Bharat Ek Soch: दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में एक अजीब सी बेचैनी और खौफ का माहौल है। खासतौर से पश्चिम एशिया में ईरान और इजरायल की बीच जारी अघोषित युद्ध ने दुनिया को नई टेंशन दी है। 85 साल की उम्र में ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई राइफल की नली थामे कह रहे हैं कि जरूरत पड़ी तो इजराइल पर फिर से हमला किया जाएगा।
इसी हफ्ते मंगलवार को ईरान ने इजराइल पर करीब 25 मिनट में 181 मिसाइलें दागी..इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ईरान को तबाह करने की कसम खाई है। दक्षिणी लेबनान के कई हिस्से मिसाइल और रॉकेट की मार से खंडहर में बदल चुके हैं। इजरायल और हमास बीच पहले से जंग जारी है। यूक्रेन और रूस के बीच जंग के 954 दिन हो चुके हैं। जिस जंग के हफ्ते भर से कम समय में खत्म होने की भविष्यवाणी की जा रही थी – वो आखिर खत्म होने का नाम क्यों नहीं ले रही है ?
92 देश युद्ध की आग में झुलस रहे हैं
2024 Global Peace Index के मुताबिक फिलहाल दुनिया में 56 लड़ाई चल रही हैं। जिनमें 92 देश युद्ध की आग में झुलस रहे हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में युद्ध की आग को कौन भड़का रहा है ? युद्ध की आग में घी डालने का काम कौन और क्यों कर रहा है? दुनिया में तनाव और युद्ध के बीच कौन-कौन अपना फायदा देख रहा है? क्या आपको पता है अगर ईरान और इजरायल के बीच Undeclared War अगर Declared War में बदल गया तो क्या होगा? इजराइल ने ईरान के तेल कुओं और मिसाइल अड्डों की ओर अपनी मिसाइलों का मुंह मोड दिया तो क्या होगा? ये युद्ध लंबा खिंचा तो उसका दुनिया पर किस तरह असर पड़ेगा? लेबनान में सिर्फ हिजबुल्लाह निशाना है या उसकी समुद्री सीमा में मौजूद गैस का भंडार? आखिर, इजरायल को गोला-बारूद कौन दे रहा है-जो एक साथ हमास और हिजबुल्लाह दोनों से लड़ रहा है। दुनिया में लड़ाई लगाकर कौन अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में लगा है ? ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे।
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इजरायल की अत्याधुनिक मिसाइलों के निशाने पर कौन?
दुनिया के सबसे तेज-तर्रार कूटनीतिज्ञों के लिए भी ये अनुमान लगाना मुश्किल है कि इजराइल और ईरान के बीच लगातार बढ़ रही तनातनी आखिर किस अंजाम तक जाएगी? इजरायल की अत्याधुनिक मिसाइलों के निशाने पर ईरान के कौन-कौन से बड़े ठिकाने हो सकते हैं? पश्चिमी देश ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बंद कराने के लिए किस हद तक जा सकते हैं? ऐसे सवालों के जवाब अभी भविष्य के गर्भ में हैं। लेकिन, एक बात साफ है कि मुस्लिम वर्ल्ड में ईरान एक बहुत ताकतवर देश है-जो आज की तारीख में शिया और सुन्नी दोनों को इस्लाम के नाम पर पश्चिमी देशों के खिलाफ एकजुट करने की कोशिश कर रहे है।
इजरायल पर 181 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी
ऐसे में आने वाले दिनों में सभ्यताओं के बीच नहीं बल्कि धर्मों के बीच टकराव दिख सकता है। इसी हफ्ते मंगलवार को आधे घंटे से भी कम समय में ईरान ने इजरायल पर 181 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी। इनमें से ज्यादातर मिसाइलों को हवा में ही मार गिराने का दावा किया गया। The Jerusalem Post के मुताबिक, ईरान की ओर से जिस तरह की घातक बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गईं…एक बैलिस्टिक मिसाइल बनाने में करीब एक मिलियन डॉलर खर्च का अनुमान लगाया गया। अगर रुपये में देखा जाए तो एक मिसाइल की लागत बैठती है करीब 8 करोड़ 30 लाख। इस हिसाब से 181 मिसाइलों पर खर्च आया होगा 1500 करोड़ रुपये से अधिक का। लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि बैलेस्टिक मिसाइलों को रोकने का तंत्र इससे दोगुना खर्चीला है ।
3700 करोड़ रुपये से अधिक हुए खर्च
The Jerusalem Post के मुताबिक ही बैलिस्टिक मिसाइलों के खतरे की पहचान और हवा में नष्ट करने का खर्चा डबल से अधिक है। अनुमान लगाया गया है कि ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने और उन्हें नष्ट करने के सुरक्षा तंत्र पर इजराइल का 450 मिलियन डॉलर से अधिक खर्च हुआ होगा। मतलब, सवा सैंतीस सौ करोड़ रूपये से अधिक खर्च हुआ होगा। आधे घंटे से भी कम समय में ईरान और इजराइल ने 5200 करोड़ रुपये से अधिक के हथियार इस्तेमाल कर डाले। अब ये समझना जरूरी है कि आखिर ईरान और इजराइल चाहते क्या हैं ? और इन दोनों के बीच जंग का दुनिया पर किस तरह साइड इफेक्ट पड़ने वाला है?
