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Jammu-Kashmir के तीसरे राउंड की 40 सीटों पर किसका गणित सुलझा…किसका उलझा?

Jammu Kashmir Election 2024: जम्मू-कश्मीर में 8 अक्टूबर को पता चलेगा कि किसकी सरकार बनने वाली है। इस दिन वोटों की गिनती होगी। अब तक 50 सीटों पर जनता जनार्दन का फैसला EVM में लॉक हो चुका है।

Edited By : Pushpendra Sharma | Updated: Sep 28, 2024 21:07
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Bharat Ek Soch Jammu Kashmir Election
भारत एक सोच।

Jammu Kashmir Election 2024: जम्मू-कश्मीर की 50 विधानसभा सीटों पर लोगों का फैसला EVM में लॉक हो चुका है। तीसरे राउंड में 40 सीटों पर वोटिंग होनी है। जिसमें से 26 सीटें जम्मू क्षेत्र की और 14 सीटें कश्मीर क्षेत्र की हैं। एक अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के लोग तय कर देंगे कि प्रदेश की हुकूमत कौन संभालेगा? पूरा देश हिसाब लगा रहा है कि पिछले दो चरण की वोटिंग में जम्मू-कश्मीर के लोगों ने किसका पलड़ा भारी किया और किसकी उम्मीदों पर पानी फेरा। सोलह देशों के राजनयिक भी जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की नई सुबह का दीदार करने पहुंचे। जम्मू-कश्मीर में ये शायद पहला विधानसभा चुनाव है- जिसमें हड़ताल या बहिष्कार जैसे शब्द सुनाई नहीं दे रहे। हार्डलाइनर्स भी बैलेट के जरिए जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा में आने की कोशिश कर रहे हैं। कश्मीर की आबोहवा में पाकिस्तान की बात करने वाले किनारे लग चुके हैं।

कश्मीर में लड़ाई उलझी

वहां बुलेट नहीं सिर्फ बैलेट की बातें हो रही हैं। कुछ हफ्ते पहले हमने अपने एक कार्यक्रम ‘कश्मीर में वोटों की इंजीनियरिंग’ में आपको बताया था कि जम्मू में लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस है, तो कश्मीर में लड़ाई बहुत उलझी हुई है। वहां वोट बढ़ाने और काटने के लिए अजब-गजब दांव-पेंच आजमाए जा रहे हैं।कश्मीर में एक ओर फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस हैं, दूसरी ओर महबूबा मुफ्ती की पीडीपी। तीसरी ओर हार्डलाइनर इंजीनियर राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी समर्थक निर्दलीय उम्मीदवार। फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती इंजीनियर राशिद को बीजेपी की टीम B बताते रहे।

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इंजीनियर की एंट्री से किसे फायदा?

अब सवाल उठता है कि जम्मू-कश्मीर में अभी वोट का गणित काम कर रहा है या फिर रसायन नए तरह का समीकरण बनाने लगा है? जम्मू-कश्मीर में हार्डलाइनर इंजीनियर की एंट्री से फायदा किसे होता दिख रहा है? अगर अलगाववादी चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंचे तो क्या होगा? आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में किस तरह से सरकार बनाने की कोशिशें दिख सकती हैं? क्या महबूबा मुफ्ती चुनावों के बाद किंगमेकर के तौर पर उभरेंगी? चुनावी नतीजों के बाद प्रधानमंत्री मोदी का मिशन कश्मीर किस तरह आगे बढ़ेगा? आज ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे।

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चुनाव से सभी को उम्मीदें 

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव अब संध्याकाल की ओर बढ़ रहा है। तीसरे राउंड की वोटिंग से पहले बढ़त के लिए दिग्गजों ने पूरी ताकत झोंक रखी है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने चिर-परिचित अंदाज में सियासी विरोधियों पर तीखे प्रहार कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद का वेयरहाउस बना दिया था। एक दूसरी रैली में वो कहते हैं कि बीजेपी की सरकार बनने के बाद पीओके भारत का हिस्सा बनने वाला है। वहीं, राहुल गांधी कह रहे हैं कि चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाली के लिए इंडिया गठबंधन संसद में पूरी ताकत लगाएगा। नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला भी स्टेटहुड और 370 की बहाली के लिए लंबी लड़ाई लड़ने की बात करते हैं। गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि राहुल बाबा की तीन पीढ़ियों में इतना दम नहीं की 370 वापस ले आएं। दस साल बाद हो रहे जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में सबको अपने लिए उम्मीद दिखाई दे रही है, लेकिन एक सच ये भी है कि वहां सत्ता की राह किसी के लिए भी केकवॉक तो नहीं है। ऐसे में सबसे पहले ये समझने की कोशिश करते हैं कि जम्मू-कश्मीर में तीसरे राउंड में हवा का रुख अपने पक्ष में करने के लिए कोशिशें किस तरह से चल रही है।

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बीजेपी को कहां से उम्मीद?

