Car Tyres: बाजार में गाड़ियों के लिए ट्यूबलेस टायर और ट्यूब वाले टायर्स दोनों मिलते हैं। ट्यूबलेस टायर कुछ महंगे होते हैं। अकसर टायर लेते हुए हम इन दोनों में से कौन से टायर खरीदें इसे लेकर कंफ्यूज रहती है। आइए आपको बताते हैं कि इन दोनों टायरों के फायरे और नुकसान क्या हैं।
ट्यूबलेस टायर में एयरटाइट सेटिंग
ट्यूबलेस टायर में ट्यूब नहीं होती है। इसके रिम में एयरटाइट सेटिंग होती है। इसमें दो तरह के टायर होते हैं बायस-प्लाई और रेडियल। टूयूबलेस टायर में पंचर होने के बाद हवा एक साथ नहीं निकलती है। यह धीरे-धीरे लीक होती है। जिससे पंचर होने के बाद भी यह कई किलोमीटर तक चल जाते हैं।
माइलेज बढ़ती है और हादसे का खतरा कम
ट्यूबलेस टायर में टायर और रिम के बीच में एयरटाइट सील होती है। इस प्रकार के टायरों के लिए रिम अलग से डिजाइन किए जाते हैं, जिससे हवा के रिसाव को रोका जा सके। गाड़ी चलाते हुए घर्षण से यह टायर कम गर्म होते हैं, जिससे इनके फटने व सड़क हादसे का खतरा कम होता है। इससे माइलेज भी अधिक मिलती है।
तुरंत बदलना या पंचर लगवाना पड़ता है
ट्यूब वाले टायरों में टायर और रिम के बीच में ट्यूब रहती है। यह ट्यूबलेस टायरों से कुछ सस्ते जरूर होते हैं। लेकिन पंचर होने की स्थिति में इन्हें तुरंत बदलना या पंचर लगवाना पड़ता है। ऐसे टायरों में हवा एक साथ निकल जाती है। जिससे तेज स्पीड पर पंचर होने पर हादसे का खतरा बना रहता है।
स्टेबिलिटी कम होती है
ट्यूब वाले टायर में हवा कम होने पर घर्षण अधिक होता है, इससे टायर अधिक गर्म हो जाता है। टायर घिसा होने पर उसके फटने के चांस अधिक होते हैं। तेज स्पीड के दौरान ट्यूब वाले टायर चलने में स्टेबिलिटी कम देते हैं। हमें अपने टायरों में हवा का प्रेशर सही रखना चाहिए।
और पढ़िए – ऑटो से जुड़ी अन्य बड़ी ख़बरें यहाँ पढ़ें