बाजार की एनालिसिस कर बता देगा कि किस शेयर में निवेश कर कम से कम समय में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं? अगर एआई प्लानिंग करेगा, एक्जिक्यूट भी करेगा तो फिर इंसान क्या करेगा? इसी हफ्ते की खबर है कि सुप्रीम कोर्ट में भी केस को जल्द निपटाने के लिए एआई और मशीन लर्निंग बेस्ड टूल्स का इस्तेमाल हो रहा है। Agriculture, Health, Policing के साथ अब Judiciary में भी एआई का दखल बढ़ रहा है।

Chat GPT के बाद चाइना के Deepseek ने खलबली मचा दी। एलन मस्क के GROK की चर्चा पूरी दुनिया में है। एआई बेस्ट जेनरेटिव चैटबॉट GROK के जवाब देने का अंदाज अभी लोगों को बहुत पसंद आ रहा है। हाल में लॉन्च चाइना के मानुष नाम के एआई एजेंट को भी दुनिया हैरत भरी नजरों से देख रही है। दावा है कि मानुष सोच सकता है, प्लान कर सकता है, वेबसाइट भी बना सकता है, शेयर मार्केट के रुझानों के आधार पर विश्लेषण भी कर निवेश की सलाह दे सकता है। मतलब, चीन का मानुष एक डिजिटल कर्मचारी की तरह काम कर सकता है। लेकिन, बड़ा सवाल यही है कि जेनरेटिव एआई टूल्स से होने वाली गलतियों की जिम्मेदारी कौन लेगा? जेनरेटिव एआई इंसानी सभ्यता के लिए वरदान है या अभिशाप? आने वाले दिनों में इंसान मशीन को कंट्रोल करेगा या मशीन इंसान से आगे निकल जाएगी?

---विज्ञापन---

यह भी पढ़ें : कैसा भारत बनाना चाहते थे भगत सिंह, खुद को नास्तिक क्यों कहते थे शहीद-ए-आजम?

क्यों इंसान के कंट्रोल से बाहर हो सकता है एआई?

सबसे पहले बात चाइना के MANUS की। मानुष को एक ऐसे एआई एजेंट के रूप में देखा जा रहा है, वो बिना अधिक कमांड के भी काम कर सकता है। इसे बनाने वाली कंपनी बटरफ्लाई इफेक्ट का दावा है कि उनका AI एजेंट अपने आप सोच सकता है। हालात के मुताबिक फैसला भी लेने में सक्षम है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब एआई इंसानों की तरह फैसला ले सकता है तो इंसान के कंट्रोल से बाहर भी हो सकता है? इसी तरह एलन मस्क का AI GROK भी लोगों के बीच चर्चा का विषय है। ये ज्यादातर सवालों का जवाब बेधड़क होकर देता है। यहां तक की गाली-गलौज की भाषा भी इस्तेमाल कर रहा है। GROK से जिस शैली में सवाल किया जा रहा है, कमोवेश जवाब भी उसी शैली में आ रहा है।

---विज्ञापन---

किस तरह से इंसानी दिमाग को चुनौती दे रहा AI

ऐसे में सबसे पहले ये समझते है कि एआई की दुनिया में हो रहे प्रयोग इंसान दिमाग को किस तरह से चुनौती दे रहे हैं? एआई टूल्स से किस तरह के जवाब आ रहे हैं– उस पैटर्न को समझना भी जरूरी है। एक चर्चित महिला शख्सियत के बारे में एआई टूल से जानकारी मांगी गई। एआई की तरफ से जो जवाब आया– उसमें पति को भाई बताया गया। इसी तरह एक शख्स की निजी जिंदगी के बारे में पूछा गया तो जवाब आया कि वो अविवाहित है, जबकि वो शादीशुदा है। कम चर्चित व्यक्ति के बारे में एआई टूल गोलमोल जानकारी देकर पलती गली से निकल लेता है। ऐसे में AI से आने वाले जवाब में सही या गलत का खतरा बराबर का है। अब सवाल उठता है कि ये कैसे तय होगा कि एआई टूल से मिली जानकारी सही है या गलत। एआई की गलतियों के लिए कौन जिम्मेदार होगा? वक्त के साथ एआई से होने वाली गलतियों के ठीक होने के चांस कितने हैं? अब ये समझना जरूरी है कि एआई कहां इंसान का काम आसान बना सकता है और कहां फंसा सकता है?

क्या इंसान का वजूद खतरे में आ जाएगा?

दुनिया के बेस्ट टेक्निकल ब्रेन और तकनीक टायकून अक्सर कहते रहते हैं कि दुनिया में वो दिन दूर नहीं, जब मशीनों को इंसान से कमांड लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसमें सुंदर पिचाई, एलन मस्क, बिल गेट्स और युवाल नोआ हरारी जैसी हस्तियां भी शामिल हैं। इजरायल के युवा इतिहासकार युवाल नोआ हरारी AI के हर पहलू पर खुलकर बोलते रहे हैं। उनकी दलील है कि एआई मानव इतिहास की हर पिछली तकनीक से अलग है। यह पहली तकनीक है- जो खुद फैसला ले सकती है। अब सवाल ये है कि अगर हालात के हिसाब से मशीन फैसला लेने लगेगी, अपने फैसलों को लागू करने लगेगी तो क्या इंसान की प्रासंगिकता खत्म नहीं हो जाएगी? अगर मशीनों को कंट्रोल नहीं किया गया तो इंसान का वजूद खतरे में आ जाएगा?

क्या लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है एआई का विकास?