1 अक्टूबर को जिन 40 सीटों पर वोटिंग होनी है, उसमें से 26 जम्मू क्षेत्र की हैं। जम्मू क्षेत्र से बीजेपी को बहुत उम्मीद है। यहां की ज्यादातर सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है। जम्मू क्षेत्र का मुद्दा कश्मीर से बिल्कुल अलग है। कश्मीर में जहां 370 और स्टेटहुड बहाली सबसे बड़ा मुद्दा है। वहीं, जम्मू में विकास, बिजली का स्मार्ट मीटर, प्रॉपर्टी टैक्स, टोल टैक्स जैसे स्थानीय मुद्दे आगे हैं। हिंदी पट्टी में चुनावों को प्रभावित करने में जाति अहम किरदार निभाती है, लेकिन जम्मू क्षेत्र में वोटिंग पैटर्न प्रभावित करने में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद इंजन की भूमिका में है। शायद इसकी वजह है कि जम्मू क्षेत्र में अब तक नेशनल कॉन्फ्रेंस या पीडीपी जैसी पार्टियां अपने पैर मजबूती से नहीं जमा पाई हैं। ऐसे में अगर तीसरे चरण के चुनाव के लिहाज से देखा जाए तो जम्मू क्षेत्र की जिन 24 सीटों पर वोटिंग होनी है, उसमें से 17 सीटों पर 2014 में कमल खिला था। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू क्षेत्र में जिस तरह से कांग्रेस का वोट बैंक बढ़ा। उससे क्षेत्र के कांग्रेसी नेताओं के हौसले बुलंद हैं। भले ही परिसीमन के बाद जम्मू का पलड़ा भारी करने की कोशिश हुई, लेकिन इस बार जम्मू क्षेत्र में भी बीजेपी को अपनी राहों में फूल और कांटे दोनों दिख रहे होंगे।

लोगों के नजरिए में बदलाव 

चुनावी राजनीति में आंकड़ों का विश्लेषण और उसके आधार पर हार-जीत की भविष्यवाणी करना पत्रकारों और पॉलिटिकल पंडितों का एक दिलचस्प काम होता है, लेकिन 5 अगस्त 2019 के पहले और उसके बाद के जम्मू-कश्मीर में बहुत अंतर है। ऐसे में 2014 या उससे पहले के आंकड़ों के आधार पर जिन नतीजों की भविष्यवाणी करने की कोशिश हो रही है- उसे लेकर थोड़ा संदेह है। जम्मू-कश्मीर में हर छोटी-बड़ी चीज देखने को लेकर वहां के लोगों के नजरिए में बड़ा बदलाव आया है। दस साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। लोगों के साथ-साथ नेताओं को भी बड़ी उम्मीद है, लेकिन कश्मीर में वोटों की इंजीनियरिंग क्या इशारा कर रही है। दो चरणों में हुए वोटिंग परसेंटेज से क्या मायने निकाले जा रहे हैं। पिछले चुनावी आंकड़ों से तुलना करने पर किस तरह के ट्रेंड सामने आ रहे हैं।

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कश्मीर में क्या है समीकरण?

ऐसे सवालों के जवाब तलाशने के लिए लगातार जोड़-घटाव जारी है। जम्मू-कश्मीर के ज्यादातर दिग्गजों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला हैं, जो गांदेरबल और बडगाम दो सीटों से चुनाव लड़े। जम्मू-कश्मीर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तारिक हामिद कर्रा और बीजेपी के रविंद्र रैना की किस्मत का फैसला भी EVM में बंद हो चुका है। हाईलाइनर सर्जन अहमद वागे उर्फ बरकती बीरवाह सीट से मैदान में उतरे। 8 अक्टूबर को पता चलेगा कि बरकती को कश्मीर के लोगों ने पसंद किया या खारिज, लेकिन कश्मीर के चुनावी अखाड़े में असली ट्विस्ट आया इंजीनियर राशिद की एंट्री के बाद। सवाल ये भी उठ रहा है कि कश्मीर में किस तरह का समीकरण बन सकता है?

