Shivji Ke Upay: शास्त्रों व प्राचीन ग्रंथों में भगवान शिव की स्तुति के लिए अनेकों मंत्र तथा स्तोत्र दिए गए हैं। शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् भी इन्हीं में से एक है। शिवपुराण के रुद्रसंहिता खंड में इसका वर्णन करते हुए कहा गया है कि देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु को श्राप देने के अपराध का प्रायश्चित करने के लिए इसी का जप किया था।
तंत्र ग्रंथों में भी शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का अनंत महत्व बताया गया है। जो भी भक्त अपने जीवन में एक बार भी इसका पाठ कर लेते हैं, उन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भोगों के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। ज्योतिषाचार्य पंडित रामदास के अनुसार सोमवार, प्रदोष अथवा सावन माह में इसका अनुष्ठान करने से बड़े से बड़ा कष्ट भी दूर हो जाता है।
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कैसे करें शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का अनुष्ठान (Shivji Ke Upay)
सोमवार, प्रदोष अथवा अन्य किसी शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में पाठ का संकल्प लें। महादेव की पूजा करें, उनका अभिषेक करें। अक्षत, पुष्प, माला, चंदन तिलक आदि अर्पित करें। अंत में शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का पाठ करें। यदि संभव हो तो 108 बार जप करें, अन्यथा 11, 21 या 51 बार करें। इसके बाद भगवान शिव के सामने बैठ कर इस स्तोत्र का प्रतिदिन 11 या 21 बार नियमित रूप से तब तक जप करें जब तक आपकी समस्या हल न हो जाएं। शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् निम्न प्रकार है।
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शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् (Shiva Ashtottara Satanam)
जय शम्भो विभो रुद्र स्वयम्भो जय शङ्कर । जयेश्वर जयेशान जय सर्वज्ञ कामद ॥ १॥
नीलकण्ठ जय श्रीद श्रीकण्ठ जय धूर्जटे । अष्टमूर्तेऽनन्तमूर्ते महामूर्ते जयानघ ॥ २॥
जय पापहरानङ्गनिःसङ्गाभङ्गनाशन । जय त्वं त्रिदशाधार त्रिलोकेश त्रिलोचन ॥ ३॥
जय त्वं त्रिपथाधार त्रिमार्ग त्रिभिरूर्जित । त्रिपुरारे त्रिधामूर्ते जयैकत्रिजटात्मक ॥ ४॥
शशिशेखर शूलेश पशुपाल शिवाप्रिय । शिवात्मक शिव श्रीद सुहृच्छ्रीशतनो जय ॥ ५॥
सर्व सर्वेश भूतेश गिरिश त्वं गिरीश्वर । जयोग्ररूप मीमेश भव भर्ग जय प्रभो ॥ ६॥
जय दक्षाध्वरध्वंसिन्नन्धकध्वंसकारक । रुण्डमालिन् कपालिंस्थं भुजङ्गाजिनभूषण ॥ ७॥
दिगम्बर दिशां नाथ व्योमकश चिताम्पते । जयाधार निराधार भस्माधार धराधर ॥ ८॥
देवदेव महादेव देवतेशादिदैवत । वह्निवीर्य जय स्थाणो जयायोनिजसम्भव ॥ ९॥
भव शर्व महाकाल भस्माङ्ग सर्पभूषण । त्र्यम्बक स्थपते वाचाम्पते भो जगताम्पते ॥ १०॥
शिपिविष्ट विरूपाक्ष जय लिङ्ग वृषध्वज । नीललोहित पिङ्गाक्ष जय खट्वाङ्गमण्डन ॥ ११॥
कृत्तिवास अहिर्बुध्न्य मृडानीश जटाम्बुभृत् । जगद्भ्रातर्जगन्मातर्जगत्तात जगद्गुरो ॥ १२॥
पञ्चवक्त्र महावक्त्र कालवक्त्र गजास्यभृत् । दशबाहो महाबाहो महावीर्य महाबल ॥ १३॥
अघोरघोरवक्त्र त्वं सद्योजात उमापते । सदानन्द महानन्द नन्दमूर्ते जयेश्वर ॥ १४॥
एवमष्टोत्तरशतं नाम्नां देवकृतं तु ये । शम्भोर्भक्त्या स्मरन्तीह शृण्वन्ति च पठन्ति च ॥ १५॥
न तापास्त्रिविधास्तेषां न शोको न रुजादयः । ग्रहगोचरपीडा च तेषां क्वापि न विद्यते ॥ १६॥
श्रीः प्रज्ञाऽऽरोग्यमायुष्यं सौभाग्यं भाग्यमुन्नतिम् । विद्या धर्मे मतिः शम्भोर्भक्तिस्तेषां न संशयः ॥ १७॥
इति श्रीस्कन्दपुराणे सह्याद्रिखण्डे शिवाष्टोत्तरनामशतकस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।