Sawan Shiv Puja: देवाधिदेव महादेव का प्रिय महीना सावन चल रहा है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन के महीने (Sawan 2023) में भोलेनाथ की पूजा हर प्रकार से कल्याणकारी होता है. यही वजह है कि लोग सावन के दौरान व्रत रखकर शिवजी की पूजा (Shiv Puja) और कांवड़ यात्रा (Kanwad Yatra 2023) करते हैं. कहते हैं कि भोलेनाथ सिर्फ एक लोटा जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं. सावन मास में वैसे तो कई लोग शिवजी की विधिवत पूजा करते हैं, मगर अधिकांश लोग यह नहीं जानते हैं कि शिव जी की पूजा (Shiv Ji Ki Puja) में ताली क्यों बजाई जाती है. इसके बारे में पुराणों में जिक्र किया गया है कि प्रभु श्रीराम (Shree Ram) और रावण ने भी शिवजी की पूजा के दौरान तीन बार ताली बजाई थी. हलांकि आज भी कई लोग इस रहस्य के बारे में नहीं जानते हैं. आइए जानते हैं शिवजी की किस प्रकार पूजा करने से हजार गुना अधिक फल प्राप्त होता है.
शिवजी की पूजा में क्यों बजाते हैं ताली?
आमतौर पर हर कोई जानता है कि शिवजी की पूजा के दौरान उन्हें पंचामृत, बेलपत्र, अक्षत, तिल, धतूरा, आक इत्यादि अर्पित किए जाते हैं. इसके अलावा आपने यह भी देखा होगा कि शिवजी की पूजा करते समय लोग तीन बार ताली बजाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से शिव की अपने भक्तों की पूजा स्वीकार करने के साथ-साथ मनोकामना भी पूरी करते हैं. दरअसल कई लोग इसे शिव-पूजा का हिस्सा मानकर कई लोग पूजन के बाद 3 बार ताली बजाते हैं, लेकिन इसके पीछे की वजह नहीं जानते.
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शिवजी की पूजा में ताली बजाने का है खास महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शिव पूजा के दौरान 3 बार ताली बजाने के पीछे खास वजह है. कहा जाता है कि इसमें पहली ताली शिवजी के चरणों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बजाई जाती है. जबकि दूसरी ताली इसलिए बजाई जाती है कि अगर हम शिवजी से कुछ ना भी मांगे तो भी हमारे घर का भंडार हमेशा भरा रहे. वहीं शिव-पूजा में आखिरी ताली बजाकर भोलेनाथ की प्रर्थना की जाती है ताकि शिवजी अपने चरणों में हमें स्थान दें.
प्रभु श्रीराम और रावण ने भी बजाई थीं 3 बार ताली
पौराणिक मान्यता है कि शिवजी की परम भक्त रावण भी शिवजी की पूजा के दौरान 3 बार ताली बजाया करता था. कहा जाता है कि ऐसा करने से रावण को लंका का सम्राज्य प्राप्त हुआ. इसके अलावा जब श्रीराम समुद्र पर पुल बनाना चाह रहे थे, तब उन्होंने इस काम में सफलता प्राप्त करने के लिए शिवजी की विधिवत पूजा-अर्चना की थी और 3 बार ताली बजाई. कहा जाता है कि श्रीराम के ऐसा करने के बाद ही सेतु बनाने का कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. इसके साथ ही रावण-वध के लिए लंका जाने का रास्ता भी साफ हुआ.
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