आपने अक्सर मंदिरों में या साधु-संतों को मंत्रों का जाप करते देखा होगा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मंत्रों का जाप हमेशा 108 बार ही क्यों किया जाता है? इस संख्या के पीछे एक गहरा रहस्य छिपा हुआ है। यह संख्या सिर्फ एक संख्या नहीं है, बल्कि इसमें ब्रह्मांड के कई रहस्य छिपे हुए हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों मंत्रों का जाप 108 बार ही किया जाता है और इस संख्या का क्या महत्व है।
मंत्र जाप का महत्व और इसकी परंपरा
हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में मंत्रों का जाप एक पुरानी और महत्वपूर्ण परंपरा है। मंत्रों का जाप न केवल आध्यात्मिक शांति देता है, बल्कि इसे सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत भी माना जाता है। 108 बार मंत्र जाप का खास महत्व है क्योंकि यह एक शुभ संख्या मानी गई है। इस संख्या के पीछे कई धार्मिक और आध्यात्मिक कारण हैं। भारतीय संस्कृति में मंत्रों का जाप ध्यान और साधना का मुख्य हिस्सा रहा है और इसे मानसिक शांति के लिए बेहद उपयोगी माना गया है।
108 संख्या का महत्व और वजहें
108 की संख्या का महत्व समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि इसका संबंध धार्मिक, ज्योतिष और ब्रह्मांडीय गणनाओं से है। हिंदू माला में 108 मनके होते हैं, जिन्हें ब्रह्मांड का प्रतीक माना गया है। दरअसल, ब्रह्मांड को 12 राशियों में बांटा गया है, जैसे मेष, वृषभ, कर्क, सिंह आदि। इन 12 राशियों में 9 ग्रह – सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु – भ्रमण करते हैं। जब हम इन 12 राशियों को 9 ग्रहों से गुणा करते हैं, तो हमें 108 का अंक मिलता है। इसलिए, जब हम 108 बार मंत्र का जाप करते हैं, तो माना जाता है कि हम इस पूरे ब्रह्मांड से एक जुड़ाव महसूस करते हैं और यह हमारे लिए शुभ होता है।
मंत्र जाप में नक्षत्रों की भूमिका
108 संख्या का एक और महत्व नक्षत्रों से जुड़ा है। वैदिक ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र माने गए हैं और प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं, इस प्रकार कुल 108 चरण बनते हैं। इस गणना के आधार पर माला का प्रत्येक मनका एक चरण का प्रतीक माना जाता है। यह गणना मंत्र जाप को और भी खास बनाती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि 108 बार मंत्र जाप करने से हर नक्षत्र के चरण का प्रभाव पड़ता है। कुल मिलाकर, 108 बार मंत्र जाप का धार्मिक और खगोलीय महत्व है, जो व्यक्ति की साधना को पूर्णता की ओर ले जाता है।