पीडीपी उम्मीदों के घोड़े पर सवार

कश्मीर की राजनीतिक नब्ज को टटोलने वाले पंडितों के एक वर्ग की सोच है कि फारूख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला घाटी के लोगों के जहन में ये बात बिठाने में कामयाब रहे कि इंजीनियर राशिद बीजेपी की बी टीम हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ये बात भी बार-बार दोहराई की बीजेपी कश्मीर की 28 सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारकर किसे वॉकओवर दे रही है? साथ ही स्टेटहुड और अनुच्छेद 370 पर फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला एक सुर में बोलते रहे। लंबी लड़ाई लड़ने की बात करते रहे। माना जा रहा है कि इसका असर ये हुआ कि घाटी के लोगों ने अपना वोट छोटी पार्टियों, हाईलाइनर्स और जमात-ए-इस्लामी समर्थक निर्दलीयों की जगह पहले से टेस्टेड पार्टियों को दिया। हालांकि, ये भी संकेत मिल रहे हैं कि छोटी पार्टियां और निर्दलीय भी घाटी में एक पावर ग्रुप बन कर उभरेंगे। वहीं, पीडीपी भी उम्मीदों के घोड़े पर सवार है। फिलहाल, नेशनल कॉन्फ्रेंस को शुरुआती दो राउंड अपने पक्ष में दिख रहा है, तो तीसरे राउंड में कांग्रेस को जम्मू क्षेत्र की पिच अपने लिए अनुकूल लग रही है। वहीं, बीजेपी तीसरे राउंड में जम्मू क्षेत्र की सीटों पर क्लीन स्वीप की उम्मीद कर रही है, लेकिन एक आशंका ये है कि अगर अलगाववादी या हार्डलाइनर्स चुनाव नहीं जीत पाएगा…तो क्या होगा ? कहीं ये जम्मू-कश्मीर के लिए खतरा तो नहीं बन जाएंगे?

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चार तरह के समीकरण

जम्मू-कश्मीर एक ऐसा राज्य है- जिसके पश्चिम से पाकिस्तान की सीमा लगती है और पूरब में चीन की सीमा। बिना केंद्र सरकार की मदद के किसी भी चुनी हुई सरकार के लिए जम्मू-कश्मीर को चलाना बहुत मुश्किल है। ऐसे में 8 अक्टूबर यानी नतीजों के बाद को जम्मू-कश्मीर में चार तरह के समीकरण दिख सकते हैं। एक, बीजेपी को पूर्ण बहुमत। दूसरा, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को गठबंधन को बहुमत। तीसरा किसी को भी सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं। ऐसी स्थिति में बीजेपी कश्मीर के छोटे दलों और निर्दलीयों को मिलाकर सरकार बनाने का दावा पेश करती दिख सकती है। इसमें भी अगर कुछ उन्नीस-बीस हुआ तो नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस अपने साथ पीडीपी को जोड़ कर सरकार बनाने का प्रयास करती दिख सकती है।

आखिरी फैसला जनता का…

चौथा, POWER POLITICS में कुछ भी नामुमकिन नहीं, ऐसे में सरकार बनाने के लिए एक ऐसा भी गठबंधन बन सकता है, जिसके बारे में शायद जम्मू-कश्मीर के लोगों ने सोचा भी न हो, लेकिन 8 अक्टूबर के बाद जो भी सरकार बनेगी, उसे लेफ्टिनेंट गवर्नर और केंद्र सरकार के साथ तालमेल बिठाते हुए ही आगे बढ़ना होगा। पीएम मोदी भी चाहेंगे कि जम्मू-कश्मीर में उन्होंने विकास से बदलाव का जो मिशन शुरू किया, उसकी राहों में स्पीड ब्रेकर न आएंगे, लेकिन लोकतंत्र में आखिरी फैसला जनता का होता है और जम्मू-कश्मीर के लोग भी बहुत सोच-समझकर अपने वोट की ताकत का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लोग इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोग किस सोच के साथ अगली सरकार का चुनाव कर रहे हैं। वहां, राजनीतिक दलों की वोटों की इंजीनियरिंग कामयाब होती है या पिछले कुछ वर्षों में हुए बदलावों का रसायन शास्त्र सबको चौंकाता है।

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Edited By

Pushpendra Sharma

First published on: Sep 28, 2024 09:05 PM

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