हूती लड़ाकों को कहां से मिल रहे हथियार?
अप्रैल में भी ईरान ने इजराइल पर 110 बैलिस्टिक और 30 क्रूज मिसाइलें दागी थी। करीब साल भर पहले 7 अक्टूबर को हमास ने इजराइल पर हमला कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। इजराइल के सुरक्षा तंत्र पर सवाल खड़े हुए थे। लेकिन, उसके बाद गाजा पट्टी और दक्षिणी लेबनान में इजराइल का हमला लगातार जारी है। पिछले साल भर से इजराइल और हमास लड़ रहे है। हमास चीफ इस्माइल हानिया के मारे जाने के बाद भी इजराइल का इंतकाम जारी है। हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह के मारे के बारे भी इजराइल का हमला दिनों-दिन तेज होता जा रहा है। सवाल ये भी उठ रहा है कि लेबनान में हिजबुल्लाह, फिलिस्तीन में हमास और यमन में हूती लड़ाकों को हथियार और ट्रेनिंग कहां से मिलती है?
रूस और यूक्रेन के बीच जंग के हो चुके 954 दिन
इजराइल की आबादी एक करोड़ से कम है-वो कई मोर्चों पर इतनी बड़ी जंग कैसे लड़ रहा है? उसे गोला-बारूद, फाइटर जेट और मिसाइलें कौन दे रहा है ? इजरायल को हथियारों की सबसे बड़ी सप्लाई अमेरिका से मिल रही है। उसके बाद दूसरे नंबर पर जर्मनी और तीसरे नंबर पर इटली है। इसी तरह रूस और यूक्रेन के बीच जंग के 954 दिन हो चुके हैं। यूक्रेन भी रूस के सामने इस लिए मजबूती से डटा हुआ है-क्योंकि, उसे पीछे से अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों से हथियारों की भरपूर सप्लाई मिल रही है। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से अमेरिका यूक्रेन को 175 बिलियन डॉलर की मदद दे चुका है।जिसमें 106 बिलियन डॉलर सीधे यूक्रेन सरकार को गया…आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिकी मदद में से 69.8 बिलियन डॉलर हथियार और दूसरे सैन्य साजो-सामान के तौर पर दिया गया।ऐसे में हिसाब लगाइए कि दुनिया में विनाश की स्क्रिप्ट तैयार कर बिजनेस को कैसे आगे बढ़ाने का खेल चल रहा है
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दुनिया में हथियार बनाने वाली 5 टॉप कंपनियों में से 4 अमेरिका की
दुनिया में हथियार बनाने वाली 5 टॉप कंपनियों में से 4 अमेरिका की हैं। सवाल ये भी उठता है कि कहीं चरमपंथियों को गुप्त तरीके से हथियार पकड़ा कर हथियार कंपनियों के लिए बाजार पैदा करने की कोशिश तो नहीं होती रही है? क्योंकि, War हो या Proxy War दोनों की स्थिति में हथियारों की मांग बढ़ती है। GLOBAL PEACE INDEX 2024 के मुताबिक, हिंसा की वजह से पिछले साल Global Economy को 19.1 ट्रिलियन का झटका लगा..अगर प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखा जाए तो ये रकम बैठती है 2380 डॉलर मतलब करीब एक लाख 97 हजार रुपये।
अमेरिका की रक्षा कंपनियों का हो रहा मुनाफा
दुनिया में Peace building से Peacekeeping Mission पर खर्च हुए करीब 49.6 बिलियन डॉलर…जो सैन्य खर्च का आधा फीसदी से थोड़ा सा अधिक है। युद्ध और तनाव की वजह से दुनिया में हथियार जमा करने की रेस जारी है-जिसमें हथियारों की मंडी में सबसे बड़ा सौदागर अमेरिका है । युक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका की रक्षा कंपनियों के मुनाफा में भी जबरदस्त उछाल देखा गया है। इतना ही नहीं, अमेरिकी सरकार ने साल 2023 में सीधे तौर 81 बिलियन डॉलर के हथियारों की डील की … जो 2022 की तुलना में 56% अधिक है।
दूसरों के झगड़े में अपना मतलब साधता है अमेरिका
दूसरों के झगड़े में अमेरिका अपना मतलब साधता रहा है। कभी लोकतंत्र के नाम पर, कभी आतंकवाद से लड़ने के नाम पर, कभी साम्यवादी ताकतों को रोकने के नाम पर, कभी मानवाधिकार के नाम पर…कभी सुरक्षा देने के नाम पर हथियारों की मंडी सजाता रहा है। ग्लोब पर दिखने वाले कई क्षेत्रों में भय और टेंशन का माहौल बना कर हथियारों की रेस तेज करने का काम भी हुआ है..जिस पर बड़ी चतुराई से सहयोग, दोस्ती और कूटनीति का मुल्लमा चढ़ा दिया जाता है। ईरान-इजराइल युद्ध, इजराइल-हमास और यूक्रेन-रूस युद्ध मुस्लिम वर्ल्ड में हलचल, यूरोपीय देशों का अमेरिकी सुरक्षा तंत्र से भरोसा उठना। ऐसे भय और असुरक्षा के माहौल में ज्यादातर देश अपनी सुरक्षा के लिए हथियार खरीदने के लिए मजबूर हैं।
महाशक्तियों ने उठाया है फायदा
इतिहास गवाह रहा है कि ऐसी स्थितियों का फायदा समय-समय पर महाशक्तियों ने उठाया है। तनाव और युद्ध के बीच हथियारों की ऐसी रेस शुरू हुई… जिसका सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका और रूस को हुआ। पहले विश्वयुद्ध से अब तक अमेरिका जब भी आर्थिक संकट की ओर बढ़ा उसे उबारने में किसी न किसी युद्ध ने संकटमोचक की भूमिका निभाई।
राष्ट्रवाद और धर्म के नाम पर दुनिया में टकराव के चांस बढ़े
अगर ईरान और इजराइल के बीच अघोषित युद्ध लंबा खिंचता है या Full Scale War में बदल जाता है तो इसका असर दुनिया के बड़े हिस्से पर पड़ना तय है। शेयर बाजार और तेल बाजार पर असर अभी से दिखना शुरू हो चुका है। ईरान का भूगोल कुछ ऐसा है कि महाशक्तियों के लिए तेहरान तक पहुंचा आग का दरिया पार करने जैसा है। ऐसे में जंग लंबी खिंचनी तय है। दूसरी ओर, ईरान को हिजबुल्लाह, हमास और हूती जैसे हथियारबंद गुटों को आगे करने में भी महारत हासिल है। ऐसे में अगर Proxy War का खेल चला तो हथियारों की रेस बढ़नी तय है। अलकायदा और ISISI को पीछे से मदद का अंजाम दुनिया देख चुकी है। मुस्लिम वर्ल्ड में भी रिश्ते नए सिरे से परिभाषित होंगे क्योंकि, ईरान इस्लाम के नाम पर शिया और सुन्नी सभी को पश्चिमी देशों के खिलाफ एकजुट करने की स्क्रिप्ट आगे बढ़ा रहा है।
एशिया और यूरोप में हथियारों का नया बाजार
ऐसे में राष्ट्रवाद और धर्म के नाम पर दुनिया में टकराव के चांस बढ़ गए हैं। अमेरिका भी अपना मतलब साधने के लिए आतंकियों और कट्टरपंथियों को हथियार पकड़ता रहा है। तनाव और युद्ध के खतरे के बीच पश्चिमी देशों को एशिया और यूरोप में हथियारों का नया बाजार और खरीदार मिलेंगे। जिसका फायदा दुनिया की हथियार बनाने वाली दिग्गज कंपनियों को मिलना तय है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में शांति के लिए बना संयुक्त राष्ट्र हाल के वर्षों में युद्ध रोकने में नाकाम रहा है। और दुख की बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में बदलाव के लिए महाशक्तियां तैयार नहीं हैं। ऐसे में दुनिया को युद्ध से बचाने के लिए एक ईमानदार इराद और बुलंद सोच की जरूरत है।
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