Geoffrey Hinton की पहचान पूरी दुनिया में AI के गॉडफादर की है। लेकिन, अब उनकी सोच है कि एआई का विकास इंसानों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। अभी 100 में से 99 लोग बेहतर और स्मार्ट एआई बनाने की रेस में हैं तो एक स्मार्ट व्यक्ति इस पर काम कर रहा है कि इसे कैसे रोकना है। माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स की सोच है कि एआई हेल्थकेयर और एजुकेशन के क्षेत्र में असमानता कम करने में भी मददगार बन सकता है। वहीं, Open AI के CEO सैम ऑल्टमैन एआई के खतरों का जिक्र कई बार कर चुके हैं। उनकी दलील है कि तकनीक के नकारात्मक खतरों से बचाने के लिए International Atomic Energy Agency की तर्ज पर एक इंटरनेशनल एजेंसी बननी चाहिए, क्योंकि सैम ऑल्टमैन को जेनरेटिव एआई एटम बम जैसी खतरनाक लग रही है। हालांकि, युवाल नोआ हरारी जैसे इतिहासकारों दलील देते हैं कि इंसान का अंत उस तरह नहीं होगा, जैसा परमाणु हथियारों से होता है। टेक्नोलॉजी में इतना बदलाव आएगा कि इंसान के सामने वजूद बचाने की बड़ी चुनौती आ सकती है। मतलब, तकनीक सबकुछ बदल देगी, सब बर्बाद कर सकती है। ऐसे में समझना जरूरी है कि भारत में एआई का इस्तेमाल किस तरह और कितना हो रहा है?

यह भी पढ़ें : Bharat Ek Soch: Donald Trump किसे मानते हैं America का दुश्मन नंबर वन?

वर्चुअल Vs रियल क्या?

दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है- वर्चुअल Vs रियल। दोनों के अपने-अपने नफा-नुकसान हैं। इंसान के दिमाग और कंप्यूटर में सबसे बड़ा अंतर ये है कि इंसानी दिमाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तुलना में बहुत धीमा है। इंसानी दिमाग की क्षमता यानी कंप्यूटर की भाषा में कहें तो स्टोरेज क्षमता सीमित है। लेकिन, इंसानी दिमाग जिस तरह सवाल कर सकता है, जितना क्रिएटिव है, वैसी क्षमता भी एआई में नहीं है। भले ही प्रोसेसिंग स्पीड, डेटा एनालिसिस, मल्टीटास्किंग में एआई के सामने इंसानी दिमाग कहीं नहीं टिकता, लेकिन क्रिएटिविटी, मोरल एथिक्स, इमोशनल इंटेलिजेंस, कॉमन सेंस और क्रिटिकल थिंकिंग के मामले भी इंसानी दिमाग अभी जेनरेटिव एआई से बहुत आगे हैं। हालांकि, युआल नोवा हरारी जैसे इतिहासकार ये भी भविष्यवाणी कर रहे हैं कि AI रोबोट्स रिश्ता निभाने में अपना 100% इमोशन लग सकते हैं यानी भविष्य में रोबोट सामने वाले को आकर्षित करने में इंसानों को पीछे छोड़ सकते हैं। AI की वजह से नौकरियों के स्वरूप में भी बदलाव तय है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने हाल में एक स्टडी किया, जिसके मुताबिक, 2030 तक एआई जॉब मार्केट को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा। कुछ नौकरियां बाजार से गायब हो जाएंगी तो एआई की वजह से नई नौकरियां भी पैदा होंगी?

इंसानों को भी रहना पड़ेगा अपडेट

एक बड़ा सच ये भी है कि एआई किसी की नौकरी नहीं खाएगा, बल्कि जो लोग इसके इस्तेमाल में पीछे रह जाएंगे, उनकी जगह एआई में माहिर लोग जरूर ले लेंगे। ऐसे में तेजी से बदलती तकनीक के हिसाब से इंसान के सामने खुद को अपडेट और अपग्रेड करने की चुनौती लगातार बनी रहेगी। लेकिन, एक एआई के एक दूसरे पक्ष पर पूरी दुनिया को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि वो दिन दूर नहीं जब सड़कों पर एआई तकनीक से लैस ड्राइवरलेस गाड़ियां दौड़ती दिखेंगी। ऐसे में अगर किसी तकनीकी ग्लिच की वजह से कोई सड़क हादसा होता है तो उसके लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाएगा?

यह भी पढ़ें : उत्तर-दक्षिण के सुर इतने अलहदा क्यों, क्या है स्टालिन का प्लान?

AI की गलतियों के लिए कौन होगा जिम्मेदार?

अगर एआई से निकाली गई किसी गलत जानकारी के आधार पर कोई आर्टिकल लिखी गई और उस पर किसी ने आपत्ति जताते हुए मुकदमा दर्ज करा दिया गया तो जेल किसे होगी? अगर किसी शख्स ने एआई बेस्ड टूल से मिली एनालिसिस पर भरोसा करते हुए शेयर में निवेश किया और पैसा डूब गया तो दोषी किसे माना जाएगा? क्या जेनरेटिव एआई का एडवांस वर्जन इतना आगे बढ़ चुका है कि उसमें इंसान की तरह गलत-सही के बीच फैसला करने की क्षमता आ चुकी है? शायद अभी नहीं, लेकिन आज का दौर एआई के विरोध का नहीं, बल्कि एआई के साथ कदमताल करते हुए आगे बढ़ने का है। तकनीक तब तक बेहतर और मददगार है– जब तक इंसान इसे कंट्रोल करेगा। जब तकनीक इंसान को कंट्रोल करने लगेगी तो खतरे का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।

HISTORY

Edited By

Anurradha Prasad

First published on: Mar 23, 2025 09:16 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें